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भारतीय राजनीति

संसद में भाषण का कुछ हिस्सा रिकॉर्ड से हटाया गया

  • 10 Feb 2023
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

असंसदीय शब्द, एक्सपंजिंग, संविधान का अनुच्छेद 105(2)।

मेन्स के लिये:

एक्सपंजिंग पर नियम, एक्सपंजिंग से संबंधित प्रक्रिया।

7 फरवरी, 2023 को लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा दिये गए भाषण के एक हिस्से को अध्यक्ष के आदेश से संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया।

  • भाषण का कौन सा हिस्सा हटाया जाना है इस पर निर्णय लेने का अधिकार सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होता है।

रिकॉर्ड से हटाने के संबंध में नियम:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद सदस्यों को संसद में उनके बयान के लिये न्यायालयी कार्यवाही से सुरक्षा प्राप्त है।
    • हालाँकि उनके भाषण संसद के नियमों के अनुशासन, सदस्यों की अच्छी समझ और अध्यक्ष द्वारा कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन हैं।
  • लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के नियम संख्या 380 के तहत अध्यक्ष को वाद-विवाद में प्रयुक्त मानहानिकारक, अशोभनीय अथवा असंसदीय शब्द या अभिव्यक्ति को हटाने का अधिकार प्राप्त है।

असंसदीय अभिव्यक्तियाँ:

  • लोकसभा सचिवालय द्वारा बड़ी मात्रा में असंसदीय अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट की गई हैं।
  • इस पुस्तक में ऐसे शब्द अथवा अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें अधिकांश संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाएगा लेकिन इसमें ऐसी सामग्री भी शामिल है जो हानिरहित और अहानिकर है।
  • पीठासीन अधिकारियों- लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा अध्यक्ष का काम ऐसे शब्दों को संसद के रिकॉर्ड से अलग रखना है।

किसी शब्द (अथवा भाषण का भाग) हटाने के निर्णय की प्रक्रिया:

  • रिपोर्टिंग अनुभाग के प्रमुख की सिफारिश के आधार पर और उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए जिसमें शब्द या वाक्य का उपयोग किया गया था, स्पीकर नियम 380 के तहत शब्द या भाषण के हिस्से को हटाने का निर्णय लेता है।
  • किसी टिप्पणी को हटाना है या नहीं, यह तय करने में संदर्भ महत्त्वपूर्ण है। यथासंभव कम-से-कम शब्दों को हटाने पर ज़ोर दिया जाता है।
    • नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो भाग हटाया गया है उसे एक तारांकित चिह्न द्वारा दर्शाया जाएगा और व्याख्यात्मक पादटिप्पणी/फुटनोट को कार्यवाही में निम्नानुसार शामिल किया जाएगा- 'अध्यक्ष के आदेशानुसार निष्काषित'।
  • ये निकाले गए अंश संसद के रिकॉर्ड में मौजूद नहीं हैं, साथ ही इन्हें मीडिया द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जा सकता है, हालाँकि उन्हें कार्यवाही के लाइव प्रसारण के दौरान सुना जा सकता है।
  • हालाँकि सोशल मीडिया के प्रसार ने निष्कासन आदेशों को लागू करने में चुनौतियाँ पेश की हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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