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कृषि सब्सिडी: डब्ल्यूटीओ बनाम भारत

  • 23 May 2018
  • 8 min read

संदर्भ

ग्रामीण संकट से निपटने की दिशा में, इस वर्ष के केंद्रीय बजट में,  वित्त मंत्री द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत एक नए समझौते का वादा किया, जो उत्पादन की लागत का 150% होगा। हालाँकि, इससे संभावना जताई जा रही है कि इस नई नीति के कारण विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से भारत का  टकराव बढ़ सकता है।

नई एमएसपी नीति

  • सरकार द्वारा खरीफ बुवाई के मौसम शुरू होने से ठीक पहले, आने वाले हफ्तों में नई नीति के तहत समर्थन मूल्यों का पहला सेट घोषित करने की उम्मीद है।
  • दूसरा चरण, अक्टूबर से प्रारंभ होगा और यह सुनिश्चित करेगा कि एमएसपी के तहत 23 अधिसूचित फसलों हेतु किसानों को लाभान्वित करे।
  • ध्यातव्य है कि संबंधित विवरण नीतियों को नीति आयोग द्वारा तैयार किया जा रहा है। 
  • दरअसल यह उच्च एमएसपी संभावित रूप से भारतीय कृषि सब्सिडी को उस सीमा तक भंग कर देगा जो डब्ल्यूटीओ को स्वीकार्य लगता है।

अमेरिका का रुख

  • चीन के बाद,  अब अमेरिका ने अपना ध्यान भारत की ओर किया है।
  • अमेरिका द्वारा यह घोषणा की गई है कि वह भारत को डब्ल्यूटीओ में खींचगा, क्योंकि उसका दावा है कि भारत ने चावल और गेहूँ के लिये बाज़ार मूल्य समर्थन (एमपीएस) की सूचना नहीं दी है।
  • अमेरिका के मुताबिक, भारत के गेहूँ और चावल हेतु एमपीएस क्रमश: 10% की स्वीकार्य कट ऑफ के खिलाफ उत्पादन के कुल मूल्य का 60% और 70% से अधिक प्रतीत होता है।
  • अमेरिका ने भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के खिलाफ मामला भी दर्ज कराया है।

भारत का पक्ष

  • हालाँकि, भारत जून में पर डब्ल्यूटीओ की समिति में कृषि बैठक के दौरान आधिकारिक तौर पर ज़वाब देने की योजना बना रहा है।
  • भारत द्वारा कई योजनाओं की पहल जैसे बाज़ार पहुँच पहल (एमएआई), बाजार विकास सहायता (एमडीए) और भारत से व्यापार निर्यात योजना (मीस) मुख्य रूप से बेहतर निर्यात उन्मुख बुनियादी सुविधाओं, क्षमता निर्माण और निर्यात प्रतिस्पर्धा आदि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाता है।
  • इसके अलावा वे कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यातकों की भी सहायता करते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होता है।
  • अतः ये योजनाएँ  भारत में कृषि को लाभकारी बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण हैं  और इसलिए डब्ल्यूटीओ में बचाव के लायक हैं।
  • भारत का मानना है कि विकासशील देशों के लिये विशेष प्रावधान WTO का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
  • भारत को इस बात पर आपत्ति है कि विकास की गणना GDP के आँकड़ों के आधार पर की जा रही है, जबकि देश के 60 करोड़ लोग गरीबी की श्रेणी में गिने जाते हैं, जिनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
  • भारत को अपनी जीडीपी की वृद्धि दर पर गर्व है, लेकिन देश की वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता, जो कि बहुत कम है।
  • कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन ने कहा है कि भुखमरी को समाप्त करना तथा आम लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना कृषि संबंधी बातचीत का आधार होना ही चाहिये।
  • WTO द्वारा खाद्य सब्सिडी की गणना के तरीके में संशोधन की मांग भी भारत लगातार करता आ रहा है।
  • इससे पूर्व भी इस मुद्दे पर भारत को विकासशील देशों के समूह जी-33 का भी पूरा समर्थन मिलता रहा है।
  • गौरतलब है कि ब्यूनस आयर्स में डब्ल्यूटीओ की 11वीं मंत्रिस्तरीय समिति की बैठक से पूर्व, भारत और चीन ने संयुक्त रूप से डब्ल्यूटीओ को एक पत्र प्रस्तुत किया, जो वैश्विक कृषि व्यापार में विकृतियों को कम करने के लिये डब्ल्यूटीओ के एएमएस से संबंधित था।
  • पेपर में उन सब्सिडी को रेखंकित किया गया जो विकसित देशों ने अपने किसानों को इस दायरे से बाहर जाकर दिया था।
  • छह औद्योगिक राष्ट्र अपनी कृषि सब्सिडी के लिये समग्र एएमएस के हकदार हैं, जिसमें कुल उत्पादन के मूल्य का 10% तक सब्सिडी में शामिल हैं।
  • इससे उन्हें व्यक्तिगत उत्पादों के लिये सब्सिडी में हेरफेर करने का मौका मिलता है उदाहरण के लिए, अमेरिका और यूरोपीय संघ में उत्पाद-विशिष्ट समर्थन कई फसलों के लिये 50% से अधिक है और अमेरिका में चावल के लिये यह  89% तक पहुँचता है।
  • दूसरी तरफ, विकासशील देश 10% की उत्पाद-विशिष्ट न्यूनतम सीमा से फँस गए हैं, क्योंकि नियमों के मुताबिक कोई फसल उत्पादन के मूल्य के 10% से अधिक नहीं हो सकती है।

आगे की राह

  • हालाँकि, भारत को डब्ल्यूटीओ द्वारा परिभाषित संपूर्ण सब्सिडी की परिभाषा पर सवाल उठाने की ज़रूरत है।
  • अभी यह सवाल प्रासंगिक नहीं होगा कि सरकार विकृत व्यापार से बचने के लिये किसानों को कितना समर्थन प्रदान कर सकती है अथवा नहीं।
  • इसके अलावा, विकासशील देशों में छोटे किसान और गरीब उपभोक्ता कमोडिटी बाज़ारों में अस्थिर मूल्य गतिविधियों की सबसे अधिक चपेट में हैं। अतः इस मुद्दे पर डब्ल्यूटीओ में जाने से पूर्व विकासशील देशों का समर्थन प्राप्त करना भी उचित होगा।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान सब्सिडी की गणना के लिये, डब्ल्यूटीओ आधार वर्ष के रूप में 1986-88  की वैश्विक कीमतों का औसत उपयोग करता है, इसलिए चल रहे एमएसपी और इन संदर्भ मूल्यों के बीच का अंतर बहुत अधिक दिखता है।
  • केंद्र सरकार को डब्ल्यूटीओ सब्सिडी की गणना के तरीके के साथ-साथ समृद्ध देशों द्वारा अपने किसानों का समर्थन करने संबंधित तरीके के विषय में अपना मामला उठाना चाहिए।
  • यह भी महत्त्वपूर्ण है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के सरकार के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य में भी यह एक अहम पहल साबित होगा। 
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