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भारतीय राजनीति

चुनावी खर्च संबंधी विधेयक

  • 07 Dec 2019
  • 3 min read

प्रीलिम्स के लिये:

चुनाव आयोग

मेन्स के लिये:

चुनावों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा में आम चुनावों में होने वाले खर्च की अधिकतम सीमा हटाए जाने संबंधी गैर-सरकारी विधेयक पर चर्चा की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • विधेयक को इस आधार पर पेश किया गया है कि चुनावों में खर्च की अधिकतम सीमा के कारण उम्मीदवार किये गए खर्च पर गलत आँकड़े पेश करते हैं
  • चुनाव संचालन नियम 1961 के तहत लोकसभा के उम्मीदवार के अधिकतम खर्च की सीमा 70 लाख रुपए है वहीं 28 लाख रुपए तक के अधिकतम खर्च की सीमा विधानसभा के उम्मीदवारों के लिये निर्धारित की गई है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत, प्रत्येक उम्मीदवार नामांकन की तिथि और परिणाम की घोषणा की तिथि के बीच किये गए सभी व्यय का अलग और सही हिसाब रखेगा।
  • सभी उम्मीदवारों को चुनाव पूरा होने के 30 दिनों के भीतर अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
  • चुनाव में किये गये व्यय के गलत विवरण के आधार पर चुनाव आयोग उम्मीदवार को उम्मीदवार अधिनियम, 1951 की धारा 10 ए के तहत तीन साल तक के लिये अयोग्य घोषित कर सकता है।
  • ग़ौरतलब है कि किसी राजनीतिक पार्टी के खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, जिसका अक्सर पार्टी के उम्मीदवारों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है।
  • हालाँकि, सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर अपने चुनाव खर्च का विवरण चुनाव आयोग को सौंपना होगा।

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951

(Representation of the People’s Act, 1951):

  • जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 को संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत पारित किया गया था।
  • चुनावों का आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं।
  • इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाया है।
  • इस कानून और नियम में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने के लिये, चुनाव की अधिसूचना, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।

स्रोत- द हिंदू

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