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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘रिफॉर्म्स ऑन मेडिसिन्स’ रिपोर्ट पर बात नहीं करेंगे अमेरिका और डब्लूएचओ

  • 04 Mar 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों 

‘नॉलेज इकोलॉजी इंटरनेशनल’ जो कि सभी देशों को तकनीकी सलाह देने वाला एक गैर-लाभकारी संगठन है, के अनुसार अमेरिका और विश्व स्वास्थ्य संगठन दोनों ही भारत के  उस प्रस्ताव पर विचार करने के इच्छुक नहीं है जिसमें भारत यह चाहता था कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ज़ारी “रिफॉर्म्स ऑन मेडिसिन्स” रिपोर्ट पर चर्चा की जाए। गौरतलब है कि  “रिफॉर्म्स ऑन मेडिसिन्स” रिपोर्ट भारत सहित तमाम विकासशील देशों की सस्ती दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित कराने की वकालत करता विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर बनाया हुआ एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट है।

भारत के लिये यह रिपोर्ट महत्त्वपूर्ण क्यों?

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले दल में दुनियाभर के विशेषज्ञ शामिल थे और यह रिपोर्ट स्पष्ट तौर पर पश्चिमी सरकारों और वहाँ की फार्मा कंपनियों द्वारा विकासशील देशों पर डाले जा रहे राजनीतिक और आर्थिक दबावों को रेखांकित करती है। गौरतलब है कि विकसित देशों की कोशिश होती है कि विकासशील देशों की कम कीमत की जेनेरिक दवाओं तक पहुँच और उनके संरक्षण से संबंधित कानूनों और नीतियों को बेअसर किया जाए। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि यह दबाव मानवाधिकार और जन-स्वास्थ्य की बाध्यताओं को पूरा करने की राह में रोड़े अटकाता है।

इस रिपोर्ट पर चर्चा क्यों होनी चाहिये?

भारत को अमेरिका की बिजनेस लॉबी और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधियों की ओर से आरोपित दोहरे दबाव का प्रतिकार करने के लिये इस रिपोर्ट का इस्तेमाल करना चाहिये, ताकि वह अपनी पेटेंट व्यवस्था में जन-स्वास्थ्य के दायित्वों पर अमल कर सके। यह रिपोर्ट विभिन्न व्यापार समझौतों, खासतौर से यूरोपीय संघ-भारत एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) और हाल की आरसीईपी वार्ता (रिजनल कॉम्प्रहेनशिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) में अपना पक्ष रखने की भारत की स्थिति को मज़बूत कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत निरंतर बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित 'ट्रिप्स प्लस' (द एग्रीमेंट ऑन ट्रेड रिलेटेड ऑसपेक्ट्स ऑफ इंटलेक्चुअल प्रापर्टी राइट्स) के उन उपायों को खारिज़ करता आया है, जिनके जरिये कम कीमत की जेनेरिक दवाओं पर बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियाँ अपना एकाधिकार बनाना चाहती हैं। बौद्धिक संपदा से संबंधित मुद्दों पर भारत की स्थिति को अब विभिन्न देशों का समर्थन भी मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय दल ने विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों से आग्रह किया है कि वे विकासशील देशों को ट्रिप्स समझौते के अनुच्छेद 27 में दिये गए प्रावधानों का फायदा उठाकर अपने देश के जन-स्वास्थ्य अनुरूप अन्वेषण कार्यों को अंजाम देने तथा पेटेंट संबंधी अधिकारों तथा परिभाषाओं को अपनी ज़रूरतों के अनुसार लागू करने के लिये प्रोत्साहित करें। भारत की चिंताओं का समुचित संज्ञान लेने वाली इस रिपोर्ट पर चर्चा तो होनी ही चाहिये और भारत को इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाना होगा, भारत यदि अन्य विकासशील देशों को एक मंच पर लाकर इस दिशा में प्रयास करे तो यह और भी श्रेयस्कर होगा।

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