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पूर्वोत्तर भारत में सेवा क्षेत्र: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  • 25 Sep 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 23/09/2021 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘North-East can be a window for service exports’’ लेख पर आधारित है। इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) की समस्याओं और इस भू-भाग में सेवा क्षेत्र में सुधार के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

वर्ष 1991 में स्थापित 'लुक ईस्ट' पॉलिसी ने वर्ष 2015 की 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी का मार्ग प्रशस्त किया। 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसमें सीमावर्ती देशों के साथ भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) को बेहतर ‘कनेक्टिविटी’ प्रदान करना भी शामिल है।

वैश्विक अनुभवों के विपरीत, दक्षिण एशिया के सीमावर्ती ज़िले, विशेष रूप से पूर्वी भू-भाग में, अन्य ज़िलों की तुलना में काफी पिछड़े रहे हैं। ऐसे कई अध्ययन मौजूद हैं, जो दर्शाते हैं कि पर्याप्त परिवहन एवं कनेक्टिविटी का अभाव पूर्वोत्तर क्षेत्र, विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर के ‘चिकेन नेक’ क्षेत्र में एक बड़ी व्यापार बाधा के तौर पर कार्य कर रहा है।  

बांग्लादेश, भूटान और नेपाल की सीमा से लगे इस क्षेत्र के कई ज़िलों को पूर्ववर्ती योजना आयोग द्वारा ‘पिछड़े’ (Backward) क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस प्रकार, उत्तरी बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में सेवा क्षेत्र की क्षमता पर उचित ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है। हालाँकि, महामारी के समय सेवा क्षेत्र की संभावना पर विचार करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन निस्संदेह इसके प्रति सक्रीय और भविष्योन्मुखी बने रहना भी महत्त्वपूर्ण है। 

पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास संबंधी समस्याएँ

  • विकास के सीमित क्षेत्र: पूर्वोत्तर राज्यों में आर्थिक गतिविधियाँ कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह व्यापक और विशाल क्षेत्र आज भी दुर्गम एवं पिछड़ा बना हुआ है। 
  • लंबे समय तक जारी रहने वाले विद्रोहों और सामाजिक-राजनीतिक संघर्षों के परिणामस्वरूप आर्थिक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं और सामाजिक अव्यवस्था की स्थिति बनी रहती है। 
  • विभिन्न योजनाओं के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व को नियमित धन प्रवाहित किया जाता है, हालाँकि इस धन का उपयोग ज़मीनी स्थिति पर हो पाटा है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र के आर्थिक कायाकल्प हेतु धन जुटाने के स्थानीय पहलों को हतोत्साहित करता है। 
  • परिवहन, संचार और बाज़ार तक पहुँच जैसी आर्थिक बुनियादी अवसंरचना की कमी ने भी इस क्षेत्र में औद्योगीकरण को बाधित किया है। 
  • पर्याप्त आधारभूत संरचनाओं की कमी ने औद्योगीकरण को अवरुद्ध किया है, जबकि बदतर अवसंरचना के कारण मौजूदा औद्योगीकरण भी विकास नहीं कर सका है, जो कि एक दुष्चक्र का निर्माण करता है।  
    • देश के शेष हिस्सों के साथ संपर्क की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। परिवहन एवं संचार संपर्कों का विकास केवल ऊपरी ब्रह्मपुत्र घाटी में केंद्रित होने के कारण इस क्षेत्र का विकास काफी असंतुलित और एकतरफा रहा है।
  • निम्न कृषि उत्पादन: भू-भाग के पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी झूम खेती (Slash and Burn) जैसी आदिम कृषि पद्धति प्रचलित है।    
    • मैदानी इलाकों में एकल फसल प्रणाली स्थानीय उपभोग के लिये भी पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन में विफल है।

