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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में वित्तीयन की चुनौती

  • 10 Apr 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन के क्रियान्वयन को मंज़ूरी दे दी है, जिसे बजट 2018-19 के दौरान घोषित किया गया था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य गरीब और कमजोर आबादी से संबंधित लगभग 10.7 करोड़ परिवारो में प्रति परिवारों को पाँच लाख रूपए देने का प्रावधान है। इस मिशन के तहत बीमा कवरेज माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के स्तर पर अस्पताल में भर्ती के लिये लक्षित है। 

भारत एवं अन्य देशों के बीच स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण में अंतर

  • भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य (कुल केंद्र और राज्य सरकार) पर 2008 और 2015 के बीच सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3% के व्यय की निरंतरता बनी हुई है और यह  2016-17 में मामूली वृद्धि के साथ 1.4% हो गई है जो 6% के विश्व औसत से कम है ।
  • ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को  2025 तक जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
  • निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए कुल स्वास्थ्य व्यय जीडीपी के प्रतिशत के रूप में अनुमानित 3.9% है। जबकि कुल व्यय में से एक तिहाई (30%) व्यय सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
  • अन्य विकासशील और विकसित देशों जैसे - ब्राज़ील (46%), चीन (56%), इंडोनेशिया (39%), संयुक्त राज्य अमेरिका (48%) और ब्रिटेन (83%) की तुलना में यह योगदान कम है। 

स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय के संबंध में भारत की स्थिति
केंद्रीय स्तर पर खर्च

  • 2018-19 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 54,600 करोड़ रुपए (2017-18 से 2% की वृद्धि) का आवंटन किया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को 30,130 करोड़ रुपए का सर्वोच्च आवंटन प्राप्त हुआ और मंत्रालय के कुल आवंटन का 55% का उपयोग हुआ। उच्च आवंटन के बावजूद, एनएचएम के सन्दर्भ में वर्ष 2017-18 के मुकाबले आवंटन में गिरावट देखी गई है।
  • एक अनुमान के मुताबिक 2017-18 में एनएचएम पर होने वाला खर्च 4,000 करोड़ रुपए से अधिक होने की संभावना है। एक समान प्रवृत्ति समग्र मंत्रालय स्तर पर प्रदर्शित की जाती है, जहाँ पिछले तीन वर्षों में आवंटित निधि का उपयोग 100% से अधिक हो गया है।

राज्य स्तरीय खर्च

  • राज्य स्तरीय खर्च के संबंध में नीति आयोग की एक रिपोर्ट (2017) में उल्लेख किया गया है कि कम आय वाले राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं जैसे सामाजिक सेवाओं पर राजस्व क्षमता काफी कम है।
  • इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाएँ देने की लागत में अंतर ने राज्यों और राज्यों के बीच स्वास्थ्य असमानताओं में योगदान दिया है।
  • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद, करों के केंद्रीय पूल में राज्यों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है और उन्हें प्राथमिकता के अनुसार खर्च करने के लिये अधिक स्वायत्तता और लचीलेपन की स्थिति प्रदान की गई है। इसके बावजूद, कुछ राज्यों के स्वास्थ्य बजट में मामूली वृद्धि देखी गई है।

उपभोक्ता स्तरीय खर्च  

  • अपनी जेब से किये गए खर्च (Out-of-Pocket Spending-OOPS) का सर्वाधिक प्रतिशत (52%) दवाओं के लिये व्यय किया जाता है, इसके बाद निजी अस्पतालों  (22%), चिकित्सा और नैदानिक प्रयोगशालाओं (10%), रोगी परिवहन और आपातकालीन बचाव (6%) के रूप में किया जाता है।
  • OOPS वह धनराशि है जो किसी बीमा या स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत प्राप्त सहायता की बजाय स्वयं के द्वारा व्यय की जाती है।
  • OOPS से बाहर स्वास्थ्य संबंधी खर्च आमतौर पर घरेलू राजस्व (71%) द्वारा वित्त पोषित होता है। गौरतलब है कि ग्रामीण जनसंख्या का 86% और शहरी आबादी का 82% स्वास्थ्य व्यय समर्थन की किसी भी योजना के तहत शामिल नहीं हैं ।
  • OOPS की स्वास्थ्य संबंधी खर्चों की अधिकता के कारण आबादी का 7% तबका हर साल गरीबी रेखा से नीचे चला जाता है।

भारत में स्वास्थ्य बीमा की स्थिति –

  • भारत की कुल संख्या में से तीन-चौथाई सरकार प्रायोजित स्वास्थ्य योजनाओं के अंतर्गत आते हैं और शेष एक-चौथाई को निजी बीमा कंपनियों द्वारा कवर किया जाता है। 
  • सरकार प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा के संबंध में, एकत्र किये गए प्रीमियम की तुलना में अधिक दावे किये गए हैं, अर्थात् सरकार को प्राप्त रिटर्न नकारात्मक रहा है। 

प्रमुख बिंदु

  • सबसे पहले, यह योजना स्वास्थ्य देखभाल के माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर अस्पताल में भर्ती के लिये कवरेज प्रदान करती है। 
  • ध्यातव्य है कि योजना आयोग (2011) द्वारा स्थापित उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह ने सिफारिश की थी कि देश में स्वास्थ्य देखभाल की मज़बूत स्थिति के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने पर  ध्यान केंद्रित होना चाहिये।
  • यह देखा गया है कि स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम और प्रारंभिक प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने से तृतीयक स्तर पर उपलब्ध जटिल विशेषज्ञ देखभाल की आवश्यकता को कम किया जा सकता है।
  • ध्यातव्य है कि भारत में स्वास्थ्य संस्थानों के स्तर के आधार पर इन्हें तीन प्रकारों यथा - प्राथमिक देखभाल (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध), माध्यमिक देखभाल (जिला अस्पताल में दी गई) और तृतीयक देखभाल संस्थान में वर्गीकृत किया गया है ।
  • दूसरा, मिशन का ध्यान अस्पताल में भर्ती (अस्पताल में भर्ती होने के पूर्व और बाद में) पर होता है। हालाँकि,उपभोक्ताओं द्वारा जेब व्यय का अधिकांश हिस्सा वास्तव में दवाओं की खरीद पर (52%) किया जाता  है।
  •  इसके अलावा, यह खरीद ज्यादातर उन रोगियों के लिए होती है ,जिनके लिये अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है।
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