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जैव विविधता और पर्यावरण

बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क

  • 15 Mar 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण और वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests-MOEF) के इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) की विशेषज्ञ समिति की 33वीं बैठक आयोजित हुई।

  • इसमें बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के कुछ क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • हाल में पर्यावरण और वन मंत्रालय की ESZ की विशेषज्ञ समिति की बैठक में 5 नवंबर, 2018 के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के आधार पर बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के आस-पास के लगभग 168.84 वर्ग किमी. क्षेत्र को ESZ क्षेत्र घोषित किया गया।
  • 2016 में जारी पहले ड्राफ्ट नोटिफिकेशन से 268.9 वर्ग किमी. का ESZ क्षेत्र चिह्नित किया गया था।
  • नए ESZ संरक्षित क्षेत्र की परिधि 100 मीटर (बंगलुरु की ओर) से 1 किलोमीटर (रामनगरम ज़िले) तक होगी।
  • ESZ कमेटी के अनुमान के अनुसार, बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क में 150 से 200 के बीच हाथी देखे गए।

इको-सेंसिटिव ज़ोन

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
  • सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के तहत निषिद्ध उद्योगों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
  • ये दिशा-निर्देश वाणिज्यिक खनन, जलाने योग्य लकड़ी के वाणिज्यिक उपयोग और प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास की गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क

  • कर्नाटक के बंगलूरू में स्थित बन्नेरघट्टा उद्यान की स्थापना 1972 में की गई थी और 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
  • 2002 में उद्यान के एक हिस्से को जैविक रिज़र्व बना दिया गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
  • 2006 में देश का पहला तितली पार्क यहीं स्थापित किया गया।
  • यहाँ जंगली बिल्लियों, भारतीय तेंदुओं, बाघ, चीतों एवं हाथियों को नैसर्गिक रूप से देखा जा सकता है।
  • यह एक चिड़ियाघर, पालतू जानवरों का कार्नर, पशु बचाव केंद्र, तितली पार्क, मछलीघर, सांपघर, मगरमच्छ फॉर्म और सफारी पार्क के साथ ही एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
  • कर्नाटक का चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलूरू और अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एन्वायरमेन्ट (ATREE), बंगलूरू इसकी सहयोगी एजेंसियाँ हैं।

बन्नेरघट्टा पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन में कमी

स्रोत - द हिंदू

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