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एडिटोरियल

कृषि

प्राकृतिक खेती हेतु रणनीति

  • 25 Feb 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 24/02/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Road To Natural Farming” लेख पर आधारित है। इसमें प्राकृतिक खेती के महत्त्व के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अपने बजट संभाषण में भारत की वित्त मंत्री ने प्राकृतिक, रसायन-मुक्त, जैविक एवं शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (Zero-Budget Natural Farming- ZBNF) के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। पिछले चार बजट संभाषणों में यह तीसरी बार है जब उन्होंने (शून्य बजट) प्राकृतिक खेती का उल्लेख किया है।

प्राकृतिक खेती—जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, कम संसाधनों के साथ अधिक परिणाम प्राप्त करने हेतु प्रकृति के साथ समन्वय में कार्य करने की कला है।

हालाँकि यह अभ्यास अभी तक पैदावार में गिरावट और किसानों की आय में अधिक सुधार करने में सफल नहीं रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिये, किसानों को रसायन-मुक्त खेती के लिये प्रोत्साहन देना और उन्हें पहले से ही प्राकृतिक खेती में संलग्न अन्य किसानों एवं संस्थाओं की सहायता उपलब्ध करना एक आदर्श कदम होगा।

प्राकृतिक या रसायन-मुक्त खेती

प्राकृतिक खेती और इसका महत्त्व 

  • खेती के इस दृष्टिकोण को सर्वप्रथम एक जापानी किसान सह दार्शनिक मसानोबु फुकुओका (Masanobu Fukuoka) ने वर्ष 1975 में प्रकाशित अपनी किताब ‘द वन-स्ट्रॉ रेवोलुशन’ (The One-Straw Revolution) के माध्यम से प्रस्तुत किया था।
  • यह एक विविधिकृत कृषि प्रणाली है जो फसलों, वृक्षों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैव विविधता के इष्टतम उपयोग का अवसर प्राप्त होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती को पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture) का एक रूप माना जाता है जो पृथ्वी की रक्षा के लिये एक प्रमुख रणनीति है।
  • यह मृदा की उर्वरता एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य की पुनर्बहाली और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के न्यूनीकरण या शमन जैसे विविध लाभों के साथ ही किसानों की आय बढ़ाने का वादा करता है।
  • इसमें भूमि अभ्यासों का प्रबंधन करने और वायुमंडल से कार्बन को मृदा एवं पादपों में जब्त (Sequester) करने की क्षमता है जहाँ यह वास्तव में उपयोगी साबित होता है।

इस संबंध में शुरू की गई विभिन्न पहलें 

  • भारत में प्राकृतिक खेती को परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP) के रूप में प्रोत्साहित किया जा रहा है।
    • BPKP पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को बढ़ावा देने पर लक्षित है जो बाह्य रूप से खरीदे जाने वाले आदानों/इनपुट्स को कम करता है।
  • कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) का उद्देश्य किसानों को कृषि फसलों के साथ ही बहु-उपयोगी वृक्षों के रोपण के लिये प्रोत्साहित करना है, जो न केवल जलवायु लचीलेपन एवं  किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने के दृष्टिकोण से लाभप्रद है बल्कि लकड़ी-आधारित उद्योग एवं हर्बल उद्योग के लिये उन्नत फीडस्टॉक भी प्रदान कर सकता है। 
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture- NMSA) को प्रौद्योगिकियों के विकास, प्रदर्शन और प्रसार के लिये शुरू किया गया है, ताकि कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति लचीला बनाया जा सके।
  • पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (Mission Organic Value Chain Development for North Eastern Region- MOVCDNER) NMSA के अंतर्गत एक उप-मिशन है जिसका उद्देश्य एक मूल्य शृंखला प्रारूप में प्रमाणित जैविक उत्पादन विकसित करना है।
  • वर्ष 2022-23 के बजट में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को 10,433 करोड़ रुपए का 4.2 गुना (पिछले वर्ष की तुलना में) अधिक आवंटन प्राप्त हुआ है जो रसायन-मुक्त खेती के ज़मीनी कार्यान्वयन हेतु धन निर्धारित करेगा।

