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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

17वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन

  • 13 Nov 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, एक्ट ईस्ट नीति, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी

मेन्स के लिये:

भारत-आसियान संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 17वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन आभासी रूप से आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भागीदारी की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • वियतनाम की अध्यक्षता में सभी दस आसियान सदस्य देशों द्वारा शिखर सम्मेलन में भागीदारी की गई।
  • सम्मेलन के दौरान दक्षिण चीन सागर और आतंकवाद सहित सामान्य हित एवं  चिंता के क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर  चर्चा की गई।

पृष्ठभूमि:

  • आसियान के साथ भारत का संबंध हमारी विदेश नीति की एक प्रमुख आधारशिला के रूप में उभरा है, जिसका विकास 1990 के दशक की शुरुआत में भारत द्वारा प्रारंभ 'लुक ईस्ट पॉलिसी’ से माना जा सकता है। 
  • वर्ष 1992 में भारत को आसियान का क्षेत्रीय भागीदार/सेक्टर पार्टनर तथा वर्ष 1996 में एक डायलॉग पार्टनर बनाया गया। 
  • वर्ष 2002 में आसियान-भारत शिखर सम्मेलन की शुरुआत हुई। 16वाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन बैंकॉक, थाईलैंड में 03 नवंबर, 2019 को आयोजित किया गया था। 

शिखर सम्मेलन में चर्चा के प्रमुख विषय:

भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region): 

  • दोनों पक्षों द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, विशेषकर 'संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि' (UNCLOS) के पालन के साथ-साथ इस क्षेत्र में एक नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के महत्त्व को उजागर किया गया।
  • दोनों पक्षों के नेताओं द्वारा दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये नेविगेशन तथा ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर बल दिया गया।
  • सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तरदायीपूर्ण, संवेदनशील तथा समृद्ध आसियान, भारत के 'इंडो-पैसिफिक विज़न' तथा हिंद महासागर के लिये रणनीतिक विज़न ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR) के केंद्र में है।

आसियान केंद्रित ‘एक्ट ईस्ट’ नीति:

  • शिखर सम्मेलन में बोलते हुए प्रधानमंत्री द्वारा भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ में आसियान की केंद्रीयता को रेखांकित किया गया।
  • आसियान देशों द्वारा भी भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में भारत के योगदान को स्वीकार किया और आसियान केंद्रीयता आधारित भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का स्वागत किया गया।

 भारत-आसियान कनेक्टिविटी: 

  • प्रधानमंत्री द्वारा आसियान देशों और भारत के बीच अधिक-से-अधिक भौतिक एवं डिजिटल कनेक्टिविटी के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया। 
  • सम्मेलन में  भारत-आसियान कनेक्टिविटी का समर्थन करने के लिये 1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन के भारत के प्रस्ताव को दोहराया गया। 

 'आसियान-भारत कार्ययोजना': 

  • सम्मेलन के भागीदार देशों द्वारा वर्ष 2021-2025 के लिये नवीन 'आसियान-भारत कार्ययोजना' (ASEAN-India Action Plan) को अपनाए जाने का भी स्वागत किया गया।
  • आसियान-भारत कार्ययोजना शांति, प्रगति और साझा समृद्धि के लिये आसियान-भारत सामरिक भागीदारी के कार्यान्वयन हेतु मार्गदर्शन करती है।

COVID-19 आसियान रिस्पांस फंड:

  • प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 महामारी के प्रति आसियान देशों द्वारा व्यक्त की गई प्रतिक्रिया की सराहना की गई तथा 'COVID-19 आसियान रिस्पांस फंड' में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान की घोषणा भी की गई।

RCEP का मुद्दा:

  • भारत के 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' (RCEP) समझौते से बाहर होने के बावजूद आसियान-भारत द्वारा व्यापार बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत सरकार द्वारा विगत वर्ष RCEP समूह में शामिल न होने का निर्णय लिया गया। 
    • RCEP एक ' मुक्त व्यापार समझौता' है जिस पर चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और दस आसियान देशों द्वारा 15 नवंबर, 2020 को हस्ताक्षर किये जाने की उम्मीद है।

आगे की राह:

  • आसियान के साथ भारत का 23.88 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है। 'आसियान-भारत वस्तु माल समझौते' ( ASEAN-India Trade in Goods Agreement- AITGA) की फिर से समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है ताकि भारत अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के विविधीकरण और लचीलेपन को बढ़ावा दे सके।
  • दोनों पक्षों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक सहयोग के लिये‘हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल’ (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और 'आसियान आउटलुक ऑन इंडो-पैसिफिक' (ASEAN Outlook on Indo-Pacific) के बीच अभिसरण को मज़बूत करने की आवश्यकता है।

स्रोत: पीआईबी 

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