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भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी विनिमय व्यवस्था के तहत बैंकिंग प्रणाली में 5 अरब डॉलर डालेगा रिज़र्व बैंक

  • 14 Mar 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग प्रणाली में तीन साल की अवधि तक विदेशी विनिमय व्यवस्था (Foreign Exchange Swap) के तहत पाँच अरब डॉलर की नकदी डालने का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह स्वैप या अदला-बदली व्यवस्था रिज़र्व बैंक की ओर से विदेशी मुद्रा विनिमय की खरीद-बिक्री के रूप में होगी।
  • तरलता प्रबंधन (Liquidity Management) के लिये यह तरीका पहली बार उपयोग किया जा रहा है।
  • इसके तहत बैंक की ओर से रिजर्व बैंक को डॉलर बेचे जाएंगे और साथ ही वह स्वैप की अवधि समाप्त होने के बाद इतनी ही राशि के डॉलर की खरीद की सहमति देगा।
  • नकदी के सतत् प्रवाह के मद्देनज़र दीर्घावधि विदेशी विनिमय व्यवस्था के तहत यह राशि बैंकिंग प्रणाली में डाली जाएगी।
  • नकदी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये रिज़र्व बैंक इसी वित्त वर्ष में यह राशि डालेगा।
  • विदेशी करेंसी की अदला-बदली के माध्यम से यह प्रक्रिया 26 मार्च से शुरू होकर 28 मार्च 2022 तक चलेगी।
  • इसके माध्यम से जुटाए गए डॉलर स्वैप की अवधि तक रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में प्रदर्शित होंगे और रिज़र्व बैंक की आगामी देनदारियों में भी परिलक्षित होंगे।
  • माना जा रहा है की इस कदम से मुक्त बाजार संचालन (Open Market Operations) पर निर्भरता कम होगी, जिसका कुल ऋण की राशि में एक बड़ा हिस्सा है। मुक्त बाजार संचालन अधिक होने से दरों पर प्रभाव पड़ता है।
  • इसके लिये बाज़ार सहभागियों (Market Participants) को उस प्रीमियम के साथ बोली लगानी होगी, जो वे रिज़र्व बैंक को स्वैप की अवधि के दौरान देने के लिये तैयार हैं।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, नीलामी कटऑफ प्रीमियम के आधार पर बहु-मूल्य (Multiple Price) आधारित होगी।
  • इस कदम से रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो 1 मार्च को समाप्त सप्ताह के दौरान 401.7 बिलियन डॉलर था।

विदेशी विनिमय से होने वाले प्रमुख लाभ

करेंसी स्वैप के माध्यम से विदेशी मुद्रा भंडार को मज़बूती मिलती है और रिज़र्व बैंक द्वारा त्वरित तथा सही समय पर सहायता देना संभव हो जाता है।

विदेशी मुद्रा कोष को उपयुक्त स्तर पर बनाए रखने से आयात, ऋण किस्त का भुगतान करने में आसानी रहती है और घरेलू मुद्रा को मज़बूती मिलने के साथ विनिमय दर में अस्थिरता से भी बचाव होता है।

इस तरह की सुविधा से रुपए की विनिमय दर तथा पूंजी बाजारों में भी स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है।


स्रोत: द हिंदू

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