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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नाभिकीय अपशिष्ट से निपटने की चुनौतियाँ

  • 19 Mar 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR), यूरेनियम और प्लूटोनियम, परमाणु अपशिष्ट, प्रयुक्त ईंधन, तरल अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, विखंडनीय सामग्री पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPFM)।

मेन्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा से संबंधित विकास, परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के तरीके, परमाणु अपशिष्ट से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत ने अपने लंबे समय से विलंबित प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर संयंत्र के मुख्य हिस्से को लोड किया, जिससे यह अपने तीन चरण वाले परमाणु कार्यक्रम के यूरेनियम और प्लूटोनियम द्वारा संचालित चरण-II के शिखर पर पहुँच गया।

  • चरण-III तक, भारत को उम्मीद है कि वह नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन करने के लिये थोरियम के अपने विशाल भंडार का उपयोग करने में सक्षम होगा।
  • नाभिकीय ऊर्जा के व्यापक प्रयोग के कारण नाभिकीय अपशिष्ट का प्रबंधन एक बहुत बड़ी चुनौती है।

प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR): 

  • ब्रीडर रिएक्टर एक नाभिकीय रिएक्टर है जो यूरेनियम-238 या थोरियम-232 जैसी उपजाऊ पदार्थ के विकिरण द्वारा उपभोग की तुलना में अधिक विखंडनीय पदार्थ उत्पन्न करता है जिसे विखंडनीय ईंधन के साथ रिएक्टर में लोड किया जाता है।
  • इन्हें विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिये परमाणु ईंधन आपूर्ति का विस्तार करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • PFBR एक 500-मेगावाट इलेक्ट्रिक (MWe) फास्ट-ब्रीडर नाभिकीय रिएक्टर है जिसका निर्माण वर्तमान में कलपक्कम (तमिलनाडु) में मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में किया जा रहा है।
    • इसे मिश्रित ऑक्साइड (MOX) ईंधन द्वारा संचालित किया जाता है।

नाभिकीय अपशिष्ट क्या है?

  • विखंडन रिएक्टर में, न्यूट्रॉन द्वारा कुछ तत्त्वों के परमाणुओं के नाभिक पर बमबारी की जाती है। जब ऐसा एक नाभिक न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है, तो यह अस्थिर हो जाता है और इसका विखंडन हो जाता है, जिससे कुछ ऊर्जा तथा विभिन्न तत्त्वों के नाभिक मुक्त होते हैं।
    • उदाहरण के लिये, जब यूरेनियम-235 (U-235) नाभिक एक न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है, तो यह बेरियम-144, क्रिप्टन-89 और तीन न्यूट्रॉन में विखंडित हो सकता है। यदि 'Debris अर्थात् अवशेष' (बेरियम-144 और क्रिप्टन-89) ऐसे तत्त्वों का निर्माण करते हैं जो विखंडन प्रक्रिया से नहीं गुज़र सकते, तो वे नाभिकीय अपशिष्ट बन जाते हैं।
    • नाभिकीय रिएक्टर में भरे गए ईंधन का विकिरण हो जाता है जो अंततः निष्कासन कर दिया जाता है जिस बिंदु पर इसे प्रयुक्त ईंधन (spent fuel) के रूप में जाना जाता है।
  • नाभिकीय अपशिष्ट अत्यधिक रेडियोधर्मी होता है तथा इसे स्थानीय पर्यावरण में रिसाव और/या संदूषण को रोकने के लिये सुदृढ़ व्यवस्ताओं में संग्रहित करने की आवश्यकता होती है।

नोट: 

  • विखंडन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी परमाणु का नाभिक दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों और कुछ उपोत्पादों में विभाजित/विखंडित हो जाता है।
    • जब नाभिक विभाजित होता है, तो विखंडित भागों (प्राथमिक नाभिक) की गतिज ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा के ईंधन के रूप में अन्य परमाणुओं में स्थानांतरित किया जाता है, जिसका उपयोग अंततः टरबाइनों को चलाने के लिये आवश्यक वाष्प उत्पादन करने में किया जाता है।
  • संलयन को कई छोटे नाभिकों के एक बड़े नाभिक में संयोजन और उसके बाद भारी मात्रा में ऊर्जा के उत्सर्जन के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • संलयन का उपयोग करते हुए, वह प्रक्रिया जो सूर्य में ऊर्जा का उत्पादन करती है, एक असीमित, स्वच्छ ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकती है।
      • सूर्य में, इसके अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न अत्यधिक दबाव संलयन की स्थिति उत्पन्न करता है।

नाभिकीय अपशिष्ट को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से किस प्रकार प्रबंधित किया जा सकता है?

