लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मविश्वास से आर्थिक विकास की ओर

  • 03 Aug 2020
  • 16 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आत्मविश्वास से आर्थिक विकास व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 के दौर में विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर में तीव्र गिरावट हुई है। वैश्विक महामारी ने मानव संसाधन को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में मानव संसाधन की कमी को भी महसूस किया जा रहा है। महामारी के तीव्रता से हो रहे प्रसार तथा कमज़ोर स्वास्थ्य अवसंरचना ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। सामाजिक व्यवस्था का इस प्रकार विघटन अनिवार्य रूप से आजीविका और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। 

वैश्विक महामारी COVID-19 का आर्थिक प्रभाव निरंतर चर्चा में बना हुआ है। अर्थशास्त्रियों के बीच इस तथ्य पर मतैक्यता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इतिहास में अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रही है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में आत्मविश्वास का संचार करना होगा। यदि जनता अपने स्वास्थ्य व आजीविका के प्रति आश्वस्त होगी तो नि:संदेह ही अर्थव्यवस्था में जनसहभागिता की वृद्धि होगी।

इस आलेख में अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ, समाधान के संभावित उपाय, भारत के सम्मुख उभरते नए अवसर तथा भविष्य के रणनीति पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।

अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ 

  • कोर उद्योगों में संकुचन: जून 2020 में प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, अनुबंधित आठ कोर उद्योगों (कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली) के उत्पादन में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई है।
  • बेरोज़गारी में वृद्धि: लॉकडाउन के कारण विभिन्न कारखाने व छोटे उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा जिससे व्यापक स्तर पर लोगों की आजीविका प्रभावित हुई और बेरोज़गारी दर में तीव्र वृद्धि हुई।
  • गरीबी में वृद्धि: ध्यातव्य है कि विगत कई वर्षों में भारत की बड़ी आबादी स्वयं को गरीबी के दुष्चक्र से निकलने में सफल हुई थी, परंतु इस महामारी के कारण व्यापक स्तर पर लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है जिससे एक बार फिर बड़ी आबादी के गरीबी के दुष्चक्र में फँसने की संभावना है।         
  • सकल घरेलू उत्पाद: विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिये अपने संशोधित अनुमानों में जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय कमी का अनुमान लगाया है। उदाहरण के लिये इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने हाल ही में भारत के विकास पूर्वानुमान को संशोधित करके 6 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत कर दिया है।
  • रिवर्स माइग्रेशन: लॉकडाउन के कारण निर्माण, विनिर्माण और तमाम आर्थिक गतिविधियों के बंद होने से प्रवासी मज़दूर महानगरों से अपने गाँव की ओर लौट चुके हैं जिससे महानगरों की आर्थिक गतिविधियाँ लॉकडाउन में छूट देने के बावज़ूजूद सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पा रही हैं। इन महानगरों में आने वाले कुछ समय तक मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मांग में गिरावट: लॉकडाउन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि गतिविधियाँ ठप्प हैं परिणामस्वरूप कृषकों की आय समाप्त हो गई है। कृषकों की आय समाप्त होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली मांग तेज़ी से घट रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (National Statistical Office -NSO) और नाबार्ड के अखिल भारतीय वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों से कृषि के दौरान ग्रामीण परिवारों की आय स्थिर रही है। 
  • न्यून कृषि गतिविधियाँ: पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कृषि संपन्न राज्यों में व्यापक तौर पर कृषि कार्य किया जाता है, रिवर्स माइग्रेशन के कारण इन राज्यों में खड़ी फसल को काटने के लिये पर्याप्त मज़दूर नहीं मिल पाए जिससे खड़ी फसल बर्बाद हो गई है, जिससे  किसानों ने अगली फसल की बुवाई नहीं की।
  • उत्पादन में कमी: लॉकडाउन के कारण उद्योगों में काम न होने से उत्पादन में गिरावट हुई है। किंतु लॉकडाउन के समाप्त होने के बाद भी मानव संसाधन की आपूर्ति न हो पाने के कारण इन उद्योगों में पुनः उत्पादन होने की संभावना काफी कम है।  
  • आर्थिक आपातकाल की संभावना: लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में विकास का आर्थिक चक्र घूमना बंद हो चुका है। ऐसे में सरकार के द्वारा सार्वजनिक खर्चों में कटौती के साथ अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती भी की गई है तथा अनावश्यक व्यय पर रोक लगाने हेतु आर्थिक आपातकाल के विकल्प पर भी विचार हो सकता है।

