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जैव विविधता और पर्यावरण

‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ इमारतों हेतु ग्रीन रेटिंग प्रणाली

  • 03 Nov 2018
  • 4 min read

संदर्भ

भारतीय ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने वर्ल्ड ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल तथा यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के सहयोग से ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ इमारतों हेतु ग्रीन रेटिंग प्रणाली की शुरुआत की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ग्रीन बिल्डिंग काँन्ग्रेस 2018 के अवसर पर शुरू की गई यह रेटिंग प्रणाली राष्ट्रीय संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता मिशन और राष्ट्रीय सौर मिशन के पूरक की तरह कार्य करने का प्रयास करती है।
  • ग्रीन बिल्डिंग काँन्ग्रेस 2018 की थीम ‘ग्रीन बिल्ट एन्वायरनमेंट फॉर पीपल एंड प्लैनेट’ थी।
  • भारतीय ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ की अवधारणा को भारत में बढ़ावा देने की योजना बना रही है।
  • भारतीय ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने पहाड़ी इलाकों के लिये भी ‘ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम’ की शुरुआत की है।
  • भारत में ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ की अवधारणा का लक्ष्य, राष्ट्रीय औसत की तुलना में सकल ऊर्जा खपत में 40 से 50 प्रतिशत तथा कीमतों में 30 प्रतिशत तक की कटौती करना है।

‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ इमारतें

  • ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ इमारतों की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति अक्षय ऊर्जा स्रोतों से होती है। अर्थात् ऐसी इमारतें खुद के लिये आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन करती हैं।
  • ऐसे घर या इमारतें, जो लगभग अपने खपत के बराबर ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम होते हैं ‘नियर-ज़ीरो एनर्जी’ बिल्डिंग कहलाते हैं।
  • ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ स्थिति प्राप्त करने के लिये सोलर पैनल, हीट रिकवरी प्रणाली, जियोथर्मल हीटिंग और विंड टरबाइन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।

‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ इमारतों की आवश्यकता क्यों?

  • एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत की 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रहना शुरू कर देगी।
  • बढ़ते शहरीकरण के कारण यह आवश्यक हो गया है कि शुरुआत से ही शहरों को ऊर्जा दक्ष बनाया जाए।
  • किसी भी इमारत में आरामदेह स्थिति के लिये पर्याप्त प्रकाश, हवा, गर्म पानी की उपलब्धता तथा वातानुकूलन की दशाएँ आवश्यक होती हैं किंतु इन सुविधाओं की वज़ह से अतिरिक्त ऊर्जा की मांग बढ़ जाती है।
  • अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन के दौरान ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि होने लगती है और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।
  • वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का 33 प्रतिशत हिस्सा इमारतों से होता है।
  • ‘नेट ज़ीरो एनर्जी’ या ग्रीन इमारतों के निर्माण में स्थानीय सामग्रियों, पारिस्थितिक तंत्र का ध्यान रखा जाता है और सबसे ज़रूरी बात यह है कि इन्हें बिजली, पानी तथा भौतिक आवश्यकताओं को कम करने के लिये बनाया जाता है। ऐसी इमारतें पर्यावरण के अनुकूल तथा संसाधन कुशल होती हैं।
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