संबद्ध मुद्दे

  • सिक्किम (भारत का पहला जैविक राज्य) में जैविक खेती की ओर आगे बढ़ने के बाद पैदावार में कुछ गिरावट देखी गई है।
  • ZBNF में उपज लाभ की गिरावट को देखते हुए कुछ वर्षों बाद कई किसान पारंपरिक खेती की ओर लौट गए हैं।
  • जबकि ZBNF ने निश्चित रूप से मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद की है, उत्पादकता और किसानों की आय को बढ़ाने में इसकी भूमिका अभी तक निर्णायक नहीं हो सकी है।
  • किसानों द्वारा रसायन-मुक्त कृषि की ओर आगे बढ़ने के मार्ग में प्रायः इस अवरोध की शिकायत भी की जाती है कि आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की कमी है। प्रत्येक किसान के पास अपने स्वयं के आदान या इनपुट्स  विकसित करने के लिये समय, धैर्य या श्रम का अभाव होता है।
  • ‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि जबकि प्राकृतिक आदानों का पोषक मूल्य लो-इनपुट वाले खेतों (कम मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करने वाले खेतों) में एक समय उपयोग किये जाने वाले रसायनों के समान ही है, हाई-इनपुट वाले खेतों में यह कम है।
    • जब इस तरह की पोषक तत्वों की कमी वृहत स्तर पर संयुक्त होती है तो यह गुज़रते वर्षों के साथ उपज को प्रभावित कर सकती है और इससे खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2022-23 के बजट में देश भर में प्राकृतिक या रसायन-मुक्त खेती को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है, लेकिन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को कोई विशेष आवंटन प्रदान नहीं किया गया है।
    • PKVY और राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (National Project on Organic Farming) जैसी वर्तमान में कार्यान्वित योजनाओं का भी बजट में कोई उल्लेख नहीं हुआ है।

रसायन-मुक्त/प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • गंगा घाटी से परे जाना: गंगा घाटी से परे भी वर्षा सिंचित क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वर्षा सिंचित क्षेत्र, सिंचित क्षेत्रों (जहाँ सिंचाई प्रचलित है) की तुलना में प्रति हेक्टेयर उर्वरकों का केवल एक तिहाई उपयोग ही करते हैं।
      • इन क्षेत्रों में रसायन-मुक्त खेती की ओर आगे बढ़ना आसान होगा।
    • साथ ही, किसानों को लाभ होने की संभावना है क्योंकि इन क्षेत्रों में फसल की वर्तमान पैदावार कम है।
  • सुगम संक्रमण के लिये जोखिम निवारण: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (सरकार की फसल बीमा योजना) में रसायन-मुक्त खेती की ओर आगे बढ़ते किसानों के स्वत: नामांकन को सक्षम करना।
    • कृषि में कोई भी परिवर्तन/ट्रांजीशन, जैसे फसल विविधीकरण या कृषि पद्धतियों में परिवर्तन किसानों के जोखिम में वृद्धि करता है।
    • इस तरह के जोखिमों को कवर किये जाने पर किसान ऐसे किसी परिवर्तन/ट्रांजीशन के लिये अधिक प्रेरित होंगे।
  • कृषि क्षेत्र के MSMEs को सहायता प्रदान करना: रसायन-मुक्त कृषि के लिये इनपुट्स का उत्पादन करने वाले छोटे उद्यमों को सरकार से सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
    • आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की अनुपलब्धता की समस्या को दूर करने के लिये प्राकृतिक खेती के प्रोत्साहन को ग्राम-स्तरीय इनपुट निर्माण सह बिक्री दुकानों (Input Preparation and Sales Shops) की स्थापना के साथ संयुक्त किये जाने की आवश्यकता है।
    • देश भर में प्रति ग्राम दो दुकानों की स्थापना कम-से-कम पाँच मिलियन युवाओं और महिलाओं को आजीविका प्रदान कर सकती है।
  • सफल किसानों से प्रेरणा लेना: देश भर में सतत्/संवहनीय कृषि को बढ़ावा देने और इसका अभ्यास करने वाले गैर-सरकारी संगठनों और अग्रणी किसानों से सहयोग एवं प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है।
    • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (Council on Energy, Environment and Water- CEEW) के एक शोध का अनुमान है कि कम-से-कम पाँच मिलियन किसान पहले से ही सतत् कृषि के किसी न किसी रूप का अभ्यास कर रहे हैं और सैकड़ों गैर-सरकारी संगठन उन्हें प्रोत्साहन प्रदान कर रहे हैं।
    • आंध्र प्रदेश में समकक्ष किसानों (विशेष रूप से अग्रणी किसानों) से ऑन-फील्ड प्रदर्शनों के माध्यम से अनुभव और प्रेरणा ग्रहण करना रसायन-मुक्त कृषि के प्रसार में बेहद प्रभावी साबित हुआ है।
  • सामुदायिक संस्थानों का लाभ उठाना: जागरूकता प्रसार, प्रेरणा और सामाजिक समर्थन के लिये सामुदायिक संस्थानों का लाभ उठाया जा सकता है।
    • सरकार द्वारा एक ऐसे पारितंत्र का विकास करने की आवश्यकता है जहाँ किसान कृषि क्षेत्र में किसी भी ट्रांजीशन की ओर आगे बढ़ते समय एक-दूसरे से सीख सकें और एक-दूसरे का समर्थन कर सकें।
    • कृषि विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम विकसित करने के साथ ही सतत् कृषि अभ्यासों के संबंध में कृषि विस्तार कार्यकर्त्ताओं (Agriculture Extension Workers) की कुशलता में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: प्राकृतिक खेती के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और वे उपाय सुझाइए जो पारंपरिक खेती से रसायन-मुक्त खेती की ओर सुचारु ट्रांजीशन हेतु किये जा सकते हैं।

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