भारतीय अर्थव्यवस्था
अंतराल को कम करना: भारत की गिग इकाॅनमी का सुदृढ़ीकरण
- 07 Jul 2025
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प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), गिग वर्कर्स, नीति आयोग, ई-कॉमर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), न्यूनतम मज़दूरी, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020, भारत की गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था पर नीति आयोग की रिपोर्ट (2022), ई-श्रम पोर्टल मेन्स के लिये:भारत की आर्थिक वृद्धि में गिग इकाॅनमी की भूमिका, भारत में गिग इकाॅनमी से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को औपचारिक रूप से मान्यता देने के साथ उनके लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया गया है। हालाँकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के तहत अभी भी इनके लिये समर्पित वर्गीकरण का अभाव है जिससे नीतिगत लक्ष्य और डेटा स्पष्टता के बीच अंतर होने से समावेशी एवं प्रभावी नीति-निर्माण में बाधा आती है।
गिग इकाॅनमी क्या है और इसके वर्गीकरण में वर्तमान अंतराल क्या है?
- गिग इकाॅनमी: गिग इकाॅनमी अल्पकालिक, लचीले और लक्ष्य आधारित कार्य से संबंधित एक श्रम बाज़ार है जिसे अक्सर डिजिटल प्लेटफॉर्मों द्वारा सुगम बनाया जाता है।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 की धारा 2(35) के अनुसार, गिग वर्कर "वह व्यक्ति है जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के इतर कार्य करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है तथा ऐसी गतिविधियों से आय का सृजन करता है।"
- ये आमतौर पर फ्रीलांसर या स्वतंत्र ठेकेदार होते हैं जिन्हें नियमित वेतन के बजाय प्रति कार्य के अनुसार भुगतान किया जाता है। इसके उदाहरणों में फूड डिलीवरी, राइड-हेलिंग और ऑनलाइन फ्रीलांस सेवाएँ शामिल हैं।
- प्रमुख पहलू:
- स्थिति और वर्गीकरण अंतराल: भारत में वर्ष 2020-21 में 7.7 मिलियन गिग वर्कर थे, जिनके वर्ष 2029-30 तक 23.5 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है (नीति आयोग), जिनमें से अधिकांश मध्यम-कौशल वाले रोज़गार में संलग्न होंगे)।
- हालाँकि PLFS में गिग श्रमिकों के लिये कोई अलग वर्गीकरण नहीं है लेकिन उन्हें स्व-नियोजित या आकस्मिक श्रमिकों जैसी व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत रखा गया है।
- यद्यपि गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को तकनीकी रूप से "आर्थिक गतिविधि" के अंतर्गत शामिल किया गया है लेकिन उनकी विशिष्ट कार्य स्थितियों (एल्गोरिदम नियंत्रण, औपचारिक अनुबंधों की कमी, अनियमित घंटे और बहु-प्लेटफॉर्म जुड़ाव) को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।
- वर्गीकरण में इस अंतराल के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:
- कल्याणकारी योजनाओं का लाभ न मिलना (क्योंकि PLFS डेटा से लाभार्थियों को लक्षित किया जाता है)।
- रोज़गार की स्थिति का अनुचित प्रदर्शन (रोज़गार की असुरक्षा और आय की अस्थिरता का ठीक से पता नहीं चल पाता है)।
- नीतिगत कमियाँ (साक्ष्य-आधारित श्रम सुधारों का अप्रभावी होना)।
- विधिक अस्पष्टता से सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत प्रवर्तन प्रभावित होता है।
भारत में गिग इकाॅनमी को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- डिजिटल पहुँच का विस्तार: 936 मिलियन से अधिक इंटरनेट और 650 मिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ताओं के साथ (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) सुलभ कनेक्टिविटी से अधिक लोग गिग वर्क के क्रम में डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ने में सक्षम हो रहे हैं।
- ई-कॉमर्स और स्टार्टअप में वृद्धि: स्टार्टअप और ऑनलाइन व्यवसायों के उदय से लॉजिस्टिक्स, कंटेंट, मार्केटिंग एवं डिलीवरी सेवाओं में अनुकूल श्रम की मांग में वृद्धि हुई है।
- सुविधा आधारित उपभोक्ता मांग: शहरी उपभोक्ता तीव्रता से फूड डिलीवरी और ऑनलाइन शॉपिंग जैसी त्वरित सेवाओं को पसंद कर रहे हैं जिससे इस संदर्भ में गिग वर्कर्स की भूमिकाएँ बढ़ रही हैं।
- कम लागत वाले श्रम की उपलब्धता: उच्च बेरोज़गारी, अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की अधिकता और सीमित सामाजिक सुरक्षा के कारण कई लोग आजीविका के विकल्प के रूप में कम वेतन वाले गिग कार्यों का रुख करते हैं।
- कार्य संबंधी प्राथमिकताओं में बदलाव: युवा कर्मचारी पारंपरिक कार्यों की तुलना में गिग कार्य से संबंधित अनुकूलन, दूरस्थ कार्य की सुविधा और कार्य-जीवन संतुलन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
भारत की आर्थिक संवृद्धि में गिग इकाॅनमी का क्या महत्त्व है?
