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बेघर लोगों के लिये आश्रय

  • 25 Feb 2017
  • 10 min read

गौरतलब है की जिस समय प्रधानमंत्री आवास योजना (Pradhan Mantri Awas Yojana - PMAY) को विस्तारित करते हुए इसके अंतर्गत मध्यवर्ग को सम्मिलित किया गया, उस समय यह आशा लगाई गई थी कि योजना के क्रियान्वयन से बेघर लोगों की समस्या का समाधान होना तय है| लेकिन हाल ही में प्रस्तुत किये गए एक आधिकारिक डाटा के अनुसार, वर्ष 2013 के एनयूएलएम (National Urban Livelihood Mission - NULM) कार्यक्रम के अंर्तगत संचालित बेघरों को आश्रय (Shelter for Homeless) प्रदान करने वाले कार्यक्रम के तहत मात्र 658 आश्रयों का ही निर्माण किया गया है| जबकि इनमें से 342 आश्रय पहले से ही स्थापित थे, जिनका पुन: नवीकरण भर किया गया है| अतः मात्र 316 नए आश्रय स्थलों का निर्माण किया गया है|

  • ध्यातव्य है कि देश भर में अवस्थित इन 658 आश्रय स्थलों में तकरीबन 35,000 आबादी आश्रय प्राप्त करती है| जो कि देश की कुल बेघर आबादी (जनगणना 2011 के अनुसार 9.38 लाख लोग) का पाँच प्रतिशत हिस्सा भी नहीं है|
  • जनगणना 2011 के अंतर्गत बेघर लोगों के संबंध में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों में उन लोगों को शामिल किया गया है जो कि ऐसे स्थानों में रहते हैं जहाँ छत नहीं है| स्पष्ट है कि इनकी आजीविका इतनी नहीं है कि ये अपने लिये घर का प्रबंध कर सकें|
  • कुछ समाज सेवी संगठनों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों के अनुसार, वर्तमान में भारत की कुल शहरी आबादी का तकरीबन 1 फीसदी भाग (30 लाख) यानी जनगणना में वर्णित आँकड़ों की तुलना में तीन गुना कम आबादी बेघर है|

658 आश्रय स्थल

  • उल्लेखनीय है कि एनयूएलएम के तहत निर्मित 658 नए एवं पुराने आश्रय स्थलों को देश के केवल 18 राज्यों में ही निर्मित किया गया है| जिनमें पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब, उड़ीसा, गुजरात तथा छत्तीसगढ़ राज्यों में सबसे कम आश्रय स्थलों का निर्माण किया गया है| 
  • इसके विपरीत सबसे अधिक (197) आश्रयों का निर्माण देश की राजधानी दिल्ली में किया गया है| इसका एक कारण यह है कि वर्ष 2009-10 की सर्दियों में दिल्ली में हुई मौतों को मद्देनज़र रखते हुए सर्वोच्च न्यायायल द्वारा दिल्ली सरकार को आश्रय स्थलों का निर्माण करने संबंधी आदेश दिया गया था|जिसके  कारण यहाँ सबसे अधिक आश्रय स्थल अवस्थित हैं|
  • वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के कुछ शहरों यथा ; मुंबई, नवी मुंबई, पुणे तथा नागपुर में दिल्ली की तुलना में कहीं अधिक बेघर जनसंख्या निवास करती हैं तथापि यहाँ केवल 14 आश्रय स्थलों का ही निर्माण किया गया है|
  • जबकि एनयूएलएम के तहत उत्तर प्रदेश राज्य में न तो एक भी नए आश्रय स्थल का निर्माण ही किया गया है और न ही किसी पुराने आश्रय स्थल का नवीकरण ही किया गया है|

 

 शहरी बेघरों को आश्रय प्रदान करने हेतु एनयूएलएम योजना 
 नए आश्रय स्थल 488
 नगर निगम द्वारा  इमारतों को  आश्रय स्थलों के रूप में नवीकृत किया गया    470
 पहले से मौजूद आश्रय स्थलों का नवीकरण   278
 एनयूएलएम के तहत प्रस्तावित कुल आश्रय स्थल   1236
इनमें रहने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या  68,438

 

नए आश्रय स्थल 316
पहले से मौजूद आश्रय स्थलों का नवीकरण किया गया 342
वर्तमान में कार्यरत आश्रय स्थल 658
इनमें रहने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या  35000

  

