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भारतीय राजनीति

चंडीगढ़ द्वारा राज्यसभा सीट की मांग

  • 02 Mar 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यसभा, अनुच्छेद 80, संविधान की चौथी अनुसूची, भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ, निजी सदस्य विधेयक।

मेन्स के लिये:

निजी सदस्य विधेयक, भारतीय संसद में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व।

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में चंडीगढ़ नगर निगम ने संविधान के अनुच्छेद 80 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है ताकि उसके पार्षद राज्यसभा में एक प्रतिनिधि भेज सकें।
  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 80 राज्यों की परिषद की संरचना से संबंधित है जिसे उच्च सदन (राज्य सभा) कहा जाता है।
  • अभी तक चंडीगढ़ का राज्यसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

प्रस्तावित विधेयक की मांग:

  • बिल (निजी सदस्य विधेयक) के द्वारा एक प्रावधान जोड़ने की मांग की गई है जिसके तहत राज्य परिषद में केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ का प्रतिनिधि एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाएगा।
    • निर्वाचक मंडल में संविधान के अनुच्छेद 80 में पंजाब नगर निगम (चंडीगढ़ तक विस्तार) अधिनियम, 1994 के तहत गठित चंडीगढ़ नगर निगम के निर्वाचित सदस्य शामिल होने चाहिये। 
  • 'एंट्री 32, चंडीगढ़' के साथ संविधान की चौथी अनुसूची में भी संशोधन की मांग की गई है।
    • इसमें प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश से राज्यों की परिषद (राज्यसभा) में प्रतिनिधित्व करने वाली सीटों की संख्या शामिल है।

चंडीगढ़ की स्थिति:

  • चंडीगढ़ बिना विधानसभा वाला एक केंद्रशासित प्रदेश है और निम्न सदन या लोकसभा में संसद सदस्य (MP) की एक सीट है।
  • चंडीगढ़ के निवासी प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से हर पांँच साल में एक सांसद का चुनाव करते हैं। 
    • पुद्दुचेरी, जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली केंद्रशासित प्रदेशों का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है, जबकि लद्दाख, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली-दमन एवं दीव, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप का उच्च सदन (राज्यसभा) में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

कानूनी आपत्तियांँ:

  • निर्वाचित नगर निगम पार्षद उच्च सदन (राज्यसभा) के लिये सदस्य का चयन करने हेतु निर्वाचक मंडल का गठन नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह नगर निगम की शक्तियों से परे है।
    • वर्ष 1966 से 1990 के बीच दिल्ली में राज्यसभा के लिये सांसदों का चयन दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल के सदस्यों द्वारा किया गया था।
    • महानगर परिषद (Metropolitan Council) और नगर निगम (Municipal Corporation) में अंतर है।
    • विधानमंडलों के निर्वाचक मंडल और एमसी पार्षदों के निर्वाचक मंडल में भी अंतर है।
    • साथ ही चंडीगढ़ में दिल्ली की तरह कोई विधानसभा नहीं है, जो एक केंद्रशासित प्रदेश भी है, और शहर में एक महानगरीय परिषद का भी अभाव है जो राष्ट्रीय राजधानी में मौजूद है।
  • साथ ही राज्यसभा सांसद का चयन करना नगर निगम के कार्यों की सूचीबद्धता के दायरे से बाहर है। 
  • नागरिक निकाय (Civic Body) के कार्यों को सूचीबद्ध किये गए कार्यों के दायरे से विस्तारित किया जाना संभव नहीं होगा तथा यह नगर निगम के ऐसे किसी भी संवैधानिक आदेश के खिलाफ होगा।
    • जैसा कि नागरिक निकाय ने संशोधन को अपनी सहमति दी है, केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन इसे आगे विचार के लिये गृह मंत्रालय को भेजेगा और फिर इसे संसद को भेजा जाएगा।

निजी सदस्य विधेयक:

  • संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री (Member of Parliament-MP) नहीं हैं, को एक निजी सदस्य के रूप में जाना जाता है।
  • इसका प्रारूप तैयार करने की ज़िम्मेदारी संबंधित सदस्य की होती है। सदन में इसे पेश करने के लिये एक महीने के नोटिस की आवश्यकता होती है।
  • सरकारी विधेयक/सार्वजनिक विधेयकों को किसी भी दिन पेश किया जा सकता है और उन पर चर्चा की जा सकती है, निजी सदस्यों के विधेयकों को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है तथा उन पर चर्चा की जा सकती है।
  • कई विधेयकों के मामले में एक मतपत्र प्रणाली का उपयोग विधेयकों को पेश करने के क्रम को तय करने के लिये किया जाता है।
  • निजी सदस्यों के विधेयकों और प्रस्तावों पर संसदीय समिति ऐसे सभी विधेयकों को देखती है और उनकी तात्कालिकता एवं महत्त्व के आधार पर उनका वर्गीकरण करती है।
  • सदन द्वारा इसकी अस्वीकृति का सरकार में संसदीय विश्वास या उसके इस्तीफे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • चर्चा के समापन पर विधेयक का संचालन करने वाला सदस्य या तो संबंधित मंत्री के अनुरोध पर इसे वापस ले सकता है या वह इसके पारित होने के साथ आगे बढ़ने का विकल्प चुन सकता है।

सरकारी विधेयक बनाम निजी विधेयक

सरकारी विधेयक

निजी विधेयक

इसे संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

यह मंत्री के अतिरिक्त किसी अन्य सांसद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है।

यह विपक्ष की नीतियों को प्रदर्शित करता है।

संसद में इसके पारित होने की संभावना अधिक होती है।

संसद में इसके पारित होने के संभावना कम होती है।

संसद द्वारा सरकारी विधेयक अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।

इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

सरकारी विधेयक को संसद में पेश होने के लिये सात दिनों का नोटिस दिया जाना चाहिये।

इस विधेयक को संसद में पेश करने के लिये एक महीने का नोटिस दिया जाना चाहिये।

इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है।

इसे संबंधित सदस्य द्वारा तैयार किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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