इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

संविधान का अनुच्छेद 299: सरकारी अनुबंध

  • 02 Jun 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संविधान का अनुच्छेद 299, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, सरकारी अनुबंध 

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक निधि की सुरक्षा में अनुच्छेद 299 की भूमिका, सरकारी अनुबंधों के संबंध में अनुच्छेद 299 के प्रावधान 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के नाम पर किये गए सरकारी अनुबंधों के कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट किया।

  • ग्लॉक एशिया-पैसिफिक लिमिटेड और केंद्र से संबंधित एक मामले में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारत के राष्ट्रपति के नाम पर किये गए अनुबंध वैधानिक विधि से प्रतिरक्षा प्रदान नहीं कर सकते हैं। 
  • यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 299 की व्याख्या और सरकारी अनुबंधों के लिये इसके निहितार्थ पर प्रकाश डालता है।

सरकारी अनुबंध: 

  • परिचय: 
    • सरकारी अनुबंध सरकार द्वारा निर्माण, प्रबंधन, रखरखाव, मरम्मत, जनशक्ति आपूर्ति, आईटी से संबंधित परियोजनाओं आदि जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये किये गए अनुबंध हैं।
    • सरकारी अनुबंधों में एक पार्टी के रूप में केंद्र सरकार या राज्य सरकार या एक सरकारी निकाय और दूसरी पार्टी के रूप में एक निजी व्यक्ति या संस्था शामिल होती है।
    • सरकारी अनुबंधों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 299 द्वारा निर्धारित कुछ औपचारिकताओं और सुरक्षा नियमों का अनुपालन करना होता है।
    • सरकारी अनुबंध सार्वजनिक जाँच और जवाबदेही के अधीन हैं और निष्पक्षता, पारदर्शिता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं गैर-भेदभाव के सिद्धांतों द्वारा शासित हैं।
  • सरकारी अनुबंधों के लिये आवश्यकताएँ:  
    • अनुबंध को राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा व्यक्त किया जाना चाहिये।
    • इसे लिखित रूप में निष्पादित किया जाना चाहिये।
    • अनुबंधों का निष्पादन व्यक्तियों और राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित या अधिकृत तरीके से किया जाना चाहिये। 

संविधान का अनुच्छेद 299: 

  • परिचय: 
    • संविधान का अनुच्छेद 299 भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से किये गए अनुबंधों के प्रकार और स्वरूप से संबंधित है।
  • उत्पत्ति: 
    • स्वतंत्रता-पूर्व की अवधि में भी सरकार अनुबंध करती रही।
    • 1947 के क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट ने अनुच्छेद 299 को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट ने निर्दिष्ट किया कि क्राउन द्वारा किये गए अनुबंध के लिये न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
  • उद्देश्य:  
    • अनुच्छेद 299 संघ या राज्य की कार्यकारी शक्ति के प्रयोग में किये गए अनुबंधों को अभिव्यक्त और निष्पादित करने के तरीके को दर्शाता है।
    • इसका उद्देश्य सार्वजनिक निधि की सुरक्षा और अनधिकृत या अवैध अनुबंधों को रोकने के लिये एक विशिष्ट प्रक्रिया स्थापित करना है।
  • अभिव्यक्ति और निष्पादन:  
    • अनुच्छेद 299 (1) के अनुसार, अनुबंधों को लिखित रूप में व्यक्त किया जाना चाहिये और उनकी ओर से राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विधिवत अधिकृत व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जाना चाहिये।
  • राष्ट्रपति/राज्यपाल की प्रतिरक्षा:  
    • जबकि अनुच्छेद 299 (2) कहता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को अनुबंधों के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, यह अनुबंध के कानूनी प्रावधानों से सरकार को प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है।
      • भारत में सरकार (संघ या राज्यों) पर उसके अधिकारियों द्वारा किये गए अपकृत्यों (नागरिक गलतियों) के लिये मुकदमा चलाया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • मामले की पृष्ठभूमि:  
    • ग्लॉक एशिया-पैसिफिक लिमिटेड (Glock Asia-Pacific Limited) ने निविदा संबंधी विवाद में मध्यस्थ की नियुक्ति के संबंध में केंद्र के खिलाफ एक आवेदन दायर किया था।
      • सरकार ने एक निविदा शर्त का हवाला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी जिसमें कानून मंत्रालय के एक अधिकारी को मध्यस्थ के रूप में कार्य करने की आवश्यकता थी।
  • न्यायालय की विवेचना:  
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता खंड एक सरकारी अधिकारी को मध्यस्थ के रूप में विवाद को हल करने की अनुमति देता है जो मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 12 (5) के साथ विरोधाभासी है।
  • अनुच्छेद 299 की प्रासंगिकता:
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 299 संविदात्मक दायित्व को शासित करने वाले मौलिक कानूनों का समाधान नहीं करता है बल्कि यह केवल सरकार पर संविदात्मक दायित्व के साथ बाध्यता की औपचारिकताओं से संबंधित है।

अनुच्छेद 299 से संबंधित अन्य निर्णय: 

  • बिहार राज्य बनाम मजीद (1954):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक सरकारी अनुबंध को भारतीय अनुबंध अधिनियम की आवश्यकताओं, जैसे कि प्रस्ताव, स्वीकृति और विचार के अलावा अनुच्छेद 299 के प्रावधानों का पालन करना होगा।
    • केंद्र या राज्य सरकार का संविदात्मक दायित्व संविदा के सामान्य कानून के अधीन किसी भी व्यक्ति के समान है, जो अनुच्छेद 299 द्वारा विहित औपचारिकताओं के अधीन है।
  • श्रीमती अलीकुट्टी पॉल बनाम केरल राज्य और अन्य (1995):
    • कार्यकारी अभियंता ने एक पुल निर्माण अनुबंध के लिये एक टेंडर को स्वीकार कर लिया, लेकिन राज्यपाल के नाम पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण यह नहीं कहा जा सकता कि अनुबंध संविधान के अनुच्छेद 299 के तहत वैध है।
    • यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 299 के औचित्य और दायरे की व्याख्या करता है तथा इस बात पर ज़ोर देता है कि इसके प्रावधान अनधिकृत अनुबंधों के खिलाफ सरकार की सुरक्षा के लिये बनाए गए हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow