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भारत के पुराने बाँध : पर्यावरण और लोगों के लिये खतरा

  • 03 Feb 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) द्वारा जारी  रिपोर्ट  ‘एजिंग वॉटर इंफ्रास्ट्रक्चर: एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्क’ (Ageing Water Infrastructure: An Emerging Global Risk) के अनुसार, भारत में 1,000 से अधिक बड़े बाँध वर्ष 2025 में लगभग 50 वर्ष पुराने होंगे तथा विश्व में इस प्रकार  के पुराने बाँध या तटबंध बढ़ते खतरे का कारण हैं।

  • कनाडा स्थित इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर, एन्वायरनमेंट एंड हेल्थ (Institute For Water, Environment and Health) द्वारा संकलित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व बड़े बाँधों के निर्माण की क्रांति का पुनः गवाह  (20वीं सदी के मध्य के समान) बनने की स्थिति में नहीं है, लेकिन जिन बाँधों का निर्माण हो चुका है वे अनिवार्य रूप से वर्ष 2025 तक अपनी उम्र से अधिक के हो चुके होंगे।।
  • इस विश्लेषण में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांँस, कनाडा, भारत, जापान,  ज़ाम्बिया और ज़िम्बाब्वे में बांँधों का गिरना या बाँधों की बढ़ती उम्र के मामलों ( Dam Decommissioning or Ageing Case Studies) के अध्ययन को शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

वैश्विक परिदृश्य:

  • वैश्विक स्तर पर 58,700 बड़े बाँधों में से अधिकांश का निर्माण वर्ष 1930 और वर्ष 1970 के मध्य 50 से 100 वर्षों की समयावधि को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया था।
  • वर्ष 2050 तक पृथ्वी पर अधिकांश लोग 20वीं सदी में निर्मित हज़ारों बड़े बाँधों के अनुप्रभाव/बहाव (Downstream) क्षेत्र में रह रहे होंगे, इनमें से कई बाँध अपने निर्धारित डिज़ाइन की समयावधि से अधिक समय तक कार्य कर रहे हैं।
    • कंक्रीट निर्मित एक बड़ा बाँध 50 वर्षों में संभवतः उम्र बढ़ने के संकेत व्यक्त करना शुरू कर देता है।
  • बाँध  की बढ़ती उम्र के संकेतों में शामिल हैं- बाँध की अक्षमता में वृद्धि, बाँध  की मरम्मत और रखरखाव लागत का बढ़ना, जलाशय अवसादन में वृद्धि और बाँध  की कार्यक्षमता एवं  प्रभावशीलता का प्रतिकूल रूप से प्रभावित होना जो कि दृढ़ता के साथ परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • 32,716 बड़े बाँध  (विश्व  के कुल बाँधों का 55%) सिर्फ चार एशियाई देशों (चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया) में हैं, जिनमें से अधिकांश शीघ्र ही 50 वर्ष की सीमा तक पहुंँच जाएंगे।
    • यही स्थिति अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी यूरोप के कई बड़े बाँधों की  है।

भारतीय परिदृश्य:

  • बड़े बाँधों के निर्माण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
  • अब तक 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बाँध 50 वर्ष की आयु तक पहुँच चुके हैं और कुछ 120 वर्ष से अधिक पुराने हो चुके हैं।
    • वर्ष 2050 तक ऐसे बाँधों की संख्या बढ़कर 4,400 हो जाएगी।
  • इसका अर्थ  है कि देश के 80% बड़े बाँधों के लुप्त होने की संभावना है क्योंकि वे 50- 150 वर्ष से अधिक उम्र के हो जाएंगे।
  • हज़ारों मध्यम और छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ (Shelf Life) बड़े बाँधों की तुलना में कम है।
  • उदाहरण: कृष्णराज सागर बाँध का निर्माण वर्ष 1931 में किया गया था जो अब 90 वर्ष पुराना हो चुका है। इसी प्रकार वर्ष 1934 में मेट्टूर बाँध  का निर्माण किया गया था और यह भी अब 87 वर्ष पुराना है। ये दोनों ही जलाशय पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।

समस्या:

