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बीएस-4 इंजन वाले वाहनों से उत्सर्जन में कटौती

  • 04 Apr 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2017 से बीएस-3 (BS-3) इंजन वाली गाड़ियों की बिक्री पर रोक लगा दी है। इसलिये,1 अप्रैल से देश में केवल बीएस-4 (BS-4) इंजन वाली गाड़ियाँ ही बनाई और बेची जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय देश में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को ध्यान में रखते हुए दिया है। उल्लेखनीय है कि बीएस-4 इंजन का इस्तेमाल करने वाले वाहन, बीएस-3 के मुकाबले अत्यंत ही कम प्रदुषण फैलाते हैं।

बीएस-4 में उत्सर्जन स्तर इतना कम क्यों ?

भारत स्टेज-3 उत्सर्जन मानदंडों के अनुरूप डिज़ाइन किये गए वाहन, भारत स्टेज-4 के स्तर वाले इंजन से व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। सामान्य तौर पर इनकी भिन्नता हमें दिखाई नहीं देती। हालाँकि वे सेंसर सिस्टम, कम सल्फर वाले ईंधन के दोहन क्षमता और उत्सर्जन को निर्धारित करने वाले इंजन की “निकास प्रणाली” के स्तर पर एक-दुसरे से काफी अलग होते हैं। इन्हीं भिन्नताओं के कारण बीएस-4 स्तर के वाहनों में नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन अत्यंत ही कम होता है।

यह कार्बन मोनो ऑक्साइड को 56% कम कर देगा जिससे कि सरदर्द और उल्टी की शिकायत होती है। ईंधन के जलने से निकलने वाले हाइड्रोकॉर्बन को बीएस-4 स्तर वाले वाहनों के प्रयोग से 50% तक कम किया जा सकता है। पार्टिकुलेट मैटर जिससे कि फेफड़ों को नुकसान पहुँचता है, उसका उत्सर्जन बीएस-4 के माध्यम से 80% तक कम किया जा सकता है। यह सब इसलिये सम्भव है क्योंकि बीएस-4 स्तर के वाहनों के इंजन में केवल ‘प्रति दस लाख 50 भाग’ {50 part per million (ppm)} सल्फ़र वाले ईंधन का ही उपयोग किया जा सकता है, वहीं बीएस-3 स्तर के वाहनों में 350 पीपीएम सल्फ़र वाले ईंधन का प्रयोग किया जाता है।

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