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केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड के विरुद्ध जाँच

  • 23 Nov 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

मसाला बॉण्ड, केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड, प्रवर्तन निदेशालय, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम

मेन्स के लिये 

मसाला बॉण्ड और इससे संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलू

चर्चा में क्यों?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) के विरुद्ध विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के प्रावधानों का उल्लंघन करने के मामले में प्रारंभिक जाँच शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि प्रवर्तन निदेशालय की यह जाँच भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की उस रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड ने केंद्र सरकार की अनुमति के बिना मसाला बॉण्ड जारी करके 2,150 करोड़ रुपए जुटाए थे।

पृष्ठभूमि 

  • वर्ष 2019 में केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) ने मसाला बॉण्ड जारी करके 2150 करोड़ रुपए जुटाए थे, जिसके साथ ही KIIFB अंतर्राष्ट्रीय ऋण बाज़ार में मसाला बॉण्ड के माध्यम से धन एकत्रित करने वाली पहली सरकारी एजेंसी बन गई थी।
  • हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 293 (1) के मुताबिक, किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति, भारत के क्षेत्र के भीतर उधार लेने तक ही सीमित है, वहीं अनुच्छेद 293 (3) में कहा गया है कि राज्य, केंद्र सरकार की सहमति के बिना कोई भी ऋण नहीं ले सकते हैं।
  • इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) ने मसाला बॉण्ड का प्रयोग करके धन जुटाकर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

क्या होते हैं मसाला बॉण्ड?

  • मसाला बॉण्ड, विदेशी निवेशकों से धन एकत्रित करने के लिये देश के बाहर किसी भारतीय संस्था द्वारा जारी किये जाने वाले बॉण्ड होते हैं।
  • इस प्रकार के बॉण्ड की सबसे मुख्य बात यह है कि इन्हें विदेशी मुद्रा में नहीं बल्कि भारतीय मुद्रा में जारी किया जाता है।
  • पहला मसाला बॉण्ड, वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा भारत की एक आधारभूत ढाँचे से संबंधित परियोजना के लिये जारी किया गया था।
    • इस बॉण्ड का नामकरण भी अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम द्वारा ही किया गया था।

केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB)

  • ‘केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड’ का प्रबंधन करने हेतु KIIFB वर्ष 1999 में केरल सरकार के वित्त विभाग के तहत अस्तित्त्व में आया था।
  • इस फंड का मुख्य उद्देश्य केरल राज्य में महत्त्वपूर्ण और बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु निवेश प्रदान करना था।
  • वर्ष 2016 में केरल सरकार ने KIIFB की भूमिका को एक निगम इकाई (Corporate Entity) के रूप में परिवर्तित कर दिया, जिसका उद्देश्य बजट के दायरे से बाहर की विकासात्मक परियोजनाओं हेतु संसाधन जुटाना था।

प्रभाव

  • प्रवर्तन निदेशालय की जाँच के कारण केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) को फंड की कमी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इस जाँच के कारण निवेशक बोर्ड के मसाला बॉण्ड नहीं खरीदेंगे।
    • ध्यातव्य है कि यह जाँच ऐसे समय में शुरू हुई है जब अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) ने KIIFB को ऋण देने की इच्छा व्यक्त की थी, इस जाँच के कारण KIIFB को मिलने वाले इस ऋण पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

केरल सरकार का पक्ष

  • केरल सरकार का मुख्य तर्क है कि राज्य सरकार द्वारा दी गई गारंटी को राज्य सरकार द्वारा लिये गए ऋण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के इस मत का, कि सरकार द्वारा जिस ऋण की गारंटी दी जाती है वह सरकार का ही ऋण होता है, कई अन्य महत्त्वपूर्ण निकायों जैसे भारतीय खाद्य निगम (FCI) और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) आदि पर काफी दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। 
    • ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) को अपनी गारंटी पर बजट से अलग 2 लाख करोड़ रुपए तक उधार लेने की अनुमति देती है।
  • केरल सरकार के मुताबिक, केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) को कानूनी रूप से राज्य सरकार से अलग एक निगम इकाई के रूप में देखा जाना चाहिये, जो कि केवल सरकार से जुड़ी हुई है, न कि सरकार का हिस्सा है। KIIFB एक निगम इकाई है और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के मुताबिक, निगम इकाइयाँ विदेश बाज़ार से धन जुटाने के लिये मसाला बॉण्ड जारी कर सकती हैं।

स्रोत: द हिंदू

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