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एडिटोरियल

कृषि

सतत् गन्ना उद्योग

  • 12 Jul 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 08/07/2021 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित लेख “Is the sugar industry finally coming of age?” पर आधारित है। यह गन्ना उद्योग के समक्ष उपस्थित चुनौतियों और उनके समाधानों से संबंधित है।

पिछले कुछ दशकों में भारत में गन्ने की खेती का विस्तार हुआ है। उत्पादन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ, न्यूनतम मूल्य, गन्ने की गारंटीकृत बिक्री और चीनी के सार्वजनिक वितरण जैसे कुछ कारकों ने भारत को दुनिया भर में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनने में मदद की है।

हालाँकि वर्षा की कमी, भूजल स्तर में गिरावट, गन्ना कृषकों को भुगतान में देरी,अन्य फसलों की तुलना में कम शुद्ध आय (किसान के लिये), श्रम की कमी, श्रम की बढ़ती लागत और अब कोविड-19 महामारी जैसे कारक संपूर्ण चीनी क्षेत्र को पंगु बना रहे हैं। 

चूँकि गन्ना एक नकदी फसल है, इसलिये भारतीय कृषि और किसान की आय को दोगुना करने के लिये गन्ना उद्योग को प्रभावित करने वाले मुद्दों का समाधान किया जाना महत्त्वपूर्ण है।

गन्ना उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ 

  • मूल्य निर्धारण नियंत्रण: मांग-आपूर्ति असंतुलन को रोकने के लिये केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों जैसे- निर्यात शुल्क, चीनी मिलों पर स्टॉक सीमा लगाना, मौसम विज्ञान नियम में बदलाव आदि के माध्यम से चीनी की कीमतों को नियंत्रित कर रही हैं।
    • हालाँकि मूल्य निर्धारण के लिये सरकारी नियंत्रण प्रकृति में लोकलुभावन है और इससे अक्सर मूल्य विकृति उत्पन्न होती है।
    • इससे चीनी चक्र का बड़े पैमाने पर अधिशेष और गंभीर कमी के बीच दोलन शुरू हो गया है।
  • उच्च आगत और कम उत्पादन लागत: गन्ने की कीमतों में निरंतर वृद्धि की पृष्ठभूमि में हाल के वर्षों में चीनी की गिरती/स्थिर कीमत पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण है।
    • इसकी वजह से सरकार को बड़े स्तर पर गन्ना अधिशेष की स्थिति से जूझना पड़ा, जबकि यह उद्योग समय-समय पर सरकार द्वारा वित्तपोषित बेल-आउट और सब्सिडी पर जीवित रहा।
    • व्यवसाय की अव्यवहार्यता के कारण चीनी उद्योग में कोई नया निजी निवेश नहीं किया जा रहा है।
  • चीनी निर्यात अव्यवहार्यता: भारतीय निर्यात अव्यावहारिक है क्योंकि चीनी उत्पादन की लागत  अंतर्राष्ट्रीय चीनी मूल्य से काफी अधिक है।
    • सरकार ने निर्यात सब्सिडी प्रदान करके मूल्य अंतर को पाटने की मांग की लेकिन विश्व व्यापार संगठन में अन्य देशों द्वारा इसका तुरंत विरोध किया गया।
    • इसके अलावा कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत भारत को दिसंबर 2023 तक सब्सिडी जारी रखने की अनुमति दी गई है। चिंता यह है कि वर्ष 2023 के बाद क्या होगा?
  • भारत के इथेनॉल कार्यक्रम का निराशाजनक प्रदर्शन: ऑटो ईंधन के रूप में उपयोग के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण की घोषणा पहली बार वर्ष 2003 में की गई थी लेकिन इससे समस्या दूर नहीं हुई।
    • सम्मिश्रण के लिये आपूर्ति किये गए इथेनॉल की कीमत, चीनी की आवधिक कमी और शराब के निर्माण हेतु प्रतिस्पर्द्धी मांग इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।

 आगे की राह 

  • गन्ना मानचित्रण: भारत में पानी, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र में गन्ने के महत्त्व के बावजूद भी गन्ने का मानचित्रण उपयुक्त ढंग से नहीं हो पाया है।
    • इस प्रकार गन्ना क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है।
  • नवाचार: गन्ने में अनुसंधान और विकास कम उपज और कम चीनी रिकवरी दर जैसे मुद्दों को हल करने में मदद कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश (यूपी) में उपयोग के लिये गन्ने की एक नई किस्म (सीओ 238) विकसित की गई थी।
    • यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश भारत में गन्ने का बड़ा हिस्सा उत्पादित करता है, देश के चीनी उत्पादन में इसका हिस्सा 25 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया।
    • इस विलक्षण विकास ने प्रभावी रूप से चीनी चक्र को तोड़ दिया और भारत को लगातार अधिशेष चीनी उत्पादक देश बना दिया।
  • गन्ना मूल्य निर्धारण को स्वतंत्र करना: भारत सरकार ने गन्ना क्षेत्र की मदद के लिये कई उपाय किये हैं लेकिन गन्ना क्षेत्र में सुधार तब नज़र आएगा जब आर्थिक लागत के अनुसार इसके मूल्य निर्धारित किए जाएंगे।
  • इस संदर्भ में रंगराजन समिति ने चीनी और अन्य उप-उत्पादों की कीमत में गन्ना मूल्य फैक्टरिंग तय करने के लिये राजस्व बंटवारा सूत्र सुझाया है।
    • इसके अलावा यदि सूत्र द्वारा निकाला गया गन्ने का मूल्य, सरकार के उचित भुगतान मूल्य से नीचे चला जाता है, तो यह इस उद्देश्य के लिये बनाए गए एक समर्पित फंड से अंतर को पाट सकता है और फंड बनाने के लिये उपकर लगाया जा सकता है।
  • जैव ईंधन उत्पादन का समर्थन: सरकार को इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिये। यह देश के तेल आयात बिल को कम करेगा और सुक्रोज को इथेनॉल में बदलने तथा चीनी के अतिरिक्त उत्पादन को संतुलित करने में मदद करेगा।
    • इसके लिये सरकार को सीधे गन्ने के रस से एथेनॉल बनाने की अनुमति देनी चाहिये जो अभी केवल शीरे तक ही सीमित है।

निष्कर्ष 

चीनी उद्योग 50 मिलियन किसानों और उनके परिवारों के लिये आजीविका का एक स्रोत है। यह देश भर में चीनी मिलों एवं संबद्ध उद्योगों में 5 लाख से अधिक कुशल श्रमिकों के साथ-साथ अर्द्ध-कुशल श्रमिकों को भी प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है।

चीनी उद्योग के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए गन्ना कृषकों के सामने आने वाले संकट को केंद्र और राज्य द्वारा नीतिगत पहलों के माध्यम से तुरंत हल करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: चीनी उद्योग को लंबे समय तक टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिये एक प्रतिमान बदलाव की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।

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