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बीआईएस द्वारा पेयजल मानक का मसौदा

  • 24 Aug 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय मानक ब्यूरो, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, जल-जीवन मिशन

मेन्स के लिये:

जल प्रदूषण की चुनौती और इससे निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ (Bureau of Indian Standards- BIS) ने पाइप द्वारा पेयजल की आपूर्ति के लिये मानकों का एक मसौदा तैयार किया गया है ।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘पेयजल आपूर्ति गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली- पाइप द्वारा पेयजल आपूर्ति सेवा के लिये आवश्यकताएँ’ नामक यह मसौदा भारतीय मानक ब्यूरो की ‘सार्वजनिक पेयजल आपूर्ति सेवा अनुभागीय समिति’ (Public Drinking Water Supply Services Sectional Committee) द्वारा तैयार किया गया है।
  • इस मसौदे में स्त्रोत से लेकर घर के नल तक पानी की आपूर्ति की प्रक्रिया को रेखांकित किया गया है।
  • इस मसौदे को केंद्र सरकार द्वारा ‘जल जीवन मिशन’ के तहत वर्ष 2024 तक नल कनेक्शन के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।

आवश्यक दिशा-निर्देश:

  • इस मसौदे में जल आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया गया है, जिनमें पाइप द्वारा पेयजल आपूर्ति प्रणाली की स्थापना, संचालन, रखरखाव और इससे जुड़े सुधारों को शामिल किया गया है।
  • इस मसौदे में निर्धारित प्रक्रिया जल स्त्रोत की पहचान से शुरू होती है, जो भू-जल, सतही जल स्रोत जैसे नदी, झरना या जलाशय हो सकता है।
  • जल के प्रसंस्करण के पश्चात जल की गुणवत्ता BIS द्वारा विकसित भारतीय मानक ‘आईएस-10500’ (IS-10500) के अनुरूप होनी चाहिये।
  • आईएस 10500 जल में उपस्थित विभिन्न पदार्थों की स्वीकार्य मात्रा को रेखांकित करता है, जिनमें आर्सेनिक जैसी भारी धातुएँ, पानी में धुलित ठोस पदार्थ, जल का pH मान (pH Value), रंग और गंध आदि मापदंड शामिल हैं।
  • इस मसौदे में उपभोक्ताओं के हितों पर विशेष ध्यान, उत्तरदायित्व, सेवा के लिये एक गुणवत्ता नीति स्थापित करने, लोगों को उपलब्ध कराए जा रहे जल की गुणवत्ता की निगरानी और परीक्षण से संबंधित आवश्यक दिशा-निर्देशों को शामिल किया गया है।
  • मसौदे में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, उपचार संयंत्र से प्रत्येक चार घंटे, संयत्र के जलाशयों में एकत्र जल से प्रत्येक आठ घंटे पर जल के नमूने लेकर निर्धारित मानकों पर इसकी जाँच की जानी चाहिये। साथ इस प्रक्रिया के तहत घरों के स्तर पर भी जल के यादृच्छिक नमूने लेकर उनकी जाँच की जानी चाहिये।

जल वितरण प्रक्रिया:

  • इस मसौदे के अनुसार, जल स्त्रोत की पहचान के बाद जल में निर्धारित मानकों के अनुरूप पीने योग्य गुणवत्ता बनाए रखने के लिये इसे एक उपचार संयंत्र से गुजारा जाएगा।
  • उपचार संयंत्र से निकलने के बाद जल के भंडारण हेतु वितरण प्रणाली में जलाशय होने चाहिये साथ ही वितरण के किसी भी स्तर पर संदूषण (Contamination) से छुटकारा पाने के लिये कीटाणुशोधन सुविधा की व्यवस्था होनी चाहिये।
  • वितरण प्रणाली में पर्याप्त दबाव बनाए रखने के लिये आवश्यकता पड़ने पर पंपिंग स्टेशन या बूस्टर (Booster) का प्रबंध किया जाना चाहिये।
  • वितरण प्रणाली में जल के नियंत्रण और निगरानी के लिये मीटर, वाल्व (Valve) और अन्य आवश्यक उपकरण लगाए जाने चाहिये।
  • इस मसौदे के अनुसार, वितरण प्रणाली को स्वचालित मोड (Automation Mode) में चलाने पर विशेष बल दिया जाना चाहिये।
  • जहाँ भी संभव हो वहाँ ‘डिस्ट्रिक्ट मीटरिंग एरिया’ (District Metering Area- DMA) की अवधारणा को अपनाया जाना चाहिये।
  • बेहतर निगरानी/ऑडिट के लिये आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा जल वितरण प्रणाली में ‘बल्क वाटर मीटर’ (Bulk Water Meters) की व्यवस्था की जा सकती है, हालाँकि घरेलू मीटर का भी प्रावधान किया जाना चाहिये।
    • मीटर में संभावित छेड़छाड़ से बचने के लिये जल आपूर्तिकर्त्ताओं क यह सुनिश्चित करना होगा कि उपभोक्ताओं तक मीटर की सीधी पहुँच न हो।

‘डिस्ट्रिक्ट मीटरिंग एरिया’ (District Metering Area- DMA):

  • DMA जल नेटवर्क में रिसाव को नियंत्रित करने के लिये एक अवधारणा है।
  • इसके तहत जल वितरण तंत्र को विभिन्न क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है, जिन्हें डिस्ट्रिक्ट मीटरिंग एरिया के नाम से जाना जाता है।
  • इसके तहत जल रिसाव का पता लगाने के लिये विभाजन बिंदु पर एक ‘प्रवाह मीटर’ या ‘फ्लो मीटर’ (Flow Meter) लगा दिया जाता है।

स्वच्छ जल आपूर्ति का संकट:

  • वर्ष 2019 में ‘केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ द्वारा जारी जल गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, देश के विभिन्न शहरों (दिल्ली, हैदराबाद, भुवनेश्‍वर, रांची आदि) में जल की गुणवत्ता निर्धारित मानकों के अनुरूप संतोषजनक नहीं पाई गई।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के 13 राज्यों की राजधानियों (चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, गुवाहाटी, बंगलूरू, गांधीनगर, लखनऊ, जम्‍मू, जयपुर, देहरादून, चेन्‍नई और कोलकाता) में एकत्र नमूनों में जल की गुणवत्ता मानकों के अनुरूपसही नहीं थी।
  • मार्च, 2020 में ‘केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कम-से-कम 30 ज़िलों का भू-जल प्रदूषित पाया गया, इन ज़िलों से लिये गए भू-जल के नमूनों में आर्सेनिक, आयरन, लेड,कैडमियम, क्रोमियम, नाइट्रेट जैसी धातुएँ पाई गईं थी।

आगे की राह:

  • हाल के वर्षों में जनसंख्या वृद्धि और तेज़ी से होते औद्योगिक विकास के कारण शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वच्छ जल की आपूर्ति एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
  • जल के प्रबंधन में तकनीकी और डेटा आधारित पद्धतियों को बढ़ावा देकर तथा जल गुणवत्ता संबंधी मानकों का अनुपालन सुनिश्चित कर इस समस्या को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।
  • जल की गुणवत्ता के संदर्भ में जागरूकता फैलाने तथा स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ‘नीति आयोग’ (NITIAayog) द्वारा जारी ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (Composite Water Management Index- CWMI) तथा सरकार द्वारा शुरू की गई ‘अटल भू-जल योजना’ (2019) और ‘जल-जीवन मिशन’ योजना इस दिशा में उठाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम हैं।

स्त्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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