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बाढ़ जोखिम प्रबंधन हेतु सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाएँ

  • 13 Aug 2025
  • 57 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिससे अनुकूलन अत्यंत आवश्यक हो गया है। तंज़ानिया की म्सिम्बाज़ी बेसिन परियोजना (Msimbazi Basin Project) जैसी सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाएँ दिखाती हैं कि किस प्रकार प्रकृति-आधारित समाधान और आधुनिक अवसंरचना मिलकर जोखिम को कम कर सकते हैं तथा जलवायु अनुकूलन को मज़बूत बना सकते हैं, जो भारत की बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों के लिये महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

बाढ़ जोखिम प्रबंधन हेतु अग्रणी सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाएँ क्या हैं?

  • तंज़ानिया की म्सिम्बाज़ी बेसिन विकास परियोजना: दार एस सलाम (Dar es Salaam) में लागू यह विश्व बैंक-वित्तपोषित परियोजना नदी की ड्रेजिंग, जल निकासी में सुधार और अवसंरचना उन्नयन के माध्यम से बाढ़ को कम करने का लक्ष्य रखती है।
    • यह संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का पुनर्वास करती है और बाढ़ मैदानों को हरित एवं जलवायु-अनुकूल क्षेत्रों में परिवर्तित करती है।
  • नीदरलैंड के फ्लोटिंग होम्स:  कंक्रीट और काँच से बने ये बाढ़-रोधी घर बाढ़ के समय जल की सतह पर तैरते हैं, जिससे जल घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता। सौर पैनल और हीट एक्सचेंजर निरंतर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।
  • वियना की बाढ़ सुरक्षा प्रणाली: वर्ष 1969 में, वियना ने डेन्यूब नदी के समानांतर 21 किमी लंबा बाढ़ राहत चैनल बनाया।
    • यह चैनल अतिरिक्त बाढ़ के जल को अवशोषित करके मुख्य नदी पर दबाव कम करता है और शहर की सुरक्षा के लिये  केवल आवश्यकता पड़ने पर ही सक्रिय होता है।
  • चीन की स्पॉन्ज सिटी (Sponge Cities): ‘स्पॉन्ज सिटी’ प्रकृति-आधारित समाधानों का उपयोग करती हैं, जैसे पारगम्य सतहें और आर्द्रभूमियाँ, जो वर्षा जल को अवशोषित तथा संग्रहित करती हैं। ये पृथ्वी की प्राकृतिक जल अवशोषण प्रणाली का अनुकरण करती हैं, जबकि पारंपरिक शहर कठोर सतहों के कारण वर्षा जल को शीघ्रता से बहा देते हैं।
  • डेनमार्क की ग्रीन क्लाइमेट स्क्रीन: यह वर्षा जल प्रणाली जल को छत की नालियों से विलो (बेंत) पैनलों के पीछे स्थित मिनरल वूल तक पहुँचाती है, जो प्राकृतिक रूप से आर्द्रता को अवशोषित करती है।
    • अतिरिक्त जल को पौधों के गमलों या हरित क्षेत्रों में प्रवाहित किया जाता है, जिससे महंगे अवसंरचना निवेश या ऊर्जा उपयोग के बिना बाढ़ का जोखिम कम होता है।
  • टेक्सास – AI और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग: एरिज़ोना विश्वविद्यालय, गूगल का फ्लड हब AI  और सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके विस्तृत बाढ़ मानचित्र तैयार करता है तथा 7-दिन की पूर्वानुमान जानकारी प्रदान करता है, जिससे बाढ़ प्रबंधन में न्यायसंगतता व वैश्विक तैयारी में सुधार होता है।

भारत बाढ़ के जोखिम के प्रति कितना संवेदनशील है?

  • बाढ़-प्रवण क्षेत्र का विस्तार: भारत के कुल 329 मिलियन हेक्टेयर में से 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ की चपेट में है।
    • भारत विश्व स्तर पर सबसे आगे है, जहाँ बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 158 मिलियन से अधिक झुग्गी-झोपड़ी निवासी रहते हैं। 
    • इसके अलावा, भारत में बाढ़, तूफान और अन्य आपदाओं के कारण वर्ष 2024 के दौरान 5.4 मिलियन निवासियों का आंतरिक विस्थापन हुआ है, जो 12 वर्षों में सबसे अधिक संख्या है।
  • आर्थिक प्रभाव: पिछले दो दशकों के विश्लेषण से पता चलता है कि बाढ़ भारत के वार्षिक आर्थिक नुकसान का लगभग 63% कारण बनती है।
    • मानसून के पैटर्न अत्यधिक अप्रत्याशित हो गए हैं, जिसमें अचानक भारी वर्षा बाढ़ का कारण बनती है और लंबे समय तक शुष्क मौसम सूखे की स्थिति उत्पन्न करता है।

भारत में बाढ़ जोखिम प्रबंधन के लिये अपनाई गई प्रमुख रणनीतियाँ क्या हैं?