  • भंडारण क्षमता में कमी:
    • जैसे-जैसे बाँधों की आयु बढ़ती है, जलाशयों में मिट्टी पानी का स्थान ले लेती है। इसलिये भंडारण क्षमता के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जैसा कि 1900 और 1950 के दशकों में देखा गया था।
    • भारतीय बांँधों में जल भंडारण स्थान में अप्रत्याशित रूप से अधिक तेज़ी के साथ कमी आ रही है।
  • त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन:
    • अध्ययन बताते हैं कि भारत के कई बाँधों का डिज़ाइन त्रुटिपूर्ण है।
    • भारतीय  बाँधों के डिज़ाइन में अवसादन विज्ञान (Sedimentation Science) को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं किया गया है अर्थात् डिज़ाइन में इसका अभाव देखने को मिलता है। जिस कारण बाँध की जल भंडारण क्षमता में कमी आती है।
    • अवसाद/गाद की उच्च दर: यह निलंबित अवसादों की वृद्धि एवं तलछटो पर महीन अवसादों का जमाव (अस्थायी या स्थायी)  जहाँ कि वे अवांछनीय हैं, दोनों को संदर्भित करता है।

परिणाम:

  • जल का अभाव:
    • जब मिट्टी बाँधों या जलाशयों में जल का स्थान लेती है, तो जल आपूर्ति बाधित हो जाती है और उन फसल क्षेत्रों जहाँ बाँधों से जलापूर्ति की जाती है, को कम पानी मिलने लगता है।
  • भूजल पर प्रभाव:
    • इसकी वजह से ‘शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र’ जो कि सिंचाई पर निर्भर है, जल अभाव के कारण या तो आकार में सिकुड़ जाता है या वर्ष या भूजल पर निर्भर हो जाता है।
  • किसानों की आय पर  प्रभाव: 
    • इससे किसान की आय कम हो सकती है क्योंकि फसल पैदावार के लिये क्रेडिट, फसल बीमा और निवेश के साथ पानी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कोई भी योजना बाँधों में तलछट/गाद भर जाने के कारण सफल नहीं होगी।
  • बाढ़ की बारंबारता: 
    • नदी घाटियों में स्थापित नए डिज़ाइन एवं संरचना वाले बाँधों ने बाढ़ की विभीषिका को सीमित किया है।
    • इस प्रकार की नवीन संरचना वाले बाँधों की क्रियाशीलता के फलस्वरूप ही वर्ष 2020 में भरूच, वर्ष  2018 में केरल और वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ को सीमित किया जा सका।
  • उठाए गए कदम:
    • हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने बाँध  पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project- DRIP) के चरण II और चरण III को मंज़ूरी प्रदान की है।
    • यह परियोजना देश में स्थित मौजूदा 736 बाँधों के व्यापक पुनर्वास की परिकल्पना प्रस्तुत करती है जो बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 (Dam Safety Bill, 2019) के पूरक के रूप में कार्य करती है।

आगे की राह: 

  • वर्ष 2050 तक बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्र के पास अंततः 21वीं सदी में पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं होगा। अत: प्रचुर मात्रा में फसल उत्पादन, स्थायी शहरों के निर्माण के साथ-साथ विकास सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है । इसके अलावा सभी हितधारकों को इस स्थिति निपटने हेतु एक साथ आने की आवश्यकता है।
  • बाँधों के सुचारु रूप से क्रियान्वयन हेतु एक निवारक तंत्र होना आवश्यक है क्योंकि बाँध के किसी भी कारण से क्षतिग्रस्त या विफल साबित होने की स्थिति में जीवन के नुकसान की भरपाई मिलने वाली हर्ज़ाने की राशि नहीं की जा सकती है।
  •  समग्र नियोजन प्रक्रिया में जल संग्रहण अवसंरचना के विकास हेतु बाँध के संचालन कार्य को बाँध  निर्माण कार्य के समान ही महत्त्वपूर्ण  माना जाना चाहिये।
  • वास्तव में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जल से संबंधित मुद्दे पर भी सावधानीपूर्वक और सटीक रूप से विचार करना आवश्यक हो गया है।

स्रोत: द हिंदू 

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