राज्य आश्रय स्थलों की संख्या राज्य आश्रय स्थलों की संख्या
पंजाब 4 उत्तराखंड 2
नई दिल्ली 197 राजस्थान 86
मध्य प्रदेश 128 बिहार 31
गुजरात 5 झारखण्ड 26
महाराष्ट्र 14 पश्चिम बंगाल 1
कर्नाटक 11 मिज़ोरम 33
केरल 10 उड़ीसा 2
तमिलनाडु 46 तेलंगाना 22
आंध्र प्रदेश 37 छतीसगढ़ 3

  
महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तुत बहाने

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस संबंध में मुंबई देश का सबसे बड़ा व्यतिक्रमी (Defaulter) शहर है, यही कारण है कि इसके द्वारा आश्रय स्थलों के निर्माण के विषय में हमेशा यह बहाना बना दिया जाता है कि शहर के पास ज़मीन की कमी होने के कारण वह बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करने में असमर्थ है|
  • इसके साथ-साथ मुंबई के लोगों में बेघर लोगों के संबंध में व्याप्त बहुत सी गलत अव्धारानाएं भी इस राह में अवरोध उत्पन्न करती हैं| यहाँ महाराष्ट्र के बाहर से आए लोगों को प्रवासियों के रूप में देखा जाता है, जिससे उन्हें अपने रोज़गार तथा बेहतर भविष्य के विकल्प छिनने का डर रहता है|

बजटीय आवंटन

  • स्पष्ट है कि इस सन्दर्भ में सटीक कार्यवाही न हो पाने का मुख्य कारण इन परियोजनाओं में निवेशित पूँजी की कमी होना है|
  • ध्यातव्य है कि नववर्ष के आरंभ में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना को विस्तारित करने की घोषणा किये जाने के साथ ही, बजट 2017-18 में इस योजना के तहत प्रस्तावित रकम में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि कर दी गई|
  • वर्तमान में इस योजना का कुल बजट 6,000 करोड़ रुपए का है| वहीं दूसरी ओर एनयूएलएम का कुल बजट मात्र 349 करोड़ रुपए है जबकि इस परियोजना के अंतर्गत बेघरों को आश्रय प्रदान करना परियोजना के सात अहम घटकों में से एक घटक मात्र है|

अन्य पक्ष

  • यहाँ एक अन्य बात पर गौर किये जाने की आवश्यकता है और वो ये है कि जिन भी राज्यों के द्वारा इन आश्रय स्थलों का निर्माण किया गया है, उन्होंने इन आश्रय स्थलों को केवल रात्रि में सोने के स्थान के रूप में निर्मित किया है|
  • जबकि इन आश्रय स्थलों का निर्माण बेघर लोगों को छत प्रदान करने के साथ-साथ कामकाजी पुरुषों तथा महिलाओं के लिये हॉस्टल तथा बेघर बच्चों के लिये एक आवास के रूप में किया जाना चाहिये था|
  • योजना आयोग के पूर्व सदस्य एन सी सक्सेना के अनुसार, आवास निर्माण के संबंध में हाल ही में 9 -12 लाख तक के ऋणों पर ब्याज सब्सिडी (Interest subsidy) लगाने का निर्णय लिया गया है| ऐसे में एक अहम प्रश्न यह बनता है कि किन बेघर व्यक्तियों को घर खरीदने अथवा घर बनाने के लिये के लिये ऋण प्रदान किया जाएगा? वस्तुतः इन नए नियमों को अधिरोपित किये जाने से सबसे गरीब तथा गरीब लोगों में विभेदन हो गया है| ऐसे में कौन ज़रूरतमंद है और कौन नहीं यह तय कर पाना बहुत अधिक कठिन हो गया है|
  • हालाँकि इस विषय में देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किये गए मानकों के अनुसार, देश की प्रत्येक एक लाख शहरी आबादी के प्रत्येक 50 व्यक्तियों के लिये दो आश्रय स्थल अथवा प्रत्येक 100 व्यक्तियों के लिये 1 आश्रय स्थल की मौजूदगी सुनिश्चित की जानी चाहिये|
  • मानकों के अंतर्गत यह भी वर्णित किया गया है कि उक्त कार्य को किये जाने से पूर्व सबसे पहले देश की समस्त बेघर आबादी को चिन्हित किया जाना चाहिये, इसके अतिरिक्त बेघर महिलाओं के लिये अलग से आश्रय स्थलों की व्यवस्था की जानी चाहिये साथ ही कुल आश्रय स्थलों में से 30 फीसदी आश्रय स्थल विकलांग व्यक्तियों, बुजुर्गों तथा व्यसनी (Addicts) लोगों के लिये सुनिश्चित किये जाने चाहिये|
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