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सामाजिक न्याय

बाल सैनिकों को भर्ती करने वाले देशों की सूची

  • 06 Jul 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, जिनेवा कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय

मेन्स के लिये:

CRC से संबद्ध मुद्दे, बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अमेरिका ने पाकिस्तान सहित 14 अन्य देशों को चाइल्ड सोल्जर रिक्रूटर लिस्ट यानी बाल सैनिकों को भर्ती करने वाले देशों की सूची में शामिल किया है, जो उन विदेशी सरकारों की पहचान करती है जिनके पास सरकार समर्थित सशस्त्र समूह हैं तथा जो बाल सैनिकों की भर्ती या उनका उपयोग करते हैं।

  • चाइल्ड सोल्जर में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्हें सशस्त्र बल या सशस्त्र समूह में भर्ती किया जाता है या फिर उनकी क्षमता का भर्ती में उपयोग किया जाता है।
    • चाइल्ड सोल्जर में लडकें,लडकियाँ और बच्चे शामिल होते हैं, लेकिन यह उन बच्चों, लड़कों और लड़कियों तक सीमित नहीं है, जिनका उपयोग लड़ाकों, रसोइयों, कुलियों, जासूसों या यौन उद्देश्यों हेतु किया जाता है (सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर पेरिस सिद्धांत 2007)।

प्रमुख बिंदु:

 चाइल्ड सोल्जर रिक्रूटर लिस्ट के बारे में:

  • यूएस चाइल्ड सोल्जर्स प्रिवेंशन एक्ट (US Child Soldiers Prevention Act -CSPA), 2008 को वार्षिक ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स (Trafficking in Persons- TIP) रिपोर्ट में प्रकाशित किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें उन विदेशी सरकारों की सूची/लिस्ट शामिल होती है जिन्होंने बाल सैनिकों की भर्ती की है या उनका इस्तेमाल किया है।
  • इस लिस्ट में जोड़े गए कुछ देशों में पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान, म्याँमार, ईरान, इराक, नाइजीरिया, यमन आदि हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि अकेले वर्ष 2019 में 7,000 से अधिक बच्चों को भर्ती किया गया तथा  सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किया गया।
  • CSPA अमेरिकी सरकार को बाल सैनिकों की भर्ती और उनका उपयोग करने वाले देशों को सैन्य सहायता प्रदान करने से रोकता है, जिसमें धन, सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण या सैन्य उपकरणों की प्रत्यक्ष बिक्री शामिल है।

संबंधित वैश्विक सम्मेलन:

  • सैनिकों के रूप में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की भर्ती या उपयोग बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CRC) और जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल दोनों द्वारा निषिद्ध है।
    • CRC के अनुसार, बचपन की अवस्था वयस्कता से अलग होती है तथा 18 वर्ष तक रहती  है; यह एक विशेष संरक्षण अवधि होती है, जिसमें बच्चों को गरिमा के साथ बढ़ने, सीखने, खेलने, विकसित होने और वृद्धि की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • जिनेवा कन्वेंशन और अन्य अतिरिक्त प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के केंद्र  हैं, जो सशस्त्र संघर्ष को नियंत्रित करते हैं और इसके प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करते हैं। वे उन लोगों की रक्षा करते हैं जो लंबे समय से या वर्तमान में संघर्ष में भाग नहीं कर रहे हैं।
  •  सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी को लेकर CRC, वैकल्पिक प्रोटोकॉल के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अनिवार्य रूप से राज्य या गैर-राज्य सशस्त्र बलों में भर्ती होने या सीधे संघर्ष में शामिल होने से रोकता है।
    • मानवाधिकार संधियों के वैकल्पिक प्रोटोकॉल स्वयं में अनेक संधियाँ हैं तथा उन देशों द्वारा हस्ताक्षर, परिग्रहण या अनुसमर्थन के लिये खुले हैं जो मुख्य संधि के पक्षकार हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम कानून के तहत बाल सैनिकों की भर्ती को भी युद्ध अपराध माना जाता है।
  • इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ने बाल सैनिकों की भर्ती और उनके उपयोग की  पहचान छह "गंभीर उल्लंघनों" के रूप में की है। अन्य पाँच उल्लंघन इस प्रकार हैं:
    • बच्चों की हत्या करना या उन्हें अपंग बनाना।
    • बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा।
    • बच्चों का अपहरण।
    • स्कूलों या अस्पतालों पर हमले करना।
    • बच्चों के लिये मानवीय पहुँच से इनकार करना।

