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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

फेसियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी

  • 22 Aug 2022
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फेसियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT), सूचना का अधिकार, आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022, बायोमेट्रिक प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता

मेन्स के लिये:

फेसियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी , एफआरटी के उपयोग, एफआरटी में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली स्थित डिजिटल अधिकार संगठन, इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन द्वारा प्राप्त सूचना का अधिकार (RTI) प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि दिल्ली पुलिस अपनी फेसियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) प्रणाली द्वारा 80% से अधिक फेस मैच वाले मामले को सकारात्मक परिणाम के रूप  में चिह्नित करती है।

दिल्ली पुलिस द्वारा वर्ष 2022 के आरटीआई के जवाब से प्राप्त परिणाम:

  • सूचना का अधिकार प्रतिक्रियाएँ:
    • फेसियल रिकॉग्निशन की सीमा:
      • दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया है कि 80% से अधिक समानता वाले मामले को सकारात्मक परिणाम के रूप में माना जाता है, जबकि 80% समानता से कम समानता वाले मामले को झूठे सकारात्मक परिणाम के रूप में माना जाता है, जिसके लिये अतिरिक्त सबूत की आवश्यकता होती है।
    • डेटा का संग्रहण:
      • दिल्ली पुलिस कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की धारा 3 और 4 के तहत एकत्र की गई तस्वीरों/वीडियो का मिलान करती है, जिसे अब आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
  • उत्पन्न चिंताएँ:
    • 80% की सीमा:
      • यह स्पष्ट नहीं है कि 80% को सकारात्मक और झूठे सकारात्मक के बीच की सीमा के रूप में क्यों चुना गया है।
      • 80% से कम परिणामों के वर्गीकरण को नकारात्मक के बजाय झूठे सकारात्मक के रूप में दर्शाता है इसका अर्थ है कि दिल्ली पुलिस अभी भी 80% से कम परिणामों की जाँच कर सकती है
        • इससे एक ही परिवार के समान चेहरे वाले सदस्यों जैसे कि विस्तारित परिवारों या समुदायों को गलत आरोपों में लक्षित किया जा सकता है।
        • इसका परिणाम उन समुदायों को लक्षित करना हो सकता है जिन पर पहले से कोई आपराधिक आरोप है (जो अभी तक साबित नही हुआ है) और जो कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा भेदभाव का सामना कर चुके हैं।
    • आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022:
      • यह आशंका है कि आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 डेटा के संग्रह और प्रसंस्करण के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सर्वोत्तम प्रथाओं के उल्लंघन में व्यक्तिगत डेटा के व्यापक संग्रह को बढ़ावा देगा।

फेसियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी:

Biometrics-Face-Recognition

  • परिचय:
    • फेशियल रिकग्निशन एक एल्गोरिथम-आधारित तकनीक है जो किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं की पहचान और मानचित्रण करके चेहरे का एक डिजिटल नक्शा बनाता है, जो तब उस डेटाबेस से मिलान करती है जिस तक उसकी पहुँच होती है।
    • ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (AFRS) में बड़े डेटाबेस (जिसमें लोगों के चेहरों की तस्वीरें और वीडियो होते हैं) का इस्तेमाल व्यक्ति के चेहरे का मिलान करने और उसकी पहचान करने के लिये किया जाता है।
    • सीसीटीवी फुटेज से ली गई एक अज्ञात व्यक्ति की छवि की तुलना मौजूदा डेटाबेस से की जाती है, जो पैटर्न-खोज और मिलान के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग करती है।
  • कार्य:
    • चेहरे की पहचान प्रणाली मुख्य रूप से कैमरे के माध्यम से चेहरे और उसकी विशेषताओं को कैप्चर करके और फिर विभिन्न प्रकार के सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके काम करती है।
    • इसकी विशेषताओं के साथ कैप्चर किया गया चेहरा एक डेटाबेस में संग्रहीत किया जाता है जिसे किसी भी प्रकार के सॉफ़्टवेयर के साथ एकीकृत किया जा सकता है जिसका उपयोग सुरक्षा उद्देश्यों, बैंकिंग सेवाओं आदि के लिये किया जा सकता है।
  • उपयोग:
    • 1:1 सत्यापन:
      • चेहरे का मानचित्र उनकी पहचान को प्रमाणित करने के लिये डेटाबेस पर व्यक्ति की तस्वीर के साथ मिलान करने के उद्देश्य से प्राप्त किया जाता है।
        • उदाहरण के लिये, फ़ोन को अनलॉक करने हेतु 1:1 सत्यापन का उपयोग किया जाता है।
    • 1: n सत्यापन:
      • चेहरे का मानचित्र एक तस्वीर या वीडियो से प्राप्त किया जाता है और फिर तस्वीर या वीडियो में व्यक्ति की पहचान करने के लिये पूरे डेटाबेस के साथ मिलान किया जाता है।
        • दिल्ली पुलिस जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ आमतौर पर 1: n सत्यापन के लिये FRT खरीदती हैं।
  • आवश्यकता:
    • प्रमाणीकरण:
      • इसे प्रमाणिकता एवं पहचान के लिये उपयोग में लाया जाता है एवं इसकी सफलता दर लगभग 75% है।
    • फोर्स मल्टीप्लायर:
      • भारत में प्रति एक लाख नागरिकों पर 144 पुलिसकर्मी हैं। अत: फेस रिकॉग्निशन प्रणाली यहाँ बल गुणक (Force Multiplier) के रूप में कार्य कर सकती है।
        • क्योंकि इसे न तो अधिक कार्यबल की आवश्यकता है और न ही नियमित उन्नयन की।
      • अतः यह तकनीक वर्तमान जनशक्ति/कार्यबल के साथ मिलकर एक गेम चेंजर के रूप में कार्य कर सकती है।

दिल्ली पुलिस द्वारा फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का उपयोग:

  • लापता बच्चों का पता लगाने और उनकी पहचान करने के उद्देश्य से दिल्ली पुलिस ने सबसे पहले FRT का उपयोग किया।
    • साधन हलदर बनाम एनसीटी दिल्ली में दिल्ली उच्च न्यायालय के वर्ष 2018 के निर्देश के अनुसार खरीद को अधिकृत किया गया था।
  • वर्ष 2020 में दिल्ली पुलिस ने कहा कि "हालाँकि उन्होंने साधना हलदर निर्देश के अनुसार FRT प्राप्त किया जो विशेष रूप से लापता बच्चों को खोजने से संबंधित था, वे पुलिस जाँच के लिये FRT का उपयोग कर रहे थे"।
    • FRT उपयोग के लिये उद्देश्य का विस्तार स्पष्ट रूप से 'फ़ंक्शन क्रीप' का एक उदाहरण प्रदर्शित करता है जिसमें तकनीक या प्रणाली धीरे-धीरे अपने मूल उद्देश्य से व्यापक कार्यों को शामिल करने और पूरा करने हेतु अपने दायरे को विस्तृत करती है।
  • इसके परिणामस्वरूप दिल्ली पुलिस ने FRT का उपयोग जाँच उद्देश्यों के लिये किया है और विशेष रूप से वर्ष 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों, वर्ष 2021 में लाल किले की हिंसा और वर्ष 2022 जहाँगीरपुरी दंगों के दौरान भी किया है।

फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी की चुनौतियाँ:

  • त्रुटिपूर्ण और दुरुपयोग:
    • प्रौद्योगिकी के त्रुटिपूर्ण होने के कारण "गलत पहचान" से संबंधित मुद्दे।
    • प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग के कारण "बड़े पैमाने पर निगरानी" से संबंधित मुद्दे।
  • नस्ल और लिंग:
    • यह भी बताया गया है कि नस्ल और लिंग के आधार पर इसकी सटीकता दर में भारी गिरावट आई है।
      • इसका परिणाम असत्य सकारात्मक (False Positive) हो सकता है, जहाँ किसी व्यक्ति को किसी और के रूप में गलत पहचाना जाता है, या असत्य नकारात्मक (False Negative) जहाँ एक व्यक्ति को स्वयं के रूप में सत्यापित नहीं किया जाता है।
      • असत्य सकारात्मक परिणाम के मामले गलत पहचान वाले व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह पैदा कर सकते हैं।
  • बहिष्करण:
    • असत्य नकारात्मक परिणामों के मामले भी व्यक्ति को आवश्यक योजनाओं तक पहुँचने से बाहर कर सकते हैं जो FRT को पहुँच प्रदान करने के साधन के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, आधार के तहत बायोमेट्रिक आधारित प्रमाणीकरण की विफलता जिसके कारण कई लोगों को आवश्यक सरकारी सेवाएँ प्राप्त करने से बाहर रखा गया है, जिसके कारण भुखमरी से मौतें हुई हैं।
  • गोपनीयता का उल्लंघन:
    • हालांँकि सरकार डेटा गोपनीयता व्यवस्था जैसे कानूनी ढांँचे के माध्यम से गोपनीयता के मुद्दे को संबोधित करने की योजना बना रही है, लेकिन इस प्रकार की तकनीक के उपयोग से प्राप्त होने वाले उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए यह आपसी हितों में टकराव उत्पन्न कर सकता है।
  • विश्वसनीयता और प्रामाणिकता:
    • चूंँकि एकत्र किये गए डेटा का उपयोग आपराधिक मुकदमे के दौरान न्यायालय में किया जा सकता है, इसलिये मानकों और प्रक्रिया के साथ-साथ डेटा की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
  • डेटा सुरक्षा कानून की अनुपस्थिति:
    • डेटा सुरक्षा कानूनों (Data Protection Laws) की अनुपस्थिति में FRT सिस्टम, जो उपयोगकर्त्ता द्वारा डेटा के संग्रह और भंडारण में आवश्यक सुरक्षा उपायों के लिये अनिवार्य होगा, भी चिंता का विषय है।

