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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

  • 02 Mar 2022
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, पूंजी बाज़ार।

मेन्स के लिये:

वैधानिक निकाय, अर्द्ध-न्यायिक निकाय, पूंजी बाज़ार, सेबी के साथ मुद्दे और आगे का रास्ता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व पूर्णकालिक सदस्य माधबी पुरी बुच को इसके नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है, जो सेबी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। वह तीन वर्ष तक इस पद पर बनी रहेंगी।

  • इससे पहले जनवरी 2022 में सेबी ने Saa₹thi - निवेशक शिक्षा पर एक मोबाइल एप लॉन्च किया था।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • परिचय:
    • सेबी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (एक गैर-संवैधानिक निकाय जिसे संसद द्वारा स्थापित किया गया) है।
    • सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना एवं विनियमित करना है।
    • सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में हैं।
  • भूमिका:
    • सेबी के अस्तित्व में आने से पहले पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक (Controller of Capital Issues) नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के तहत अधिकार प्राप्त थे।
    • अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत सेबी का गठन भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में किया गया था।
    • प्रारंभ में सेबी एक गैर-वैधानिक निकाय था जिसे किसी भी तरह की वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं थी।
    • सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से यह एक स्वायत्त निकाय बना तथा इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।

सेबी की संरचना:

  • सेबी बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा कई अन्य पूर्णकालिक एवं अंशकालिक सदस्य होते हैं।
  • यह समय-समय पर तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।
  • इसके अलावा सेबी के निर्णय से असंतुष्ट संस्थाओं के हितों की रक्षा के लिये एक प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण-सैट (Securities Appellate Tribunal- SAT) का गठन भी किया गया है।
    • SAT में एक पीठासीन अधिकारी तथा दो अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
    • सेबी के पास वही शक्तियाँ हैं, जो एक दीवानी न्यायालय में निहित होती हैं। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति ‘प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण’ (SAT) के निर्णय या आदेश से सहमत नहीं है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

सेबी की शक्तियाँ एवं कार्य: 

  • सेबी एक अर्द्ध-विधायी और अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, पूछताछ कर सकता है, नियम पारित कर सकता है तथा ज़ुर्माना लगा सकता है।
  • यह तीन श्रेणियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कार्य करता है-
    • जारीकर्त्ता- एक बाज़ार उपलब्ध कराना जिसमें जारीकर्त्ता अपना वित्त बढ़ा सकते हैं।
    • निवेशक- सही और सटीक जानकारी एवं सुरक्षा सुनिश्चित करके।
    • मध्यवर्ती/बिचौलिये- बिचौलियों के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी पेशेवर बाज़ार को सक्षम करके।
  • प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 द्वारा सेबी अब 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक राशि की किसी भी मनी पूलिंग योजना को विनियमित करने तथा गैर-अनुपालन के मामलों में संपत्ति को संलग्न करने में सक्षम है।
  • सेबी के अध्यक्ष के पास "तलाशी/जाँच और ज़ब्ती संबंधी ऑपरेशन" का आदेश देने का अधिकार है। सेबी बोर्ड किसी भी प्रकार के प्रतिभूति लेन-देन के संबंध में व्यक्ति या संस्थाओं से टेलीफोन कॉल डेटा रिकॉर्ड जैसी जानकारी भी मांग सकता है।
  • सेबी उद्यम पूंजी कोषों और म्यूचुअल फंड सहित सामूहिक निवेश योजनाओं के कामकाज के पंजीकरण तथा विनियमन का कार्य करता है।
  • यह स्व-नियामक संगठनों को बढ़ावा देने उन्हें विनियमित करने और प्रतिभूति बाज़ारों से संबंधित धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये भी कार्य करता है।

Powers-of-SEBI

मुद्दे और संबंधित चिंताएँ

  • हाल के वर्षों में सेबी की भूमिका और अधिक जटिल हो गई है।
  • बाज़ार के आचरण के नियमन पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि विवेकपूर्ण नियमन पर कम।
  • सेबी की वैधानिक प्रवर्तन शक्तियाँ अमेरिका और ब्रिटेन में इसके समकक्षों की तुलना में अधिक हैं क्योंकि गंभीर आर्थिक क्षति के लिये दंड देने के मामले में यह तुलनात्मक रूप से अधिक शक्तिशाली है।
  • यह आर्थिक गतिविधि पर गंभीर प्रतिबंध लगा सकता है, ऐसा निवारक निरोध किसी तरह के संदेह के आधार पर किया जाता है।
  • अधीनस्थ कानून बनाने के लिये सेबी अधिनियम के व्यापक विवेकाधिकार के रूप में इसकी विधायी शक्तियाँ निरपेक्ष हैं।
  • बाज़ार के साथ पूर्व परामर्श का घटक और विनियमों की समीक्षा की एक प्रणाली (जो यह देखने के लिये तैयार की गई है कि क्या विनियम व्यक्त किये गए उदेश्यों को पूरा करते हैं) काफी हद तक अनुपस्थित है। परिणामस्वरूप नियामक की शंका व्यापक है।
  • विनियमन, चाहे वे नियम हों या प्रवर्तन, विशेष रूप से इनसाइडर ट्रेडिंग जैसे क्षेत्रों में परिपूर्णता से बहुत दूर है।
  • प्रतिभूतियों की पेशकश करने वाले दस्तावेज़ असाधारण रूप से वज़न में भारी होते हैं और उनके  औपचारिक अनुपालन हेतु उनकी उच्च गुणवत्ता के वास्तविक प्रकटीकरण के बजाय संख्या को काफी हद तक कम कर दिया गया है।

आगे की राह

  • वास्तव में एक अभिवृत्तिक परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि बाज़ार के बारे में सैकड़ों की संख्या में ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो दर्शाती हैं कि बाज़ार अपराधियों से भरा हुआ है जिसके चलते सख्त कार्रवाई और गंभीर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
  • बाज़ार को और बेहतर कैसे बनाया जाए इस संदर्भ में सेबी को गहन समीक्षा और शोध करने की आवश्यकता है। फंड्स के आकार में वृद्धि कभी भी सफलता का मानक नहीं हो सकती और न ही यह प्रदर्शित कर सकती है कि बाज़ार विनियमन के इस खंड/क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन हो रहा है।
  • सेबी को अपने संगठन के अंतर्गत मानव संसाधन और इससे संबंधित मामलों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। 
  • वायदा बाज़ार आयोग के सेबी में विलय के बाद वरिष्ठ कर्मचारियों का संरेखण और नियुक्ति का कार्य का एक खुला क्षेत्र बना हुआ है।
  • निरंतर निगरानी और बाज़ार की खुफिया जानकारी में सुधार के साथ प्रवर्तन को मज़बूत किया जा सकता है।
  • भारत के वित्तीय बाज़ार एक-दूसरे से विभाजित हैं। वित्तीय उत्पादों की ओवरलैपिंग के मामले में एक नियामक को दूसरे की विफलता के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। 
    • इस संदर्भ में एक एकीकृत वित्तीय नियामक, ओवरलैप तथा अपवर्जित सीमाओं दोनों के विषय में उत्पन्न गतिरोध को दूर करने का प्रयास कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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