CRC से संबद्ध मुद्दे:

  • ये संधियाँ कार्यक्षेत्र और प्रकृति में सीमित हैं तथा ये व्यावहारिक होने के बजाय आदर्शवादी हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र का तंत्र केवल उन राज्य दलों को बाध्य करता है जो संधियों की पुष्टि करते हैं। इसलिये उन देशों पर इसका कोई अधिकार नहीं है जो सम्मेलन के पक्षकार नहीं हैं या गैर-राज्य संस्थाएँ हैं, जैसे कि विद्रोही मिलिशिया (Militia) जो कि बाल सैनिकों की भर्ती करते हैं।
  • यह अपने सिद्धांतों को लागू करने और पूरे विश्व में मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिये हस्ताक्षरकर्त्ताओं पर निर्भर करता है।
    • इसलिये इस तरह के दुरुपयोग को रोकने की अधिकांश ज़िम्मेदारी स्वयं अलग-अलग देशों की होती है।
  • जबकि संयुक्त राष्ट्र अपनी संधियों और सम्मेलनों को राज्य दलों के लिये बाध्यकारी मानता है, इसके पास अपने निर्णयों को लागू करने हेतु कोई पुलिस शक्ति तंत्र नहीं है।
  • सीआरसी और इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, हस्ताक्षरकर्त्ताओं की अनुपालन करने की इच्छा पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिये सोमालिया एक हस्ताक्षरकर्त्ता है लेकिन उसने सम्मेलन की पुष्टि नहीं की है।

भारतीय परिदृश्य:

  • हालाँकि भारत में बाल सैनिकों को भर्ती करना निषिद्ध है, फिर भी इन्हें कुछ गैर-राज्य बलों जैसे- पूर्वोत्तर क्षेत्र (मुख्य रूप से असम, मणिपुर, नगालैंड) में विद्रोही संगठनों और कश्मीर क्षेत्र में आतंकवादी गुटों में देखा जा सकता है।
  • इसके अलावा इन्हें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक और महाराष्ट्र के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
  • कुछ वैश्विक मानवाधिकार संगठन भारतीय सुरक्षा बलों पर बच्चों को जासूसों और दूतों के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हैं, हालाँकि भारत सरकार इस आरोप से इनकार करती है।
  • रक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय कैडेट कोर (National Cadet Corps- NCC) का उद्देश्य 13 वर्ष की आयु से युवाओं को सशस्त्र बलों (सेना, नौसेना और वायु सेना) तथा प्रादेशिक सेना में भविष्य बनाने के लिये प्रेरित करना है।
    • इनकी तुलना बाल सैनिकों से नहीं की जा सकती।
  • भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
    • भारत बाल अधिकारों पर अभिसमय (CRC) का पक्षकार है और नवंबर 2005 में वैकल्पिक प्रोटोकॉल में शामिल हुआ।
      • संविधान में मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में सीआरसी में शामिल अधिकांश अधिकार शामिल हैं।
      • अनुच्छेद 39 (f) में कहा गया है कि बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्रता एवं सम्मान की स्थिति में विकसित होने का अवसर और सुविधाएँ दी जाती हैं तथा शोषण व नैतिक, भौतिक परित्याग के खिलाफ बच्चों एवं युवाओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
    • भारतीय दंड संहिता राज्य सशस्त्र बलों या गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों की भर्ती या उपयोग को अपराध बनाती है।
    • 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों की भर्ती केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) में की जा सकती है।

आगे की राह:

  • अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और उपकरण, जैसे कि CRC और इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, बच्चों की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिये मूल्यवान और आवश्यक उपकरण हैं लेकिन इन्हें सभी पक्षों द्वारा ईमानदारी के साथ लागू किया जाना चाहिये।
  • वर्ष 2014 में यूनिसेफ ने बाल सैनिकों को संघर्ष में इस्तेमाल नहीं किये जाने के लिये एक वैश्विक आम सहमति बनाने हेतु "चिल्ड्रन, नॉट सोल्जर्स’" अभियान शुरू किया।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित करने के लिये ऐसे और अभियानों (वैश्विक और राष्ट्रीय) को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • साथ ही हमारे सामूहिक प्रयासों का केंद्र बिंदु पूर्व बाल सैनिकों का पुन: एकीकरण होना चाहिये।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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