समस्या समाधान के भावी विकल्प

  • भारत को कुछ तात्कालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो न केवल महामारी को रोकने और जीवन को बचाने की दिशा में कार्य करें बल्कि समाज में सबसे कमज़ोर व्यक्ति को आर्थिक संकट से बचाने और आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक हों। 
  • स्वास्थ्य अवसंरचना को बेहतर करने के लिये सरकार को इस समय का सदुपयोग करना चाहिये।  
  • विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये सही ढंग से तैयार किये गए राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जिसमें वायरस के प्रसार को रोकने के लिये स्वास्थ्य व्यय को प्राथमिकता और महामारी से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना शामिल हो। केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया गया आर्थिक पैकेज इस दिशा में उठाया गया सराहनीय कदम है। 
  • रिवर्स माइग्रेशन के प्रभाव को सीमित करने के लिये पिछड़े राज्यों में छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे-कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि कार्यों को प्रारंभ करने की दिशा में कार्य करना चाहिये। 
  • भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये सरकार को विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करने पर ध्यान देना होगा। हमारे सामने चीन एक बेहतरीन उदाहरण है जिसने विनिर्माण क्षेत्र को विकसित कर न केवल बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन किया बल्कि देश की अवसंरचना को भी मज़बूती प्रदान की। 
  • भारत के सभी राज्यों को श्रम कानूनों में सुधार करना चाहिये ताकि घरेलू निवेशकों को निवेश करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके। इस प्रकार निवेशकों में आत्मविश्वास के संचार किया जा सकता है, जो आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में निर्णायक कदम साबित होगा। 
  • विदेशी निवेशकों में चीन के प्रति शंका भारत के लिये एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है क्योंकि कई कंपनियाँ चीन से अपना कारोबार समेट कर बाहर जाना चाहती हैं ऐसे में भारत को निवेश प्रक्रिया को सरल बनाकर निवेशकों को आकर्षित करना चाहिये। 
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के शीघ ही पटरी पर लौटने की उम्मीद है ऐसे में एक सार्वजनिक समर्थित नीति, निज़ी क्षेत्र की भागीदारी और नागरिकों के समर्थन के माध्यम से एकीकृत बहुआयामी दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है।
  • जैसा की हम जानते हैं कि इस वैश्विक महामारी से बचाव का एक बेहतर विकल्प फिज़िकल डिस्टेंसिंग अर्थात् शारीरिक दूरी है। भारत की घनी आबादी को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि वायरस के प्रकोप से बचने के लिये अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हुए स्वास्थ्य मानकों का अनुपालन करना ज़रूरी है।

सरकार के द्वारा किये गए प्रयास

  • भारत से दुनिया की उम्मीदें बढ़ी हैं, क्योंकि COVID-19 महामारी संकट के दौरान भारत ने दुनिया भर में विश्वास जीता है, अत: कॉर्पोरेट सेक्टर को इन अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठाना चाहिये।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई पूर्व घोषणाओं तथा RBI द्वारा लिये गए निर्णयों को मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपए का है। 
  • यह आर्थिक पैकेज भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (Gross domestic product- GDP) के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों (Land, Labour, Liquidity and Laws- 4Is) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • सरकार द्वारा पैकेज के तहत घोषित प्रत्यक्ष उपायों में सब्सिडी, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, वेतन का भुगतान आदि शामिल होते हैं जिसका लाभ वास्तविक लाभार्थी को सीधे प्राप्त होता है।
  • सरकार द्वारा MSME की परिभाषा में बदलाव किया गया है क्योंकि ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ के अनुसार लघु उद्यम लघु ही बने रहना चाहते हैं क्योंकि इससे इन उद्योगों को अनेक लाभ मिलते हैं। अत: MSME की परिभाषा में बदलाव की लगातार मांग की जा रही थी।
  • सरकार ने आर्थिक पैकेज में कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन क्षेत्र, केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों, अंतरिक्ष क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के संरचनात्मक सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
  • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये 'मेक इन इंडिया' पहल पर बल दिया जाएगा। 'आयुध निर्माणी बोर्ड' (Ordnance Factory Board) का निगमीकरण किया जाएगा ताकि आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार हो सके।
  • सामाजिक अवसंरचना क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के लिये व्यवहार्यता अंतराल अनुदान(Viability Gap Funding- VGF) योजना को प्रयुक्त किया जाएगा। 
  • केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, COVID-19 से जुड़े ऋण को इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं माना जाएगा और साथ ही केंद्र सरकार द्वारा अगले एक वर्ष के लिये दिवालियापन से जुड़ी कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी। 
  • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, जून 2020 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम’ (मनरेगा) कार्यक्रम के तहत 62 मिलियन लोगों ने रोज़गार की मांग की। मनरेगा योजना के अंतर्गत सूखे अथवा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित ज़िलों के लिये प्रावधान है कि वे अपने क्षेत्र में प्रति दिन 150 दिनों के कार्य की अनुमति देने के लिये संबंधित प्राधिकरण से योजना के विस्तार का अनुरोध कर सकते हैं। 
  • लोगों के आर्थिक संव्यवहार को प्रोत्साहित करने व उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिये तत्काल नकद हस्तांतरण हेतु सरकार को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की योजना पर विचार करना चाहिये।

आगे की राह

  • देश के नागरिकों का सशक्तीकरण किये जाने की आवश्यकता है ताकि वे देश से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर सके तथा बेहतर भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे सके। 
  • भारत को इच्छाशक्ति (Intent), समावेशन  (Inclusion), निवेश (Investment), बुनियादी ढाँचा (InfraMstructure), और नवाचार (Innovation) पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • 21वीं सदी के भारत का निर्माण करने की दिशा में भारत को भविष्य में और अधिक संरचनात्मक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना होगा। 

प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए इस समस्या के समाधान में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का विश्लेषण कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2