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वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली की समस्याएँ

  • 27 Jun 2017
  • 8 min read

संदर्भ
हाल के दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक व अन्य क्षेत्रों में ढाँचागत एवं नीतिगत स्तर पर काफी प्रगति हुई है। फलस्वरुप देश की विकास दर तेज़ी से बढ़ी है। इस बढ़ती विकास दर ने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधारों को गति प्रदान की है, लेकिन इन परिवर्तनों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की मूल समस्याओं को दूर नहीं किया है। प्रस्तुत लेख में हम वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की विश्व में स्थिति, विद्यमान समस्याओं एवं संभावित समाधानों की चर्चा करेंगे।

हाल के वैश्विक अध्ययन

  • न्यूयॉर्क के ‘पी.ई.यू. रिसर्च सेंटर’ (Pew Research Center) द्वारा विश्व के 90 से अधिक देशों में स्कूली शिक्षा मानकों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन 'विश्व में धर्म एवं शिक्षा' नाम से किया गया| यह दुनिया के प्रमुख धर्मों के बीच "शैक्षिक प्राप्ति" (Educational Attainment) पर केंद्रित है। इसमें हिंदुओं में "शैक्षिक प्राप्ति" का स्तर सबसे कम पाया गया और भारतीय विद्यालयी शैक्षणिक व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे निम्न स्थान प्रदान किया गया। दूसरी तरफ औसत स्कूली वर्ष (years of schooling ) के संदर्भ में देखा जाए तो ईसाई धर्म में 9.3 वर्ष, बौद्ध धर्म में 7.9 वर्ष है, जबकि मुस्लिम एवं हिंदू धर्म में औसत स्कूली वर्ष 5.6 वर्ष है, जोकि वैश्विक औसत 7.7 वर्ष से काफी कम है।
  • इसी प्रकार का  अध्ययन हार्वर्ड विश्वविद्यालय और कोरिया विश्वविद्यालय के आर.जे. बैरो (R.J. Barro ) द्वारा वर्ष 2011 में किया गया था और उसनें भी लगभग इसी प्रकार का निष्कर्ष निकला था।
  • पीसा (PISA), जोकि यूरोप में अपनाया जाने वाला माप मानक (Measurement Standards) है, ने भारतीय स्कूलों की गुणवत्ता का अध्ययन किया। इसके द्वारा किये गए 110 देशों के अध्ययन में भारत को नीचे से दूसरी रैंक प्रदान की गई, जो भारतीय शिक्षा की निराशाजनक स्थिति को दर्शाता है।
  • प्रथम’ एन.जी.ओ. की ‘वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट’ (Annual Status of Education Report ) के द्वारा वर्ष 2014 में किये गए मूल्यांकन में क्लास-III के सभी बच्चों का 75 प्रतिशत, कक्षा-V का 50 प्रतिशत और कक्षा आठवीं के 25 प्रतिशत बच्चे कक्षा-II की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ पाए गए। यह भी पाया गया कि सरकारी स्कूलों में कक्षा-V के सभी बच्चों में पढ़ने के स्तर में वर्ष 2010 से वर्ष 2012 के बीच गिरावट देखी गई।
  • वर्ष 2015 के ‘राष्ट्रीय सर्वेक्षण नमूना’ (National Survey Sample) के परिणामों में भी माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों में गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी को सीखने की क्षमता में भारी गिरावट दर्ज़ की गई। 
  • दिल्ली में हुए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि शहर के केवल 54 प्रतिशत बच्चे ही कुछ वाक्य पढ़ सकते हैं। 

सकारत्मक पक्ष

  • अनेक अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि विश्व में सीखने की दृष्टि से भारतीय बच्चे किसी अन्य देश से आगे हैं। उदाहरणस्वरूप अमेरिका में भारतीय अमेरिकी सबसे ज़्यादा शिक्षित समुदायों में से एक हैं। 

समस्या

  • मुख्य समस्या शासन की गुणवत्ता (Abysmal Quality of Governance) में कमी मानी गई है।  
  • शिक्षा प्रणाली "समावेशी" नहीं है। 
  • शिक्षक प्रबंधन, शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण, स्कूल प्रशासन और प्रबंधन के स्तर पर कमी। 
  • पाठ्यक्रमों में व्यावहारिकता की कमी।
  • स्कूल स्तर के आँकड़ों की अविश्वसनीयता।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिये किये गए प्रावधानों को लागू न किया जाना।
  • शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) को जमीनी स्तर पर लागू न किया जाना इत्यादि।
  • अवसंरचना का अभाव।
  • शिक्षा संस्थानों की खराब वैश्विक रैंकिंग।
  • प्रदान की गई शिक्षा और उद्योग के लिये आवश्यक शिक्षा के बीच अंतर।
  • महंगी उच्च शिक्षा।
  • लैंगिक मुद्दे।
  • भारतीय बच्चों के लिये आधारभूत सुविधाओं की कमी।

समाधान 

  • शिक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
  • शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना। 
  • सरकारी खर्च को बढ़ाना। 
  • समावेशी शिक्षा प्रणाली पर ज़ोर देना।
  • गुणवत्ता की शिक्षा को बढ़ावा देना।
  • शिक्षा क्षेत्र में ढाँचागत विकास हेतु ‘पीपीपी मॉडल’ को अपनाना। 
  • समावेशी शिक्षा नीति का निर्माण करना।

सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम

  • सरकार  द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने हेतु ’टी.आर. सुब्रह्मण्यम समिति’ का गठन किया गया था| समिति ने शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नया सिविल सर्विस कैडर बनाने, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) का उन्मूलन, कक्षा-V तक  निरोधक नीति (no-detention policy) जारी रखना और प्राथमिक विद्यालय स्तर पर अंग्रेज़ी की शिक्षा देने जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये थे। इस समिति के प्रावधानों को सरकार द्वारा अभी तक लागू नहीं किया गया है।
  • सरकार ने हाल ही में भारतीय शिक्षा नीति को तैयार करने के लिये ‘के. कस्तूरीरंगन समिति’ (K. Kasturirangan)का गठन किया| इस समिति का प्रमुख कार्य भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समकालीन बनाने, उसकी गुणवत्ता में सुधार करने, शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण तथा विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में प्रवेश जैसे कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों पर रोडमैप तैयार करना है।

निष्कर्ष 
बच्चों के भविष्य को सही राह दिखाने एवं देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देने हेतु यह आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया जाए। अत: हमें अन्य सुधारों के साथ-साथ उचित प्रशासन मानकों, सरकार द्वारा पर्याप्त प्रोत्साहन और चेक और बैलेंस की नीति अपनाने की ज़रूरत है।

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