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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

सार्वजनिक उपक्रम नीति का पुनर्मूल्यांकन

  • 17 May 2021
  • 6 min read

यह एडिटोरियल दिनाँक 14/05/2021 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित लेख “Is it time to rethink PSE policy?” पर आधारित है। यह वर्तमान परिदृश्य में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSE) की प्रासंगिकता के बारे में है।

हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि वह मिशन COVID सुरक्षा के तहत Covaxin के निर्माण हेतु विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के लिये तीन सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSE) का उपयोग करेगी।

इसके अलावा, इस्पात, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्रों के कई सार्वजनिक उपक्रमों ने तरल चिकित्सा ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ इसके परिवहन व सरकार के प्रयासों को पूरा करने में मदद की है।

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने अपनी स्थापना के बाद से देश के उच्च विकास और समान सामाजिक-आर्थिक विकास को प्राप्त करने के उद्देश्य को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने में उनका निरंतर योगदान वर्तमान परिदृश्य में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है।

इसलिये हाल के निर्णय ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की उपस्थिति को कम करने और निजी क्षेत्र के लिये नए निवेश स्थान बनाने की सरकार की नीति पर बहस को भी पुनर्जीवित कर दिया है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रासंगिकता

  • भारतअभी तक एक विकसित अर्थव्यवस्था नहीं: ऐतिहासिक रूप से सार्वजनिक उपक्रमों ने अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उद्योगों के लिये भी एक मज़बूत बुनियादी ढाँचा आधार प्रदान किया है।
    • इसके अलावा सार्वजनिक उपक्रमों को सामाजिक-आर्थिक निष्पक्षता के साथ स्थापित किया गया था और यह केवल लाभ पर आधारित नहीं थे, जिसने अर्थव्यवस्था के लिये एक सही प्रकार का बुनियादी ढाँचा तैयार किया।
    • इसलिये सार्वजनिक उपक्रमों से संबंधित नीति पर शायद फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
  • रोज़गार सृजन: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार उत्पन्न  करने वालों में से एक माना जाता है जो सुरक्षित और लाभकारी रोज़गार प्रदान करते हैं।
  • संपत्ति का निर्माण: स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों में राष्ट्रीय संपत्ति के निर्माण में सार्वजनिक उपक्रमों का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है, खासकर उन क्षेत्रों में जिन्हें निजी क्षेत्र द्वारा निवेश पर उच्च जोखिम और कम रिटर्न के रूप में माना जाता है।
  • वैश्विक पदचिह्न का विस्तार: भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम पहले से ही मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरोप, एशिया, लैटिन अमेरिका और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों में दुनिया भर में मौजूद हैं तथा  भारतीय CPSEs and PSEs के लिये अपने वैश्विक पदचिह्न का विस्तार करने की जबरदस्त संभावना है।

आगे की राह 

  • पीपीपी मॉडल को अपनाना: PSEs नीति पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है लेकिन उनके कामकाज के संदर्भ में और अधिक विचार करने की जरूरत है।
    • इन कंपनियों को बिना सरकारी हस्तक्षेप के एक पेशेवर बोर्ड द्वारा चलाया जाना चाहिये। इन सार्वजनिक उपक्रमों को पीपीपी मॉडल के तहत या संयुक्त उद्यम के रूप में भी चलाया जा सकता है।
  • प्रणालीगत सुधार: सार्वजनिक उपक्रमों के भविष्य के विकास के लिये सरकार को निम्नलिखित  कुछ प्रमुख क्षेत्रों में सहायता प्रदान करने पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है: सार्वजनिक उपक्रमों का पुनरुद्धार, भूमि, वित्त /बैंकिंग /कार्यशील पूंजी, उपयोगिताओं और सेवाओं, पर्यावरणीय मुद्दों और अनुसंधान एवं विकास।
  • प्रतिस्पर्धात्मकता मॉडल अपनाना: सीआईआई शोध रिपोर्ट- ‘द राइज ऑफ द एलीफेंट' ने CPSEs को कुशल और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी संस्थाओं में बदलने के लिये एक प्रतिस्पर्धात्मक  मॉडल अपनाने की सिफारिश की है। मॉडल के प्रमुख तत्त्व हैं:
    • रोडमैप और उद्देश्य में स्पष्टता
    • भूमिका का सीमांकन
    • परिचालन स्वतंत्रता
    • स्वतंत्र और अधिकार प्राप्त बोर्ड
    • लेवल प्लेइंग फील्ड  
    • भविष्य के लिये तैयारी  

निष्कर्ष

माना कि अर्थव्यवस्था के विकास में निजी क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने जो योगदान दिया है, उसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है, खासकर आज के कठिन समय में। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने बार-बार देश के विकास में अपना लोहा मनवाया है अतः इनकी भूमिका को सीमित करने की योजना पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

 प्रश्न: कोविड -19 महामारी ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की उपस्थिति को कम करने और निजी क्षेत्र के लिये नए निवेश स्थान बनाने की सरकार की नीति पर बहस को भी पुनर्जीवित कर दिया है। चर्चा कीजिये।

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