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भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी निधि प्रवाह में आई बड़ी कमी

  • 01 May 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ?
वर्तमान कैलेंडर वर्ष में शुरुआती चार माह विदेशी निधि प्रवाह (Foreign fund flow) के संदर्भ में पिछले 7 वर्षों में सबसे खराब रहे हैं तथा इसमें बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आँकड़ों से पता चलता है कि इस साल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इक्विटी में केवल ₹8,460 करोड़ लगाए हैं, जो जनवरी-अप्रैल 2011 की अवधि के ₹4,712 करोड़ के बाद न्यूनतम है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2013 में शुरुआती चार महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने ₹60,000 करोड़ की शुद्ध खरीदारी की थी। 
  • बाज़ार प्रतिभागियों के अनुसार,  इस वर्ष मंद प्रवाहों को उभरते बाज़ारों में मंदी के वातावरण के साथ जोड़कर भी देखा जा सकता है जिससे भारत भी अछूता नहीं है।
  • पश्चिम एशिया में तनाव, अमेरिका और चीन के बीच संभावित व्यापार युद्ध की बढ़ती चिंता, तेल की कीमतों में होती वृद्धि जैसे कारणों से अनिश्चितताएँ उच्च स्तर पर बनी हुई हैं जिससे उभरते बाज़ारों में  विदेशों से फंडों का प्रवाह बाधित हो रहा है।
  • निवेशकों को विश्वास है कि अमेरिका में निवेश करके अधिक धन कमा सकते हैं क्योंकि वहाँ ब्याज़ दरें बढ़ रही हैं। 
  • वर्तमान कैलेंडर वर्ष में जनवरी माह में एफपीआई ₹13,781 करोड़ के शुद्ध खरीदार थे, लेकिन फरवरी माह में इन्होंने ₹11,423 करोड़ की बिकवाली की ।
  • तत्पश्चात्, मार्च माह में ₹11,654 करोड़ की शुद्ध खरीदारी की गई।
  • अप्रैल माह में एफपीआई ने ₹ 5,552 करोड़ की शुद्ध बिकवाली की।
  • ईपीएफआर ग्लोबल (EPFR Global) के अनुसार, भारतीय इक्विटी फंडों में चीन की तुलना में अधिक  बाह्य प्रवाह देखा गया जबकि भारत की संवृद्धि दर चीन से ज़्यादा थी।
  • सरकारी आँकड़ों से पता चला है कि 31 दिसंबर, 2017 को समाप्त तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.2% की गति से बढ़ी, जबकि चीन में यह वृद्धि 6.8% थी।
  • तेल की ऊँची कीमतों के कारण चालू खाता घाटे पर प्रभाव, विमुद्रीकरण के कारण बैंकिंग तंत्र पर प्रभाव और बैड लोन जैसे कारणों से निवेशकों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
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