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भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक पूंजी ढाँचा एवं RBI द्वारा लाभांश अंतरण

  • 22 May 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), आर्थिक पूंजी ढाँचा (ECF), आकस्मिक जोखिम बफर (CRB), बिमल जालान समिति, तरलता समायोजन सुविधा (LAF), खुले बाज़ार परिचालन (OMOs)मौद्रिक नीति, सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

मेन्स के लिये:

आर्थिक पूंजी ढाँचा (ECF), RBI द्वारा सरकार को अधिशेष अंतरण, संबंधित प्रावधान एवं महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के केंद्रीय निदेशक मंडल ने जोखिम प्रावधान के साथ केंद्रीय बैंक से सरकार को किये जाने वाले लाभांश (अधिशेष) वितरण के निर्धारण के क्रम में आर्थिक पूंजी ढाँचे (ECF) का आकलन किया।  

आर्थिक पूंजी ढाँचा (ECF) क्या है?

  • परिचय: यह RBI द्वारा जोखिम प्रावधानों के उचित स्तर तथा अधिशेष (लाभ) को निर्धारित करने के क्रम में अपनाया गया एक संरचित तंत्र है। इस अधिशेष को RBI अधिनियम, 1934 की धारा 47 के तहत भारत सरकार को अंतरित किया जा सकता है।
    • इसकी सिफारिश बिमल जालान (RBI के पूर्व गवर्नर) समिति (वर्ष 2018) द्वारा की गई थी और इसे औपचारिक रूप से वर्ष 2019 में अपनाया गया था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य मौद्रिक एवं वित्तीय स्थिरता के क्रम में पर्याप्त वित्तीय बफर बनाए रखने के साथ विवेकपूर्ण अधिशेष वितरण के बीच संतुलन बनाना है।
    • यह (CRB) RBI की बैलेंस शीट का 5.5% से 6.5% तक का वित्तीय सुरक्षा संजाल है जिससे संकट के समय ऋणदाता के रूप में कार्य करने की इसकी स्थिरता और क्षमता सुनिश्चित होती है।
      • यह RBI को मुद्रा अस्थिरता तथा आर्थिक वित्तीय संकट जैसे अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव के प्रति वित्तीय सुरक्षा के रूप में आकस्मिक जोखिम बफर (CRB) बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
  • संशोधित ECF (बिमल जालान समिति की सिफारिशें, 2019):
    • वास्तविक इक्विटी (आकस्मिक निधि-CF): आकस्मिक निधि, अप्रत्याशित क्षति के विरुद्ध बफर के रूप में भूमिका निभाती है और इसे RBI की बैलेंस शीट के 5.5% से 6.5% के बीच बनाए रखा जाता है। 
      • इस सीमा से अतिरिक्त राशि सरकार को अंतरित कर दी जाती है। RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा इस लक्ष्य को 5.5% की निम्नतम सीमा के रूप में निर्धारित किया गया है।
    • आर्थिक पूंजी (पूंजी और सामान्य जोखिम खाता- CGRA): CGRA में RBI की पूंजी, भंडार, जोखिम प्रावधान एवं विनिमय दरों, स्वर्ण कीमतों और ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न पुनर्मूल्यांकन शेष शामिल हैं।  
    • इसे बैलेंस शीट आकार के 20.8% से 25.4% के बीच बनाए रखा जाना है तथा किसी भी अतिरिक्त राशि को केंद्र को हस्तांतरित किया जा सकता है।
  • समीक्षा तंत्र: समिति की सिफारिशों के अनुसार, उभरती आर्थिक स्थितियों और जोखिमों के समायोजन के लिये ECF की प्रत्येक 5 वर्ष में समीक्षा की जाती है तथा नवीनतम समीक्षा अगस्त 2024 में की गई थी।
  • लाभांश हस्तांतरण में रुझान: RBI द्वारा सरकार को लाभांश हस्तांतरण वित्त वर्ष 2021-22 में 30,307 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में अनुमानित 2.5-3 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
    • इस तीव्र वृद्धि का श्रेय डॉलर की बिक्री से होने वाली मज़बूत आय, स्वर्ण की बढ़ती कीमतों और सरकारी प्रतिभूतियों में वृद्धि को दिया जाता है।
    • इस उच्च लाभांश से राजकोषीय घाटे को प्रबंधित करने, बैंकिंग तरलता को बढ़ाने और संभावित रूप से अल्पकालिक ब्याज दरों को आसान बनाने में सहायता मिलेगी।

RBI के अधिशेष हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाले प्रावधान क्या हैं?

  • RBI अधिनियम, 1934: RBI अधिनियम की धारा 47 में यह प्रावधान है कि आकस्मिकता निधि (CF) और आस्ति विकास निधि (ADF) के लिये प्रावधान करने के बाद RBI का निवल लाभ केंद्र सरकार को हस्तांतरित किया जाना चाहिये।
    • धारा 48 RBI को अपनी आय पर आयकर या सुपर टैक्स का भुगतान करने से छूट देती है, जिससे अधिशेष को राजकोष में सीधे स्थानांतरित किया जा सके।
  • समिति की सिफारिशें: ऐतिहासिक रूप से, RBI अपने आंतरिक भंडार को मज़बूत करने के लिये अपने लाभ का एक बड़ा सुरक्षित रखता है।
    • पिछले कुछ वर्षों में, कई विशेषज्ञ समितियों ने RBI के पूंजी बफर की पर्याप्तता और हस्तांतरित किये जाने वाले अधिशेष की मात्रा की जाँच की है:
      • वी. सुब्रह्मण्यम समिति (1997)
      • उषा थोराट समिति (2004)

