इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

ई-कचरा उत्पादन

  • 19 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ई-कचरा

मेन्स के लिये:

ई-कचरा के कारक, प्रभाव और समापन हेतु प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस के रूप में मनाया गया।

  • इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी।
  • इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में हर साल उत्पन्न होने वाले लाखों टन ई-कचरे के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, जिसका पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 के कार्यान्वयन के लिये निर्देश जारी किये थे।

अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस:

  • इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस ई-उत्पाद सर्कुलरिटी को एक वास्तविकता बनाने में प्रत्येक व्यक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2021 तक ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति औसतन 7.6 किलोग्राम ई-कचरा पैदा करेगा, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर वर्ष में कुल 57.4 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न होगा।
  • इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का केवल 17.4%, जो खतरनाक यौगिकों और मूल्यवान सामग्रियों का संयोजन है, को उचित रूप से एकत्र कर संसाधित और पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु 

  • ई - कचरा:
    • ई-कचरा इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और इस शब्द का प्रयोग चलन से बाहर हो चुके पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है। इसमें उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल होते हैं।
    • इसे दो व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत 21 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
      • सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उपकरण।
      • उपभोक्ता इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स।
    • भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है, जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए। इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 अधिनियमित किया गया था।
    • घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
    • मूल रूप से बेसल कन्वेंशन (1992) ने ई-कचरे का उल्लेख नहीं किया था, लेकिन बाद में इसने 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को संबोधित किया।
      • नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के सीमा पार आवागमन के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।
  • ई-कचरा उत्पादन:
    • इस वर्ष का अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) कुल लगभग 57.4 मिलियन टन (MT) होगा और यह चीन की महान दीवार के वज़न से अधिक होगा।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत ने 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया, जो 2017-18 के 7 लाख टन से काफी अधिक है। इसके विपरीत 2017-18 से ई-कचरा निपटान क्षमता 7.82 लाख टन से नहीं बढ़ाई गई है।
  • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:
    • लोगों की कम भागीदारी:
      • उपयोग किये गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रीसाइक्लिंग के लिये नहीं दिये जाने का एक प्रमुख कारक उपभोक्ताओं की अनिच्छा है।
      • हालाँकि हाल के वर्षों में दुनिया भर के देश प्रभावी 'राइट-टू-रिपेयर' कानूनों को पारित करने का प्रयास कर रहे हैं।
    • बाल श्रम की भागीदारी:
      • भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न यार्डों और रीसाइक्लिंग कार्यशालाओं में बगैर पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के विभिन्न ई-कचरा गतिविधियों में लगे हुए हैं।
    • अप्रभावी विधान:
      • अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी)/पीसीसी वेबसाइटों पर किसी भी सार्वजनिक सूचना का अभाव है।
    • स्वास्थ्य खतरे:
      • ई-कचरे में 1,000 से अधिक ज़हरीले पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।
    • प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव:
      • असंगठित क्षेत्र के लिये ई-कचरे के निपटान हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
      • साथ ही ई-कचरे को प्रबंधित करने के लिये औपचारिक रास्ता अपनाने हेतु इस कार्य में लगे लोगों को लुभाने के लिये भी किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है।
    • ई-कचरा आयात:
      • विकसित देशों द्वारा 80% ई-कचरा रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।
    • शामिल अधिकारियों की अनिच्छा:
      • नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव।
    • सुरक्षा के निहितार्थ:
      • कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी का संभावना रहती है।

आगे की राह 

  • भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियों द्वारा अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करने और रीसाइक्लिंग का कार्य शुरू किया गया है। हमें ऐसे बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास और मान्यता प्रदान करें तथा पर्यावरण की दृष्टि से रीसाइक्लिंग लक्ष्य को पूरा करने में हमारी सहायता करें।
  • साथ ही संग्रह दर को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक भागीदार को शामिल करना आवश्यक है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow