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13-पॉइंट रोस्टर V/s 200-पॉइंट रोस्टर

  • 14 Mar 2019
  • 14 min read

संदर्भ

तमाम वाद-विवादों के बीच केंद्र सरकार ने देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में 13-पॉइंट रोस्टर प्रणाली के स्थान पर 200-पॉइंट रोस्टर प्रणाली लागू करने वाला अध्यादेश 8 मार्च को जारी किया। इस अध्यादेश के बाद अब अप्रैल 2017 से विश्वविद्यालयों में रुकी हुई शिक्षकों की भर्तियाँ फिर से शुरू हो सकेंगी, जो करीब 6000 पदों पर लंबित हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा 200-पॉइंट रोस्टर को निरस्त करते हुए 13-पॉइंट रोस्टर लागू करने के फैसले के बाद देश के SC, ST & OBC वर्ग में नाराज़गी व्याप्त थी, जिसके मद्देनज़र केंद्र सरकार ने यह अध्यादेश जारी किया। दरअसल 200-पॉइंट रोस्टर की जगह 13-पॉइंट रोस्टर लागू होने से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के युवाओं के लिये उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक भर्ती हेतु रास्ते लगभग बंद हो जाते हैं। गौरतलब है कि 13-पॉइंट रोस्टर के प्रभावी रहने पर यूनिवर्सिटी के बजाय विभाग को यूनिट मानकर नियुक्तियाँ होनी थीं, जिसके चलते आरक्षण का संवैधानिक नियम निष्प्रभावी हो जाता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के लिये यूनिवर्सिटी के बदले विभागवार नियुक्तियों को मानने का फैसला दिया था। केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए सर्वोच्च अदालत ने इसमें बदलाव से इनकार करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। 2017 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये नियुक्तियाँ विषय/ विभाग के अनुसार होगी, न कि यूनिवर्सिटी के हिसाब से। इसके खिलाफ UGC और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे इसी वर्ष 22 जनवरी को खारिज कर दिया गया। इसी के साथ यह तय हो गया कि यूनिवर्सिटी में खाली पदों को अब 13-पॉइंट रोस्टर सिस्टम के ज़रिये ही भरा जाएगा।

इसके बाद UGC ने अपने दिशा-निर्देशों में बदलाव किया और विश्वविद्यालयों को 13-पॉइंट रोस्टर अपनाने के लिये कहा। गौरतलब है की अदालतों के इन फैसलों से पहले तक देश के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की भर्ती 200-पॉइंट रोस्टर के तहत की जाती थी। इसके तहत पूरे विश्वविद्यालय को एक यूनिट माना जाता है, जिसमें र प्रत्येक वर्ग के उम्मीदवार की जगह सुनिश्चित हो जाती है।

केंद्र सरकार की भर्ती प्रक्रिया

केंद्र सरकार की नौकरियों में अधिकांश नियुक्तियों की सिफारिश कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission-SSC) या संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission-UPSC) जैसी संस्थाओं द्वारा की जाती है। अधिकांशतः ये संस्थाएँ समान पात्रता मानदंड वाले पदों के लिये भर्ती प्रक्रिया शुरू करते हैं। यही वज़ह है कि सिविल सेवा परीक्षा देने वाला हर उम्मीदवार IAS, IPS, IFS या अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिये पात्र होता है। इससे आरक्षित और अनारक्षित वर्गों में योग्य उम्मीदवारों के बीच पदों को वितरित करना आसान हो जाता है। इसके विपरीत विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य में पदों को आरक्षित करना जटिल काम है। इसके पीछे सबसे बड़ी वज़ह है वैकेंसीज़ का कम होना और सभी विभागों में इनके लिये योग्यता एक समान नहीं होती। जैसे कि राजनीति विज्ञान में सहायक प्रोफेसर के पद के लिये योग्यता किसी अन्य विषय के इसी पद के लिये अलग हो सकती है।

क्या है 13-पॉइंट रोस्टर?