आगे की राह

  • वर्तमान डिजिटल युग में डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित या स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता। इस संदर्भ में भारत को एक मज़बूत डेटा संरक्षण व्यवस्था स्थापित करनी चाहिये।
  • सरकार को सूचना के अधिकार को मज़बूत बनाने के साथ ही नागरिकों की निजता का भी सम्मान करना होगा।
    • इसके अतिरिक्त, पिछले दो से तीन वर्षों में हुई तकनीकी उन्नयन को भी यह जानते हुए संबोधित करने की आवश्यकता है कि उनमें कानून को निरर्थक बनाने की क्षमता है।
  • हर देश की अपनी चुनौतियाँ होती हैं जो अतुलनीय होती हैं।
    • भारत की आबादी के आकार और तुलनात्मक रूप से कम कर्मचारियों को देखते हुए, इस तरह की नवजात तकनीक का सुनियोजित उपयोग एक संभावित समाधान है, बशर्ते गोपनीयता के मुद्दे सहित इसकी अंतर्निहित चिंताओं को दूर करने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय हों।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पहचान मंच 'आधार' ओपन "एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई)" प्रदान करता है। इसका क्या तात्पर्य है? (2018)

  1. इसे किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में एकीकृत किया जा सकता है।
  2. परितारिका का उपयोग करके ऑनलाइन प्रमाणीकरण संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) दोनों 1 और 2
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • एपीआई एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का संक्षिप्त रूप है, जो एक मध्यस्थ सॉफ्टवेयर है जो दो अनुप्रयोगों को एक दूसरे के साथ संचार करने की अनुमति देता है।
  • ओपन एपीआई आधार सक्षम अनुप्रयोगों के निर्माण की अनुमति देता है। ऐसे एप्लीकेशन ऐप या वेबसाइट को आधार के साथ एकीकृत कर सकते हैं और प्रमाणीकरण सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • एपीआई मल्टी-मोड प्रमाणीकरण (आइरिस, फिंगरप्रिंट, ओटीपी और बायोमेट्रिक) का समर्थन करते हैं। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


Q. फिंगरप्रिंट स्कैनिंग के अलावा किसी व्यक्ति की बायोमेट्रिक पहचान में निम्नलिखित में से किसका उपयोग किया जा सकता है? (2014)

  1. आईरिस स्कैनिंग
  2. रेटिनल स्कैनिंग
  3. आवाज़ पहचान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये :

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • बॉयोमीट्रिक सत्यापन कोई भी माध्यम है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को एक या अधिक विशिष्ट जैविक लक्षणों का मूल्यांकन करके विशिष्ट रूप से पहचाना जा सकता है।
  • विशिष्ट पहचानकर्ताओं में उंगलियों के निशान, हाथ की ज्यामिति, ईयरलोब ज्यामिति, रेटिना और आईरिस पैटर्न, आवाज तरंगें, डीएनए और हस्ताक्षर शामिल हैं। बॉयोमीट्रिक सत्यापन का सबसे पुराना रूप फिंगरप्रिंटिंग है।
  • बॉयोमीट्रिक पहचान के लिये दी गई सभी प्रक्रियाओं, अर्थात् आइरिस स्कैन, वॉयस रिकग्निशन और रेटिनल स्कैनिंग का उपयोग किया जा सकता है। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्र. ई-गवर्नेंस न केवल नई प्रौद्योगिकी की शक्ति के उपयोग के बारे में है, बल्कि सूचना के 'उपयोग मूल्य' के महत्त्व के बारे में भी है। व्याख्या कीजिये। (2018)

प्र. सरकार की दो समानांतर योजनाएँ, आधार कार्ड और एनपीआर, एक स्वैच्छिक और दूसरी अनिवार्य के रूप में, ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस और मुकदमेबाजी भी की है। गुण-दोष के आधार पर चर्चा कीजिये कि क्या दोनों योजनाओं को एक साथ चलाने की आवश्यकता है। विकासात्मक लाभ और समान विकास हासिल करने के लिये योजनाओं की क्षमता का विश्लेषण कीजिये। (2014)

स्रोत: द  हिंदू

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