आगे की राह

  • उत्पादक सेवाएँ: सीमावर्ती ज़िलों को अपने तुलनात्मक लाभों की पहचान करते हुए एक परिप्रेक्ष्य योजना विकसित करनी चाहिये और उन्हें ‘ज़िला निर्यात हब’ (District Export Hubs) और ‘एक ज़िला-एक उत्पाद’ (One District-One Product) जैसी योजनाओं के साथ समन्वित करना चाहिये।     
    • प्रमुख क्षेत्रों के विस्तार के लिये 'उत्पादक सेवा' क्षेत्रों की उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता होगी, जिसमें प्रबंधन सेवाएँ, अनुसंधान एवं विकास, वित्तीय एवं लेखा सेवाएँ और विपणन आदि शामिल हैं।
  • वित्तीय सेवाएँ: सिक्किम के अतिरिक्त, संपूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र वित्तीय समावेशन के मामले में पिछड़ा हुआ है। वित्तीय सेवा क्षेत्र, पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय विकास को गति दे सकता है और इसमें दक्षता एवं निष्पक्षता दोनों प्रभाव निहित होंगे। ’फिनटेक’ क्षेत्र संबंधी नवाचार भी काफी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं। 
  • आईसीटी कनेक्टिविटी (ICT Connectivity): आईसीटी यानी सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी क्षेत्र की प्रकृति भी वित्तीय सेवा क्षेत्र के समान ही है। पूवोत्तर क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति के कारण पर्याप्त आईसीटी कनेक्टिविटी का अभाव है, जो कि इस क्षेत्र के विकास के अवसरों को बाधित करता है।  
    • यदि भारत, बांग्लादेश के सबमरीन केबल नेटवर्क का लाभ ले सके तो ऑप्टिकल फाइबर, सैटेलाइट और माइक्रोवेव प्रौद्योगिकियों के संयोजन के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र को डिजिटल कनेक्टिविटी का लाभ प्रदान किया जा सकता है।
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र में सहयोग, व्यापार एवं नवाचार से हमारे पड़ोसी देशों को भी मदद मिलेगी।
  • पर्यटन: बेहतर कनेक्टिविटी से इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। क्षेत्र के धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के साथ ही इसकी प्राकृतिक रमणीयता पर्यटन को बढ़ावा देने में मददगार हो सकती है।  
    • अध्ययन में पाया गया है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नेपाल के कई नागरिक खरीदारी के लिये सिलीगुड़ी आते हैं। पड़ोसी देशों से खरीदारी/पिकनिक के लिये दैनिक यात्राओं को प्रोत्साहित और मुद्रीकृत किया जा सकता है।
    • अल्पकालिक और दीर्घकालिक—दोनों तरह की यात्राएँ विदेशी राजस्व का सृजन कर सकती हैं। ऐसे में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पर आयोजित हाटों/बाज़ारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • शिक्षा: सिलीगुड़ी क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण बोर्डिंग स्कूल संचालित किये जा रहे हैं, जो सीमावर्ती ज़िलों के छात्रों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।  
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य ज़िलों में भी इसी प्रकार के प्रयास किये जा सकते हैं। अनुसंधान संस्थानों और ‘एडटेक’ (Edtech) कंपनियों के माध्यम से उच्च शिक्षा को सेवा निर्यात के एक संभावित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
  • लॉजिस्टिक्स: मौजूदा अवसंरचनात्मक निवेश से लॉजिस्टिक्स सेवाओं की माँग बढ़ेगी। भारत इस क्षेत्र में कई हवाईअड्डों का विकास कर रहा है।
    • ‘बागडोगरा हवाईअड्डा’ (दार्जिलिंग) उत्तरी बंगाल का एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है और यह बांग्लादेश एवं नेपाल के कई ज़िलों के निकट है।

निष्कर्ष

पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) सेवा क्षेत्र के विकास के मामले में व्यापक संभावनाएँ प्रदान करता है। प्रत्येक सीमावर्ती ज़िलों की अनूठी प्रकृति को पहचानने, विकसित करने और बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि इन क्षेत्रों में सतत् विकास और प्रगति को बढ़ावा मिल सके।

अभ्यास प्रश्न: सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना पूर्वोत्तर भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चर्चा कीजिये।

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