13-पॉइंट रोस्टर सिस्टम में 13 पदों को क्रमबद्ध तरीके से दर्ज किया जाता है और इसके तहत यूनिवर्सिटी को यूनिट न मानकर डिपार्टमेंट को यूनिट माना जाता है। मान लीजिये, किसी एक डिपार्टेमेंट में 13 वैकेंसीज़ निकलती हैं, तो चौथा, आठवाँ और बारहवाँ उम्मीदवार OBC होगा अर्थात् एक OBC की नियुक्ति के लिये कम-से-कम 4 वैकेंसीज़ होनी चाहिये। इसी तरह सातवाँ कैंडिडेट SC कैटेगरी का होगा और 14वाँ कैंडिडेट ST होगा। शेष सभी पद अनारक्षित होंगे। इसके आधार पर प्रत्येक चौथे, सातवें, आठवें, 12वें और 14वें रिक्त पद को 13-पॉइंट रोस्टर में क्रमशः OBCs, SCs, OBCs, OBCs, STs के लिये आरक्षित किया जाता है। अर्थात् पहले तीन पदों के लिये कोई आरक्षण नहीं है और 14 पदों के पूर्ण चक्र में भी केवल पाँच पद या 35.7% आरक्षित वर्गों के लिये जाते हैं, जो संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% (27%+15%+7.5%) की सीमा से कम है।

कैसे निर्धारित किये जाते हैं आरक्षित पद?

किसी भी आरक्षित वर्ग को रोस्टर में मिलने वाले स्थानों का निर्धारण तय प्रतिशत से 100 को विभाजित करके किया जाता है। जैसे कि OBC कोटा 27% है...इसलिये उन्हें 100/27 = 3.7 हिस्सा मिलता है अर्थात् इस वर्ग के हर चौथे पद पर एक वैकेंसी बनती है। इसी तरह SC को 100/15 = 6.66 यानी हर सातवें पद पर और ST को 100/7.5 = 13.33 यानी हर 14वीं वैकेंसी मिलती है। अतः किसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का प्रतिशत जितना कम होगा, उस वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित पद पर नियुक्त होने में उतना ही अधिक समय लगेगा। इसके अलावा, हाल ही में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये नए 10% आरक्षण ने इस अंतर को और अधिक बढ़ा दिया है। ऐसा इसलिये है क्योंकि अब प्रत्येक 10वाँ पद (100/10 = 10) इस वर्ग के लिये आरक्षित है।

200-पॉइंट रोस्टर क्या है?

इसके अलावा एक और समस्या है, जो वास्तव में वर्तमान विवाद के केंद्र में है। विश्वविद्यालय के ऐसे छोटे विभागों में जहाँ कुल पदों की संख्या चार से कम है, उनमें 13-पॉइंट रोस्टर में कोई संभावना नहीं रहती, क्योंकि इसमें आरक्षण केवल चौथे पद के लिये होता है। ऐसे में OBC के केवल एक शिक्षक के बदले में 'सामान्य श्रेणी' से पाँच शिक्षकों को नियुक्त किया जा सकता है। इसीलिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% आरक्षण प्रदान करने के लिये UGC ने व्यक्तिगत विभागों के बजाय विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक 'इकाई' मानना शुरू कर दिया और इसके लिये '200-पॉइंट रोस्टर' को अपनाया। यह 200-पॉइंट रोस्टर पहले से ही सभी केंद्रीय सरकारी सेवाओं में नियुक्तियों के लिये कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा उपयोग किया जा रहा था। इसे 200-पॉइंट रोस्टर इसलिये कहा जाता है क्योंकि सभी आरक्षित वर्गों को उनके लिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य निर्धारित कोटे के पद केवल तभी मिल सकते हैं, जब 200 वैकेंसीज़ भरी जाएँ। अब चूंकि किसी संस्थान में किसी एक विभाग में 200 सीटें नहीं हो सकती, इसलिये कोटे की गणना करने के लिये पूरे विभाग के बजाय संस्थान/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना गया।

13-पॉइंट और 200-पॉइंट रोस्टर में मुख्य अंतर

200-पॉइंट रोस्टर और 13-पॉइंट रोस्टर में सबसे बड़ा अंतर यह है कि 13-पॉइंट रोस्टर में 14 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4 शुरू हो जाता है, जो 14 नंबर पर जाकर फिर से खत्म हो जाता है। इसके विपरीत 200-पॉइंट रोस्टर में 1 नंबर से पद शुरू होकर 200 नंबर तक जाता है और 200 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 से क्रम शुरू होता है और 200 नंबर तक जाता है।

13-पॉइंट रोस्टर से कैसे बेहतर है 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम?

