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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दिल्ली में पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध के प्रभाव का विश्लेषण

  • 26 Oct 2017
  • 6 min read

संदर्भ 

हाल ही में दिवाली के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सम्पूर्ण दिल्ली एन.सी.आर. क्षेत्र में पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध के परिणामस्वरूप भी दीवाली तथा उसके दो दिन बाद तक भी प्रदूषण का स्तर इतना अधिक था मानो शहर के सभी अनबिके पटाखों का उपयोग किया गया हो।  

प्रमुख बिंदु

  • प्रदूषण के स्तर संबंधी आँकड़े दर्शाते हैं कि पटाखों की बिक्री पर लगी रोक के कारण भी प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आई है। दरअसल, प्रदूषण के लिये पटाखों के अलावा अन्य कारक भी ज़िम्मेदार हैं, जिनकी ओर सरकार का ध्यान आकर्षित नहीं होता है।    
  • फलतः इस वर्ष 19, 20 और 21 अक्टूबर को गोवा स्थित एक शोध समूह ने ‘मौसम और कार्बन उत्सर्जन’ के आँकड़ों का उपयोग कर दिल्ली में दिवाली के दौरान विद्यमान प्रदूषण के स्तरों की जाँच की।  
  • यह पाया गया कि आरम्भ में (यानीकि दिवाली के तुरंत बाद) तो प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आई परन्तु अगले दिन प्रदूषण स्तर में 25% की कमी देखी गई जबकि तीसरे व अंतिम दिन इसमें 50% की गिरावट दर्ज की गई ।  
  • दरअसल, आरंभ में यानीकि 20 अक्टूबर को पीएम 2.5 का स्तर तो 580 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था, जबकि 20 निगरानी स्टेशनों से उसी दिन जाँचे गए पीएम का औसत स्तर 617.3 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज़ किया गया था।  
  • इस दौरान पीएम 10 के साथ-साथ  कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर भी उच्च पाया गया था।   

क्यों होता है पटाखों के जलने से प्रदूषण?

  • पटाखों के जलने पर उनमें उपस्थित मैग्नीशियम और एल्युमिनियम जैसे रासायनिक लवणों के कारण चमक दिखाई देती है, जबकि इसमें ईंधन के रूप में गनपाउडर का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका निर्माण चारकोल और सल्फर से किया जाता है। जब पटाखों को जलाया जाता है तो वे सभी लवण जो रंग उत्पन करते हैं, सीधे पीएम 2.5 और पीएम 10 में बदल जाते हैं। इसके अतिरिक्त, गनपाउडर में जो सल्फर मौजूद होता है वह सल्फर-डाईऑक्साइड में बदल जाता है जोकि एक विषाक्त गैस है।

  • आश्चर्यजनक है कि वर्ष 2017 में पटाखों के अधिक उपयोग के बावजूद भी दीवाली के दिन पिछले वर्ष की तुलना में प्रदूषण का स्तर कम रहा। इसका कारण यह है कि शीत प्रदूषण का स्तर कई अन्य कारकों (जैसे- गंगा के मैदानी क्षेत्रों में धान की फसल में लगने वाली आग, जलावन के लिये डीजल का उपयोग करना और ठंडा मौसम जो प्रदूषकों के फैलाव में अवरोध उत्पन्न करता है) से भी प्रभावित होता है। ध्यातव्य है कि ये कारक साल-दर-साल परिवर्तित होते रहते हैं।  

पिछले वर्ष प्रदूषण स्थिति

  • वर्ष 2016 में दीवाली 30 अक्टूबर को थी।   इस दौरान पंजाब और हरियाणा में धान की फसलें जल रही थी जिस कारण प्रदूषण चरम पर था।   
  • इसके अतिरिक्त, धीमी गति से चलने वाली पश्चिमी हवाओं के कारण यह प्रदूषित वायु दिल्ली तक आ गई, जबकि दिल्ली में भी पहले से ही हवाओं की गति काफी धीमी थी, जिससे इनका फैलाव नहीं हो पा रहा था।   इसके विपरीत वर्ष 2017 में दीपावली 19 अक्टूबर को थी और इस समय फसलों के जलने की शुरुआत ही हुई थी, जिस कारण इनका दिल्ली पर अत्यधिक प्रभाव नहीं पड़ा।  
  • ‘द सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च’ (SAFAR) ने भी दिवाली के दौरान तीन दिवसीय आँकड़े लिये और यह अनुमान लगाया कि इन दिनों वर्ष 2016 के अनबिके 25, 50 और 100 प्रतिशत पटाखों को जलाया गया था।   

निष्कर्ष

हालाँकि इस प्रतिबंध का अप्रभावी सिद्ध होना आश्चर्य का विषय नहीं है। परन्तु प्रतिबंध के बावजूद भी प्रदूषण का उच्च स्तर यह दर्शाता है कि प्रदूषण के अन्य स्रोत जैसे-वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को सरकार द्वारा नजरंदाज़ किया गया है।   

अतः केवल पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर प्रदूषण के स्तर में वांछित कमी की इच्छा करना प्रासंगिक प्रतीत नहीं होता है। यह आवश्यक है कि सरकार वर्ष भर अन्य स्रोतों के माध्यम से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण करने हेतु भी इसी प्रकार के ठोस कदम उठाए।

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