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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कतर संकट के विभिन्न आयाम

  • 07 Jun 2017
  • 8 min read

संदर्भ
वर्तमान समय में कतर, सम्पूर्ण अरब जगत के लिये विवाद का विषय बना हुआ है। मूलतः कतर पर आरोप है कि वह क्षेत्रीय आतंकी समूहों तथा ईरान की सहायता कर रहा है। इन्हीं कारणों को आधार बनाते हुए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (U.A.E), मिस्र तथा बहरीन ने कतर से सभी प्रकार के भौतिक व राजनीतिक संपर्क तोड़ लिये हैं। बाद में इस पहल में यमन व मालदीव भी शामिल हो गए हैं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण अरब जगत में एक संकट उत्पन्न हो चुका है जिसके परिणाम अभी सुनिश्चित नहीं हैं, क्योंकि जहाँ अरब जगत में ही ओमान एवं कुवैत कतर से संबंध बनाए हुए हैं वहीं गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) द्वारा भी मध्यस्थता के प्रयास जारी हैं।

हालाँकि, भारतीय नेतृत्त्व की ओर से कोई विशेष चिंता प्रकट नहीं की गई है, परन्तु प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा  नगर विमानन मंत्रालय एवं पेट्रोलियम मंत्रालय को दिये गए एक निर्देश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे किसी भी प्रकार की परिस्थितियों के लिये तैयार रहें। परन्तु, कतर का भारत के मुख्य व्यापारिक सहयोगियों में से एक होना एवं लाखों कामगारों के लिये एक उपयुक्त कार्यस्थल के रूप में होना, भारत के लिये संकट की गंभीरता को बढ़ाता है।

भारत के लिये कतर की महत्ता

  • वर्तमान संदर्भ में भारतीय विदेश नीति में कतर की भूमिका महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अरब राष्ट्रों में कतर के साथ भारत के संबंध बहुआयामी हैं, साथ ही राजनीतिक विषयों पर भी कतर भारतीय पक्ष के समान मत रखता है, जो विभिन्न द्विपक्षीय व बहुपक्षीय करारों के साथ भारत से जुड़ा हुआ है।
  • आर्थिक दृष्टिकोण से कतर की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि-

I. भारत अपनी प्राकृतिक गैस (LNG) खपत का लगभग 65% अरब जगत से आयात करता है जिसमें अधिकतम हिस्सा कतर का है।
II. कतर, भारत में निवेश करने वाला महत्त्वपूर्ण राष्ट्र हो सकता है। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान विभिन्न परियोजनाओं, विशेषकर आधारिक अवसंरचना निर्माण में कतर के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे।
III. साथ ही, भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा संसाधनों से संपन्न कतर से संबंधों को बनाना अत्यंत लाभकारी है।

  • इसके अतिरिक्त, कतर भारतीय कामगारों के लिये अब तक एक उपयुक्त गंतव्य रहा है, जहाँ उन्हें आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक आधार पर शांत वातावरण मिलता है। इसलिये कतर में आज लगभग 6.5 लाख भारतीय समुदाय के लोग हैं, जो वहाँ रहने वाले बाह्य-देशीय समुदायों में सबसे अधिक हैं।  
  • साथ ही, भारत सरकार के लिये कामगारों का मुद्दा इसलिये और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इन कामगारों में अधिकतर दक्षिण भारतीय प्रदेश केरल व तमिलनाडु से हैं जहाँ की राजनीति में  विदेश में जाकर रहने वालों के हित का प्रश्न अति महत्त्वपूर्ण है। परिणामस्वरूप किसी भी संकट की दशा में कामगारों की  सुरक्षित वापसी का प्रश्न भारत सरकार पर विशेष दबाव निर्मित करता है।

जी.सी.सी. एवं कतर

  • वर्तमान संदर्भ से इतर, कतर की छवि हमेशा से अरब जगत के लिये एक समस्या निर्मित करने वाले सदस्य के रूप में रही है। इस संदर्भ में कुछ ऐतिहासिक प्रश्नों का उल्लेख किया जा सकता है, जैसे-

I. अपने तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों के संयुक्त कार्यकरण के बावजूद भू-राजनीतिक मुद्दों पर कतर हमेशा से अरब जगत से भिन्न मत रखता है।
II. कतर ऐसा पहला अरब देश था जिसने इज़राइल के साथ अपने राजनयिक संबंधों को स्थापित किया। साथ ही, व्यापारिक संबंध भी स्थापित किये। हालाँकि, 2009 में कतर ने इज़राइल के साथ सभी व्यापारिक संबंधों को तोड़ दिया था।
III. भारत-पाकिस्तान की तरह  कतर का बहरीन के साथ उनके स्वतंत्रता काल से ही सीमा विवाद चल रहा है, तथा कतर सऊदी अरब के साथ किये गए सीमा समझौते को भी खत्म कर चुका है।

  • परन्तु इसके साथ ही जी.सी.सी. में कुवैत और ओमान ने कतर के साथ अपने संबंधों को नहीं तोड़ा है, साथ ही कुवैत ने दोनों पक्षों के साथ मध्यस्थता करने की पेशकश भी की है।
  • स्पष्ट तौर पर कतर संकट पर जी.सी.सी. की भूमिका महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आपसी मतभेदों को खत्म करने के लिये यह एक उपयुक्त मंच होगा।
  • इसके अतिरिक्त, उक्त संकट जी.सी.सी. के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है जिस कारण भी उसे शांतिपूर्ण ढंग से इस समस्या का हल ढूंढना चाहिये।

अब आगे क्या?

  • विश्लेषकों के अनुसार उक्त संकट कतर में भारतीय कामगारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर भी होगा। अन्य अरब देशों के साथ संबंध न रहने की दशा में अरब देशों के लोगों के द्वारा नौकरियाँ छोड़ने के कारण भारतियों के लिये अतिरिक्त अवसर पैदा होने की संभावना है। 
  • इसके साथ ही इस संकट का निकट भविष्य में परिणाम विमानन क्षेत्र में हो सकता है, क्योंकि अमीरात (Emirates) जैसी विमानन कंपनी द्वारा हवाई सेवा रोकने की दशा में भारत के लिये बड़ी समस्या हो सकती है।
  • साथ ही, खाड़ी देशों के साथ कतर का स्थल, जल व वायु संपर्क खत्म होने की दशा में भारतीय विमानों को कतर जाने के लिये लम्बा मार्ग तय करना पड़ रहा है, जो पाकिस्तान व ईरान से होकर जाता है।  

निष्कर्ष 
अतः अपने आर्थिक आयामों के अतिरिक्त कतर संकट की भूमिका भारत के लिये भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम है। भविष्य में किसी भी अशांति या गतिरोध की स्थिति भारतीय हितों को प्रत्यक्षतः प्रभावित करेगी। इसलिये भारत को प्रतिदिन हो रहे घटनाक्रमों का बारीकी से विश्लेषण करते रहना होगा, साथ ही भारत को सभी पक्षों के साथ नज़दीकी संपर्क भी बनाकर रखना होगा, जिससे संकट की गंभीरता का पता लगाया जा सके एवं संकट का कोई समाधान निकला जा सके।

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