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सामाजिक न्याय

कोविड से अनाथ हो रहे बच्चों पर तस्करी का संकट

  • 19 May 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में भारत कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रहा है, जिससे बच्चों के अपने माता-पिता को खोने के मामले भी बढ़ रहे हैं।

  • इस स्थिति में अनाथ बच्चों को गोद लेने की आड़ में बाल तस्करी (Child Trafficking) की आशंका भी बढ़ गई है।

प्रमुख बिंदु

बच्चों की तस्करी के विषय में:

  • अलग-अलग सोशल मीडिया पोस्ट उन बच्चों का विवरण दे रहे हैं, जिन्होंने इस महामारी में अपने माता-पिता को खो दिया है और उन्हें गोद लेने की गुहार लगा रहे हैं।
  • किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act), 2015 की धारा 80 और 81 के तहत ऐसे पोस्ट साझा करना अवैध है, साथ ही इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रियाओं के बाहर बच्चों को देने या प्राप्त करने पर रोक लगाता है।
    • इस तरह के कृत्यों में तीन से पाँच वर्ष की जेल या 1 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है।
  • कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन में बाल विवाह (Child Marriage) के मामले भी बढ़े हैं।

अनाथ बच्चों के संरक्षण के लिये प्रावधान:

  • किशोर न्याय अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया का पालन अनाथ हो चुके बच्चों के लिये किया जाना चाहिये।
  • यदि किसी को ऐसे बच्चे के विषय में जानकारी है जिसे  देखभाल की आवश्यकता है, तो उसे चार एजेंसियों यथा- चाइल्ड लाइन 1098, ज़िला बाल कल्याण समिति (CWC), ज़िला बाल संरक्षण अधिकारी (DCPO) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की हेल्पलाइन में से किसी एक पर संपर्क करना चाहिये।
  • इसके बाद सीडब्ल्यूसी बच्चे का आकलन करेगी और उसे तत्काल एक विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी (Specialised Adoption Agency) की देखभाल में रखेगी।
    • इस प्रकार राज्य ऐसे सभी बच्चों की देखभाल करता है जिन्हें 18 वर्ष की आयु तक देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है।
  • एक बार जब सीडब्ल्यूसी द्वारा बच्चे को गोद लेने के लिये कानूनी रूप से वैध घोषित कर दिया जाता है, तब उसे भारतीय भावी दत्तक माता-पिता या अनिवासी भारतीय या विदेशियों द्वारा गोद लिया जा सकता है।
    • भारत ने अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण पर हेग कन्वेंशन (Hague Convention on Intercountry Adoption), 1993 की पुष्टि की है।
  • केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority), महिला और बाल विकास मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है, जो गोद लेने संबंधी मामलों की नोडल एजेंसी है।
    • यह अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का अपनी संबद्ध या मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से विनियमन करता है।
  • हालिया पहल (संवेदना):
    • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) कोविड-19 महामारी से प्रभावित बच्चों को मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से संचार के माध्यम से परामर्श प्रदान कर रहा है।

भारत में बाल तस्करी:

  • डेटा विश्लेषण:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी तस्करी पीड़ितों में से 51% बच्चे थे, जिनमें से 80% से अधिक लड़कियाँ थीं।
    • वर्तमान में सबसे अधिक प्रभावित राज्य पश्चिम बंगाल है जिसके बाद छत्तीसगढ़, झारखंड और असम हैं।
    • इन क्षेत्रों में बंधुआ मज़दूरी के लिये बच्चों की तस्करी और घरेलू कामों तथा यौन शोषण हेतु महिलाओं की तस्करी सबसे अधिक होती है।
  • संवैधानिक प्रावधान 
    • अनुच्छेद-21: सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जीवन जीने का अधिकार केवल एक शारीरिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसके दायरे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
    • अनुच्छेद-23: मानव तस्करी/दुर्व्यापार और बेगार का निषेध। 
    • अनुच्छेद-24: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम करने के लिये या किसी अन्य खतरनाक रोज़गार में नियोजित नहीं किया  जाएगा।
    • अनुच्छेद-39: यह राज्य द्वारा पालन किये जाने वाले नीतिगत सिद्धांत प्रदान करता है, ताकि:
      • अनुच्छेद-39 (e): पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य एवं शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोज़गारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों
      • अनुच्छेद-39 (f): बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ एवं शोषण तथा नैतिक एवं आर्थिक परित्याग से बालकों तथा युवाओं की रक्षा की जाए।
    • अनुच्छेद-45: छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिये प्रारंभिक बाल्यावस्था देखरेख और शिक्षा का उपबंध।
  • कानूनी संरक्षण
    • अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (IPTA), 1986
    • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (A) और धारा 372
    • कारखाना अधिनियम, 1948 
  • अन्य संबंधित पहलें
    • भारत ने ‘यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज़्ड क्राइम’ (UNCTOC) की पुष्टि की है, जिसमें मानव, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की अवैध तस्करी को रोकने, कम करने और दंडित करने संबंधी प्रोटोकॉल (पालेर्मो प्रोटोकॉल) शामिल है।
    • भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने तथा उसका मुकाबला करने के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) कन्वेंशन की पुष्टि की है।
    • बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के तहत वर्ष 2007 में ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) की स्थापना की गई थी।
      • भारत ने ‘बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UNCRC) की भी पुष्टि की है

आगे की राह

  • ‘बच्चे’ एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति हैं और राष्ट्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ बच्चों का विकास किस प्रकार हो रहा है। बच्चों को गोद देने संबंधी प्रावधानों को बढ़ावा देने का प्राथमिक उद्देश्य उनके कल्याण और परिवार के उसके अधिकार को बहाल करना है।
  • संविधान का अनुच्छेद-39 बच्चों की कम उम्र के दुरुपयोग को प्रतिबंधित करता है। अतः अनाथ बच्चों, जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है या जिन्हें कोविड-19 महामारी के कारण छोड़ दिया है, को उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये और अनिश्चित भविष्य का सामना करने के लिये नहीं छोड़ना चाहिये। किशोर न्याय अधिनियम के तहत उत्तरदायी अधिकारियों द्वारा उनकी देखभाल की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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