  • प्राथमिक चुनौती प्रयुक्त ईंधन का प्रबंधन करना है, जो अत्यधिक गर्म और रेडियोधर्मी है। ठंडा होने के बाद लंबे समय तक भंडारण के लिये इन्हें सूखे पीपों में स्थानांतरित करने से पहले इसे कई दशकों तक जल में डूबाए रकहने की आवश्यकता होती है।
    • लंबे समय से परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम वाले सभी देशों ने प्रयुक्त ईंधन की एक बड़ी मात्रा जमा कर ली है।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका के पास 69,682 टन (tn), कनाडा के पास 54,000 टन और रूस के पास 21,362 टन नाभिकीय अपशिष्ट था।
  • रेडियोधर्मिता के स्तर के आधार पर भंडारण की अवधि कुछ सहस्राब्दियों (1000 वर्ष) तक चल सकती है, क्योंकि उन्हें ऐसे समय के लिये मानव संपर्क से अलग करना पड़ता है जो ग्रह पर शारीरिक रूप से आधुनिक होमो सेपियन्स की तुलना में अधिक लंबा है। 
    • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में तरल अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ भी होती हैं।
    • इस तरह के अन्य अपशिष्ट को, उनके खतरे के आधार पर, वाष्पित किया जा सकता है या "रासायनिक रूप से अवक्षेपित" किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि कीचड़ वाले पदार्थ को या तो ठोस पदार्थों द्वारा भिगोकर या जलाकर प्रबंधित किया जा सकता है।
    • तरल उच्च-स्तरीय अपशिष्ट में "ईंधन में उत्पादित लगभग सभी विखंडन उत्पाद" होते हैं। इसे एक भंडारण योग्य ग्लास बनाने के लिये विट्रीफाइड किया जाता है।
  • कुछ विशेषज्ञ भूवैज्ञानिक निपटान का समर्थन करते हैं, जहाँ अपशिष्ट को विशेष कंटेनरों में सील कर दिया जाता है और ग्रेनाइट या मिट्टी में भूमिगत दबा दिया जाता है।
  • प्रयुक्त ईंधन से निपटने का दूसरा तरीका पुनर्प्रसंस्करण है- जो खर्च किये गए ईंधन में विखंडनीय सामग्री को गैर-विखंडनीय सामग्री से अलग करता है।
    • सामग्री को गैर-विखंडनीय सामग्री से बची हुई विखंडनीय सामग्री को अलग करने के लिये रासायनिक रूप से उपचारित किया जाता है।
    • क्योंकि प्रयुक्त ईंधन इतना खतरनाक होता है, पुनर्प्रसंस्करण सुविधाओं को विशेष सुरक्षा और स्वयं के कर्मियों की आवश्यकता होती है।
    • ऐसी सुविधाएँ उच्च ईंधन दक्षता का लाभ प्रदान करती हैं लेकिन महँगी भी होती हैं।
    • पुनर्संसाधन से हथियार-उपयोग योग्य (हथियार-ग्रेड से भिन्न) प्लूटोनियम भी प्राप्त होता है।
      • हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम अत्यधिक शुद्ध (Pure) है, जो कुशल और कॉम्पैक्ट परमाणु हथियारों के लिये आदर्श है।
      • रिएक्टर-ग्रेड या विखंडित हथियारों सहित हथियार-उपयोग योग्य प्लूटोनियम के लिये अधिक सामग्री या विशेष डिज़ाइन की आवश्यकता हो सकती है, जो दक्षता और डिज़ाइन विकल्पों को प्रभावित कर सकती है।

परमाणु अपशिष्ट के प्रबंधन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भूवैज्ञानिक निपटान रिसाव: परमाणु अपशिष्ट के भूवैज्ञानिक निपटान से रेडियोधर्मी सामग्री के मनुष्यों के संपर्क में आने का खतरा उत्पन्न हो जाता है, उदाहरण के लिये, आस-पास की खुदाई गतिविधियों के माध्यम से कंटेनरों में गड़बड़ी हो जाती है।
    • उदाहरण: वेस्ट आइसोलेशन पायलट प्लांट, यूएस, के पास कुछ सहस्राब्दियों के लिये कचरे को संग्रहीत करने का लाइसेंस है। वर्ष 2014 में साइट पर एक दुर्घटना के कारण थोड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री पर्यावरण में फैल गई जिससे इसके रखरखाव में गंभीर विफलताओं का पता चला।
  • निजी क्षेत्र का बहिष्कार: निजी क्षेत्र की भागीदारी अक्सर प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार प्रोत्साहन के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना, अधिक कुशल और प्रभावी परमाणु अपशिष्ट उपचार के लिये नई प्रौद्योगिकियों तथा प्रक्रियाओं को विकसित करने हेतु प्रोत्साहन कम हो सकता है।
  • अप्रयुक्त निधि: अमेरिका के परमाणु अपशिष्ट नीति अधिनियम, 1982 में कहा गया है कि परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न बिजली का एक हिस्सा 'परमाणु अपशिष्ट कोष' को आवंटित किया जाएगा, जो भूवैज्ञानिक निपटान सुविधा को वित्तपोषित करेगा।
    • जुलाई 2018 तक 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड जमा होने के बावजूद, फंड को अपने इच्छित उद्देश्य के लिये अप्रयुक्त रहने हेतु आलोचना का सामना करना पड़ा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का अभाव: हितधारकों में अक्सर सहयोग की कमी होती है, जिससे परमाणु अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में बाधा आती है। चूँकि परमाणु अपशिष्ट एक वैश्विक मुद्दा है, इसलिये ज्ञान साझा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने और परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने वाले सभी देशों में ज़िम्मेदार प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

भारत परमाणु अपशिष्ट से कैसे निपटता है?