- अनौपचारिक से औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तन: गिग प्लेटफॉर्म (जैसे- ज़ोमैटो, स्विगी) कृषि और अनौपचारिक क्षेत्रों से श्रमिकों को संलग्न कर निश्चित आय में भूमिका निभाते हैं।
- वर्ष 2023 में फेस्टिवल सीज़न में 40-50% तक आय में वृद्धि देखी गई, जो आर्थिक प्रभाव और क्षेत्रीय अनुकूलन का परिचायक है।
- कार्यबल भागीदारी में समावेशन: गिग इकाॅनमी से हाशिये पर स्थित समूहों (विशेषकर महिलाओं और ग्रामीण श्रमिकों) के लिये वित्तीय स्वायत्तता और सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है।
- लगभग 28% गिग वर्कर महिलाएँ हैं जिनमें से कई अर्बनक्लैप जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से अनुकूल, होम-बेस्ड सर्विस (विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में) में संलग्न हैं।
- उद्यमशील पारिस्थितिकी तंत्र: 80% से अधिक गिग श्रमिक स्व-नियोजित हैं जो उबर जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से उद्यमशील मानसिकता को बढ़ावा देने के साथ परिवहन, वितरण और फ्रीलांसिंग में नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
- डिजिटल और आर्थिक विकास: गिग इकॉनमी स्मार्टफोन, डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन सेवाओं के बढ़ते उपयोग के माध्यम से डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने में सहायक है। गिग कार्य को मुख्यधारा में एकीकृत करके, इससे तकनीक-आधारित आर्थिक विकास को समर्थन मिलेगा।
- वर्ष 2023 में ब्लिंकिट और स्विगी जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से त्योहारों के दौरान आय में 40-50% की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे ई-कॉमर्स एवं उपभोग को बढ़ावा देने में गिग श्रमिकों की भूमिका पर प्रकाश पड़ता है।
- कर राजस्व और औपचारिकता: गिग प्लेटफॉर्म डिजिटल लेन-देन के माध्यम से भुगतान को औपचारिक बनाकर भारत के कर आधार को बढ़ावा देने में भूमिका निभाते हैं और सरकार को पहले से कर-मुक्त आर्थिक गतिविधियों का लाभ उठाने में सक्षम बनाते हैं।
- वर्ष 2024 में सरकार ने इस क्षेत्र की निगरानी और प्रबंधन के क्रम में गिग श्रमिकों के लिये ई-श्रम पंजीकरण सहित नियामक ढाँचे की शुरुआत की।
- आयुष्मान भारत (PM-JAY) जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अंतर्गत इनके समावेशन से कार्यबल और भी अधिक संस्थागत हुआ तथा क्षेत्रीय विस्तार हेतु नवीन रास्ते खुले।
भारत में गिग इकाॅनमी के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- सामाजिक सुरक्षा का अभाव: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत गिग श्रमिकों को मान्यता दी गई है लेकिन निश्चित कार्य घंटे, न्यूनतम मज़दूरी और विवाद समाधान के साथ पूर्ण श्रम अधिकारों की गारंटी नहीं दी गई है।
- नीति आयोग की वर्ष 2024 की रिपोर्ट से पता चलता है कि 90% गिग श्रमिकों में बचत का अभाव होने के साथ ये आपात स्थिति के दौरान असुरक्षित स्थिति में होते हैं।
- आयुष्मान भारत PM-JAY और ई-श्रम जैसी मौजूदा योजनाओं के बाद भी इसमें संलग्न कार्मिकों को पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है।
- PM-JAY के तहत अस्पताल में भर्ती की स्थिति को कवर किया जाता है। ई-श्रम द्वारा दुर्घटना बीमा प्रदान किया जाता है लेकिन इसमें आय सुरक्षा, सवेतन अवकाश या पेंशन का अभाव रहने से व्यापक सामाजिक सुरक्षा में अंतराल पर प्रकाश पड़ता है।