  • भारत में बाढ़ नियंत्रण मुख्यतः राज्य का विषय है, इसलिये बाढ़ नियंत्रण की ज़िम्मेदारी मुख्यतः राज्य सरकारों की है, जबकि केंद्र सरकार की भूमिका तकनीकी, सलाहकारी और सहायक के रूप में अधिक है।
  • इंजीनियरिंग/संरचनात्मक उपाय:
    • नदियों को आपस में जोड़ना: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) के तहत, नदियों को आपस में जोड़ने से बाढ़-प्रवण घाटियों, जैसे गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना, से अतिरिक्त पानी को पानी की कमी वाले क्षेत्रों में मोड़कर बाढ़ को रोकने में मदद मिल सकती है।
      • इससे जल प्रवाह का पुनर्वितरण होता है, भारी वर्षा के दौरान नदियों में अधिकतम बहाव कम हो जाता है तथा संवेदनशील क्षेत्रों में नदी के किनारों के उफान पर आने और जलप्लावन का खतरा न्यूनतम हो जाता है।
    • जलाशय: उच्च जलप्रवाह की अवधि में पानी को संग्रहित करके और चरम प्रवाह के बाद उसे छोड़कर बाढ़ की तीव्रता को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इनकी प्रभावशीलता उनकी क्षमता और बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की निकटता पर निर्भर करती है।
    • जलधारण बेसिन: ये प्राकृतिक अवसाद (Depressions) होते हैं जिन्हें तटबंध बनाकर और जल निकासी को नियंत्रित करके सुधारा जाता है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान और बिहार के बेसिन।
    • तटबंध: बाढ़ के पानी को बहकर बाहर जाने से रोकते हैं। इनका व्यापक उपयोग किया जाता है, लेकिन लंबे समय में नदी तल के ऊँचा होने और कटाव जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इनका रखरखाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर असम और बिहार जैसे राज्यों में।
    • चैनलाइज़ेशन: इसमें नदी के मार्ग को नियंत्रित करना और जलगतिक परिस्थितियों में सुधार करना शामिल है ताकि बाढ़ रोकी जा सके। ड्रेजिंग और डिसिल्टिंग नदियों को बाढ़ के पानी को कुशलतापूर्वक ले जाने में मदद करती है।
    • बाढ़ के पानी का मार्ग परिवर्तन: मार्ग परिवर्तन चैनल और स्पिलवे बाढ़ के पानी को संवेदनशील क्षेत्रों से दूर ले जाने में मदद करते हैं।
      • उदाहरणों में केरल में कृष्णा-गोदावरी जल निकासी योजना और थोट्टापल्ली स्पिलवे शामिल हैं।
  • प्रशासनिक/गैर-संरचनात्मक उपाय:
    • बाढ़ पूर्वानुमान और चेतावनी: केंद्रीय जल आयोग वास्तविक समय बाढ़ पूर्वानुमान प्रदान करता है, जो अधिकारियों को लोगों और संपत्ति को सुरक्षित क्षेत्रों में पहुँचाने में मदद करता है।
    • बाढ़ मैदान क्षेत्रीकरण: इसमें बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों को चिन्हित करना तथा बाढ़ से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के लिये इन क्षेत्रों में विकास को विनियमित करना शामिल है।
    • बाढ़ निरोधन: समें बस्तियों को बाढ़ के स्तर से ऊपर उठाना शामिल है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम जैसे क्षेत्रों में।

मेन्स के लिये कीवर्ड

  • “नदी एक संसाधन है, जोखिम नहीं”: बाढ़ नियंत्रण के लिये नदी पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना।
  • "पूर्वानुमान से पूर्व चेतावनी": प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के लिये AI, उपग्रह इमेजरी और जल विज्ञान मॉडलिंग का उपयोग।
  • "लचीलापन ही नया विकास है" – ऐसा विकास जो जलवायु संकटों को सहन कर सके और स्थायी रहे।
  • "समुदाय ही केंद्र में हैं" – लचीलापन और समय पर प्रतिक्रिया के लिये स्थानीय आबादी के साथ समावेशी योजना।

निष्कर्ष

भारत में बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिये 3F की आवश्यकता है - पूर्वानुमान (Forecasting), वित्तपोषण (Financing), और फ्रंटलाइन तैयारी (Frontline Preparedness) ताकि प्रतिक्रिया आधारित राहत से पहले से जोखिम कम करने की रणनीति की ओर बदलाव किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. संरचनात्मक बाढ़ नियंत्रण उपायों पर भारत की निर्भरता का आकलन कीजिये और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हुए प्रकृति-आधारित समाधानों को एकीकृत करने के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

मेन्स:

प्रश्न. नदियों को आपस में जोड़ने से सूखा, बाढ़ और बाधित नौवहन जैसी बहुआयामी अंतर-संबंधित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान प्राप्त किया जा सकता है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये । (2020)

प्रश्न. भारत में हैदराबाद और पुणे जैसे स्मार्ट शहरों सहित लाखों शहरों में भारी बाढ़ के कारणों का विवरण दीजिये, तथा स्थायी उपचारात्मक उपाय सुझाइये।  (2020)

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