  • इंटरनेशनल पैनल ऑन फिशाइल मैटेरियल्स (IPFM) की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ट्रॉम्बे, तारापुर और कलपक्कम में पुनर्संसाधन संयंत्र हैं।
    • ट्रॉम्बे सुविधा चरण-II रिएक्टरों के साथ-साथ परमाणु हथियारों हेतु प्लूटोनियम का उत्पादन करने के लिये दो अनुसंधान रिएक्टरों से खर्च किये गए ईंधन के रूप में प्रति वर्ष 50 टन भारी धातु (tHM/y) का पुनर्संसाधन करती है।
    • तारापुर में स्थित दो रिएक्टरों में से एक का उपयोग कुछ दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों (चरण-I) से 100 tHM/y ईंधन को पुन: संसाधित करने के लिये किया जाता है और दूसरे रिएक्टर का संचालन वर्ष 2011 से शुरू हुआ जिसकी क्षमता 100 tHM/y है।
    • कलपक्कम में स्थित तीसरे रिएक्टर की क्षमता 100 tHM/y है।
  • रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि तारापुर और कलपक्कम में स्थित रिएक्टरों की संयुक्त औसत क्षमता कारक लगभग 15% है।

आगे की राह

  • पुनः संसाधित करना (रि-प्रोसेसिंग): इसमें उपयोग किये गए नाभिकीय ईंधन से उपयोग योग्य सामग्रियों को अलग करना शामिल है। पुनर्संसाधन से प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे मूल्यवान तत्त्वों के पुनर्चक्रण में सहायता मिलती है, जिससे उच्च-स्तरीय अपशिष्ट की मात्रा कम हो जाती है जिसके लिये दीर्घकालिक भंडारण की आवश्यकता होती है।
  • विट्रीफिकेशन: इस प्रक्रिया में रेडियोधर्मी अपशिष्ट को काँच में परिवर्तित करना शामिल है जो अपशिष्ट के हानिकारक घटकों को स्थिर करता है और पर्यावरण में इसके रिसाव को रोकता है।
    • इसका उपयोग उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्ट के लिये किया जाता है और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  • अनुसंधान और विकास: नाभिकीय अपशिष्ट प्रबंधन के लिये निपटान के वैकल्पिक विधियों और नवीन प्रौद्योगिकियों का पता लगाने के लिये अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • इसमें अपशिष्ट की रोकथाम करने हेतु उन्नत सामग्रियों का अन्वेषण करना, निपटान के भूवैज्ञानिक विकल्पों की खोज करना और अधिक कुशल अपशिष्ट उपचार प्रक्रियाओं को विकसित करना शामिल है।
  • नियामक निरीक्षण: नाभिकीय अपशिष्ट की सुरक्षित हैंडलिंग, परिवहन और भंडारण सुनिश्चित करने के लिये सख्त नियामक ढाँचे की आवश्यकता है। भारत की नियामक अभिकरण सुरक्षा मानकों के अनुपालन का अनुवीक्षण करते हैं और नाभिकीय अपशिष्ट से संबंधित पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिये नियम लागू करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नाभिकीय अपशिष्ट का प्रबंधन एक वैश्विक मुद्दा है। परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने वाले सभी देशों में ज्ञान साझा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने और उत्तरदायी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत 'अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर' (International Thermonuclear Experimental Reactor) का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है। यदि यह प्रयोग सफल हो जाता है तो भारत का तात्कालिक लाभ क्या है? (2016)

(a) यह विद्युत उत्पादन के लिये यूरेनियम के स्थान पर थोरियम प्रयुक्त कर सकता है। 
(b) यह उपग्रह मार्गनिर्देशन (सैटेलाइट नेविगेशन) में वैश्विक भूमिका प्राप्त कर सकता है। 
(c) यह विद्युत उत्पादन में अपने विखंडन (फिशन) रिएक्टरों की दक्षता में तेज़ी से सुधार ला सकता है। 
(d) यह विद्युत उत्पादन के लिये (संलयन) फ्यूज़न रिएक्टर का निर्माण कर सकता है। 

उत्तर: (d)


प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य है: (2011)

(a) न्यूट्रॉन की गति धीमा करना।
(b) न्यूट्रॉन की गति बढ़ाना।
(c) रिएक्टर को ठंडा करना।
(d) परमाणु प्रतिक्रिया को बंद करना।

उत्तर: (a) 


प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का।
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का।
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा।
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले।

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सवृद्धि तथा विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017)

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