- आय अस्थिरता और शोषणकारी स्थितियाँ: भारत में गिग श्रमिक प्रतिमाह 15,000-20,000 रुपए (अक्सर न्यूनतम मज़दूरी से भी कम) कमाते हैं।
- 70% से अधिक लोग प्लेटफाॅर्म कमीशन के कारण वित्तीय तनाव का सामना करते हैं। "प्रिज़नर्स ऑन व्हील्स" रिपोर्ट से पता चलता है कि 78% लोग एल्गोरिदमिक दबाव में रोज़ाना 10 घंटे से अधिक कार्य करते हैं जिससे उन्हें शारीरिक एवं मानसिक थकावट होती है।
- मनमाना डिएक्टिवेशन और ग्राहक उत्पीड़न: 83% कैब ड्राइवरों और 87% डिलीवरी कर्मचारियों द्वारा अचानक अकाउंट डिएक्टिवेशन से आय में कमी के साथ असुरक्षा उत्पन्न हुई।
- इसके अतिरिक्त, 72% ड्राइवरों और 68% डिलीवरी कर्मचारियों को ग्राहकों के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिससे शिकायत निवारण तथा प्लेटफॉर्म की जवाबदेहिता से संबंधित कमी पर प्रकाश पड़ता है।
गिग वर्कर्स से संबंधित भारत की प्रमुख पहल
भारत की गिग इकाॅनमी से संबंधित अंतराल को दूर करने हेतु क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- समावेशी डेटा और औपचारिकता: प्लेटफॉर्म निर्भरता और बहु-ऐप उपयोग जैसी गिग कार्य सुविधाओं को स्पष्ट रूप से कैप्चर करने के क्रम में PLFS कोड को अपडेट करना चाहिये।
- लक्षित कल्याण के क्रम में तकनीक-सक्षम सर्वेक्षणों को ई-श्रम डेटाबेस के साथ एकीकृत करना चाहिये।
- पेंशन, बीमा और क्षेत्रवार लाभ ट्रैकिंग से संबंधित एकीकृत डिजिटल पहचान के रूप में ई-श्रम का विस्तार करना चाहिये।
- विधिक और सामाजिक सुरक्षा ढाँचा: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को परिभाषित किया गया है लेकिन इसमें न्यूनतम मज़दूरी, कार्यों के निश्चित घंटे एवं सामूहिक सौदेबाज़ी जैसे मूल श्रम अधिकारों के प्रावधानों का अभाव है।
- सभी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत विधिक ढाँचे की आवश्यकता है।
- सुरक्षा एवं श्रमिक संरक्षण अधिदेश के तहत पारदर्शी समाधान प्रक्रिया के साथ समय पर समाधान की गारंटी प्रदान करनी चाहिये।
- प्रोत्साहन और राज्य स्तरीय पहल: सामाजिक सुरक्षा और उचित वेतन मानदंडों का अनुपालन करने वाले प्लेटफाॅर्मों को कर छूट, सब्सिडी एवं निविदा वरीयता प्रदान करने के साथ स्वैच्छिक अनुपालन को बढ़ावा देना चाहिये।
- कौशल विकास, श्रमिक सहायता केंद्र और श्रमिक आवास जैसी राज्य-विशिष्ट नीतियों को अनुमति देनी चाहिये।
- राजस्थान प्लेटफॉर्म आधारित गिग कर्मकार अधिनियम इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिससे अन्य राज्य भी प्रेरणा ले सकते हैं।
जैसे-जैसे भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, डिजिटल कार्यबल का लाभ लेना निर्णायक है। हालाँकि PLFS में गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये अलग-अलग वर्गीकरण की कमी से नीति-निर्माण में इनकी भूमिका में कमी आती है। भारत के उभरते कार्यबल हेतु समावेशी और न्यायसंगत श्रम तथा सामाजिक कल्याण नीतियों को सुनिश्चित करने के क्रम में सुरक्षात्मक विधि के साथ-साथ डेटा सिस्टम को मज़बूत करना आवश्यक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. भारत में गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इनके कल्याण को बेहतर करने तथा श्रम सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु नीतिगत उपाय बताइये। |
UPSC विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: भारत में नियोजित अनियत मज़दूरों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: B मेन्सQ. भारत में महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021) |