      • वाई.एच. मालेगाम समिति (2013) ने विवेकपूर्ण भंडार बनाए रखते हुए सरकार को अधिक हस्तांतरण की सिफारिश की।
      • बिमल जालान समिति (2018) ने राजकोषीय आवश्यकताओं के साथ जोखिम प्रावधान को संतुलित करते हुए संशोधित आर्थिक पूंजी ढाँचा (ECF) पेश किया।
    • इन सिफारिशों, विशेषकर मालेगाम और जालान समितियों की सिफारिशों के बाद, RBI ने सरकार को अपने अधिशेष हस्तांतरण में उत्तरोत्तर वृद्धि की है, जिससे समष्टि आर्थिक स्थिरता और सार्वजनिक व्यय के लिये राजकोषीय स्थान उपलब्ध हुआ है।

RBI के प्रमुख आय एवं व्यय शीर्ष क्या हैं?

आय का स्रोत

  • रुपए प्रतिभूतियों पर ब्याज: रुपए-मूल्यवर्गित सरकारी प्रतिभूतियों को धारण करने से अर्जित आय, उनकी बिक्री या मोचन पर लाभ या हानि के साथ-साथ मूल्यह्रास और परिशोधन व्यय के लिये समायोजित।

तरलता समायोजन सुविधा (LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) से ब्याज: LAF और MSF तंत्र के तहत परिचालन के माध्यम से अर्जित शुद्ध ब्याज।

  • ऋण और अग्रिम पर ब्याज: केंद्र और राज्य सरकारों, बैंकों, वित्तीय संस्थानों और RBI के कर्मचारियों को दिये गए ऋणों के ब्याज से आय।
  • विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों से ब्याज: RBI द्वारा धारित विदेशी मुद्रा-मूल्यवान परिसंपत्तियों पर ब्याज से आय।

ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO)

व्यय

जोखिम प्रावधान: RBI 2 प्रमुख जोखिम निधि रखता है:

  • आकस्मिक निधि (CF): प्रतिभूतियों के मूल्य में मूल्यह्रास और मौद्रिक नीति परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाले जोखिमों जैसी अप्रत्याशित आकस्मिकताओं को कवर करने के लिये अलग से रखी गई निधि।
  • परिसंपत्ति विकास निधि (ADF): सहायक कंपनियों और संबद्ध संस्थानों में निवेश के साथ-साथ आंतरिक पूंजीगत व्यय के लिये आवंटित राशि।
  • मुद्रा मुद्रण लागत: बैंक नोटों की छपाई से संबंधित व्यय।
  • एजेंसी शुल्क: बैंकों, प्राथमिक डीलरों और मुद्रा वितरण एवं सरकारी प्रतिभूतियों के परिचालन में शामिल अन्य एजेंटों को दिया जाने वाला कमीशन।
  • परिचालन व्यय: RBI के कर्मचारियों के वेतन, लाभ और अन्य संबंधित लागतें।
  • जमा और ऋण पर दिया गया ब्याज: ग्राहकों द्वारा जमा की गई धनराशि, अंतर-बैंक ऋण, केंद्रीय बैंक की सुविधाओं या बॉण्ड जैसे ऋण साधनों पर ब्याज भुगतान के रूप में बैंक द्वारा किया गया व्यय।

आधिक्य

  • कुल आय (आय के स्रोत) में से कुल व्यय (खर्च) को घटाने पर प्राप्त शुद्ध आय।
  • वित्तीय स्थिरता और आपात स्थितियों के लिये आरक्षित निधि और आकस्मिक प्रावधान।

RBI द्वारा सरकार को अधिशेष हस्तांतरण का क्या महत्त्व है?

  • राजकोषीय घाटे को कम करना: गैर-कर राजस्व में वृद्धि करके वित्त वर्ष 2024-25 में 5.1% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में सरकार की सहायता करता है।
  • राजस्व सृजन में वृद्धि: यह एक प्रमुख गैर-कर राजस्व स्रोत के रूप में कार्य करता है, जिससे सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है तथा आर्थिक विकास को समर्थन मिलता है।
  • सरकारी ऋण में कमी: सकल ऋण में 1 ट्रिलियन रुपए तक की कमी हो सकती है, जिससे पूंजीगत परियोजनाओं के लिये धनराशि उपलब्ध हो सकेगी।
  • ऋण लेने की लागत में कमी: ऋण लेने की कम ज़रूरतें G-Sec प्रतिफल को कम कर सकती हैं, जिससे सरकार का ऋण सेवा भार कम हो सकता है।
  • ब्याज दरों पर नियंत्रण: गिरती हुई सॉवरेन यील्ड व्यापक रूप से बाज़ार दरों को प्रभावित करती है, जिससे व्यवसायों और परिवारों के लिये ऋण लेना सस्ता हो जाता है।

निष्कर्ष:

आर्थिक पूंजी ढाँचा RBI की स्वायत्तता और सरकार की राजकोषीय आवश्यकताओं के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। स्पष्ट रूप से जोखिम बफर और अधिशेष हस्तांतरण नियम निर्धारित करके, यह वित्तीय स्थिरता और राजकोषीय विवेक को बढ़ावा देता है। यह ढाँचा सतत् आर्थिक विकास का समर्थन करता है और व्यापक रूप से आर्थिक अनुकूलता को मज़बूत करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (ECF) क्या है और यह भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता एवं सरकार की राजकोषीय आवश्यकताओं के बीच संतुलन किस प्रकार बनाए रखता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह RBI की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
  2.  यह RBI के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
  3.  यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)

प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
  3.  बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

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