आरक्षण लागू करने के लिये 200-पॉइंट रोस्टर को 2014 तक सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने लागू कर दिया था। यह 13-पॉइंट रोस्टर से बेहतर है, क्योंकि 13-पॉइंट रोस्टर में आरक्षण अनिवार्य प्रतिशत के स्तर से बहुत कम रह जाता है, जबकि 200-पॉइंट रोस्टर में ऐसा नहीं होता, बशर्ते केवल 200 नियुक्तियाँ की जाएँ। यह संख्या थोड़ी भी कम या अधिक होने पर आरक्षण की मात्रा प्रभावित हो सकती है। 200-पॉइंट रोस्टर संवैधानिक रूप से मान्य 49.5% आरक्षण के व्यापक लक्ष्य को सुनिश्चित करता है क्योंकि एक विभाग में कोटे को हुआ घाटा दूसरे विभाग द्वारा पूरा किया जा सकता है।

प्रो. रावसाहब काले कमेटी की सिफारिशें

रोस्टर विवाद पहली बार 2006 में सामने आया था और उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालयों में OBC आरक्षण के तहत नियुक्तियों के सवाल के समाधान के लिये तत्कालीन सरकार के कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय ने UGC से यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू करने की खामियों को दूर करने का निर्देश दिया था। इस पर UGC के तत्कालीन चेयरमैन प्रोफेसर वी.एन. राजशेखरन पिल्लई ने प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालयों में आरक्षण फॉर्मूला तय करने के लिये तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में कानूनविद प्रोफेसर जोश वर्गीज और UGC के तत्कालीन सचिव डॉ. आर.के. चौहान शामिल थे। इस कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. के. सभरवाल की पीठ द्वारा जुलाई 1997 में दिये गए फैसले के आधार पर कुछ दिशा-निर्देश बनाए। इनमें 200-पॉइंट का रोस्टर बनाया गया और इसमें किसी विश्वविद्यालय के सभी विभागों में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर का तीन स्तर पर कैडर बनाने की सिफारिश की गई थी। कमेटी ने विभाग की बजाय विश्वविद्यालय, कॉलेज को इकाई मानकर आरक्षण लागू करने की सिफारिश की, क्योंकि उक्त पदों पर नियुक्तियाँ विश्वविद्यालय करता है, न कि उसका विभाग।

2006 से ही विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में रोस्टर विधि से आरक्षण लागू है और इसमें विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर SC, ST और OBC अभ्यर्थियों को आरक्षण दिया जाता है, जो क्रमश: 7.5% , 15% और 27% है। असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति के समय यह ध्यान रखा जाता है कि इस नियम का उल्लंघन न हो, क्योंकि इनके पद काफी कम होते हैं और इसीलिये रोस्टर सिस्टम लागू किया जाता है। विवाद इस बात को लेकर था कि विश्वविद्यालय को इकाई माना जाए या विभाग को? सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम पूर्व की भाँति काम करता रहेगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो SC, ST और OBC के योग्य अभ्यर्थियों के लिये असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर बनना कठिन हो जाता। इसमें भी सबसे ज़्यादा मुश्किल ST के उम्मीदवारों को होती क्योंकि प्रतिशत के आधार पर उनकी बारी काफी देर में आती।

स्रोत: 12 मार्च को Indian Express में प्रकाशित The 13-point, 200-point quota roster conundrum तथा अन्य जानकारी पर आधारित

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