इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

बाढ़ के बाद केरल की नदियों में पानी का स्तर गिरा

  • 10 Sep 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

अगस्त माह के मध्य में आई विनाशकारी बाढ़ के लगभग तीन हफ्ते बाद केरल में अजीब घटना देखने को मिली। यहाँ बाढ़ के कारण नदियों के जल स्तर में जो वृद्धि हुई थी वह दूसरे दिन अचानक तेज़ी से कम हो गई।

प्रमुख बिंदु

  • भरतपुझा नदी का तल जल स्तर कम हो जाने से कई जगहों पर दिखाई देने लगा है। कई अन्य नदियों का भी जल स्तर गिरना शुरू हो गया है, जिसने राज्य में संभावित सूखे की स्थिति के बारे में अटकलों को मज़बूती प्रदान की है, विशेषकर पूर्वोत्तर मानसून के विफल रहने की दशा में यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
  • जबकि विशेषज्ञों ने इस तरह के भय को दूर किये जाने की मांग की है, इस घटना ने राज्य में जल की कमी की समस्या को उजागर कर दिया है।

मुख्य कारण 

  • केंद्र सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान, जल संसाधन विकास प्रबंधन केंद्र (CWRDM) के अनुसार, नदियों के गिरते हुए जल स्तर का मुख्य कारण उच्च भूमि क्षेत्रों में ऊपरी मिट्टी का अत्यधिक कटाव और नदियों में गाद निक्षेपण है। 
  • पहाड़ियों और उच्च भूमि क्षेत्रों में शीर्ष मिट्टी को कई जगहों पर दो मीटर तक की गहराई तक अचानक आई बाढ़ द्वारा हटा दिया गया। जब बाढ़ के कारण ऊपरी मिट्टी बह गई, तो इसके साथ ही वर्षा जल को सोखने की पहाड़ियों की क्षमता भी कम हो गई।
  • वनों की कटाई के कारण पारिस्थितिकीय विनाश, उच्च भूमि क्षेत्रों में हानिकारक भूमि उपयोग और धाराओं तथा नदियों में रेत खनन ने ऊपरी मिट्टी के बह जाने और गाद निक्षेपण में योगदान दिया। इन सभी कारणों के ऊपर सूक्ष्म रूप से जलवायु परिवर्तन का भी असर था। 
  • नदियों के सिकुड़ने के सटीक कारणों को जानने के लिये एक "विस्तृत, स्थान-विशिष्ट भौगोलिक जाँच" आवश्यक है। सरकार ने पहले ही इसके कारणों को ढूंढने का कार्य CWRDM को सौंपा है और उसने जाँच के लिये वैज्ञानिकों का एक पैनल गठित किया है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कालीकट, (NIT-C) के विशेषज्ञों ने कहा कि बाढ़ के बाद नदियों और कुओं में जल स्तर का नीचे आना सामान्य बात है।

भूजल स्तर में भी कमी 

  • सामान्यतः एक नदी मुहाने तक अपने द्वारा लाई गई रेत से होकर ही बहती है। हालाँकि, इस बार बाढ़ के साथ बहाकर लाई गई रेत और मुलायम चट्टानों से नदियाँ भर चुकी हैं अतः नदियों में जल का स्तर कम हो गया। जब नदी का जल स्तर घटता है तो भूजल स्तर का भी तब तक पुनः भरण नहीं हो पाता जब तक नदियाँ और भूजल की तालिका जुड़े हुए न हों।
  • उम्मीद है कि भूगर्भीय घटना भविष्य में ठीक हो जाएगी। लेकिन संबंधित अधिकरणों को भूस्खलन प्रवण क्षेत्रों में अवैज्ञानिक निर्माण और खनन कार्य को रोकना चाहिये क्योंकि ऐसी गतिविधियाँ नाजुक पश्चिमी घाट क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएँ पैदा कर रही हैं।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2