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एडिटोरियल

जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव पारिस्थितिकी संरक्षण की आवश्यकता

  • 04 Aug 2020
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वन्यजीव पारिस्थितिकी संरक्षण व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

पर्यावरणविदों के अनुसार वर्ष 2018 में बाघ जनगणना हेतु प्रयोग किये गए कैमरा ट्रैप्स में लगभग 17 बाघ अभयारण्यों में बाघों के अतिरिक्त अन्य घरेलू जानवरों (पालतू कुत्ते) की उपस्थिति को भी रिकार्ड किया गया है। विशेषज्ञों का मत है कि बाघ अभयारण्यों में घरेलू जानवरों की उपस्थिति से बाघों समेत अन्य जंगली जानवरों को बीमारियाँ हो सकती हैं, जिससे वन्यजीव पारिस्थितिकी में व्यापक पैमाने पर गिरावट होने की संभावना है। वर्ष 2019 में ही कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (Canine Distemper Virus-CDV) जो कि वन्यजीव अभयारण्यों और उनके आसपास रहने वाले CDV से संक्रमित कुत्तों के माध्यम से प्रसारित हुआ था, अब वन्यजीव वैज्ञानिकों के बीच चिंता का विषय बन गया है।

पिछले वर्ष गिर के जंगल में 20 से अधिक शेर वायरल संक्रमण का शिकार हुए थे। यही कारण है कि जंगली जानवरों में इस वायरस के चलते होने वाली बीमारी को फैलने से रोकने के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) द्वारा कुछ दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं। 

जहाँ एक ओर गंभीर बीमारियों से जंगली जानवरों की मृत्यु हो रही है तो वहीं मानव-वन्यजीव संघर्ष तथा पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्रों में हो रहा निर्माण कार्य भी वन्यजीव पारिस्थितिकी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। मानव-वन्यजीव संघर्ष भारत में स्थानिक है। इसे आमतौर पर विकास गतिविधियों की नकारात्मकता और प्राकृतिक आवासों में गिरावट के रूप में चित्रित किया जा सकता है।

इस आलेख में वन्यजीव पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों तथा संरक्षण के विभिन्न उपायों पर चर्चा की जाएगी।

पारिस्थितिकी से तात्पर्य 

  • जैविक समुदाय और अजैविक घटकों के अंतर्संबंधों से निर्मित संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। वास्तव में जीव जीवन के लिये आपस में तथा अपने पर्यावरण से जुड़े रहते हैं और मिलकर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक समुदाय की गतिविधियों का अध्ययन वन्यजीव पारिस्थितिकी के अंतर्गत किया जाता है।  

वन्यजीव पारिस्थितिकी में गिरावट के कारण  

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष
    • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्र के रूप में विद्यमान है। यह क्षेत्र वन्यजीवों के आवास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है।
    • एक ओर संरक्षित क्षेत्रों का आकार छोटा है, वहीं दूसरी ओर रिज़र्व में वन्यजीवों को पर्याप्त आवास उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त बड़े वन्यजीवों जैसे- बाघ, हाथी, भालू, आदि के शिकारों के पनपने के लिये भी पर्याप्त परिवेश उपलब्ध नहीं हो पाता। 
    • उपर्युक्त स्थिति के कारण वन्यजीव भोजन आदि की ज़रूरतों के लिये खुले आवासों अथवा मानव बस्तियों के करीब आने को मजबूर होते हैं। यह स्थिति मानव-वन्यजीव संघर्ष को जन्म देती है।
    • इसके अतिरिक्त भारत के वनों और इसकी जैव विविधता की रक्षा करने हेतु समर्पित प्राथमिक माध्यम यानी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 अपने संरक्षण कार्यों में असफल रहा है। 
  • कैनाइन डिस्टेंपर वायरस
    • कैनाइन डिस्टेंपर वायरस मुख्य रूप से कुत्तों में श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, श्वसन तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ आँखों में गंभीर संक्रमण का कारण बनता है।
    • संक्रमित कुत्तों के माध्यम से CDV बाघ और शेर सहित भेड़िये, लोमड़ी, रेकून, लाल पांडा, फेरेट और हाइना जैसे जंगली माँसाहारियों को भी प्रभावित कर सकता है।
    • भारत की वन्यजीव पारिस्थितिकी में इस वायरस का प्रसार तथा इसकी विविधता का पर्याप्त रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
  • पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्रों में निर्माण कार्य
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आँकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया के सबसे तेज़ी से विकास कर रहे देशों में शामिल रहा है। वैश्विक बाज़ार में भारत की इस बढ़त ने देश के सुदूर हिस्सों में भी विकास कार्यों में तेज़ी प्रदान की है। परंतु कई बार विकास-कार्यों के दौरान पारिस्थितिकी के क्षरण को रोकने के लिये आवश्यक मापदंडों का पालन नहीं किया जाता, जो कि वन्यजीव पारिस्थितिकी के संरक्षण में एक बड़ी चुनौती है। 
    • वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न विकासात्मक एवं अवसंरचनात्मक गतिविधियों में वृद्धि के लिये विभिन्न नियम और कानूनों में छूट दी है, इससे राजमार्ग एवं रेल नेटवर्क का विस्तार संरक्षित क्षेत्रों के करीब हो सकेगा। इससे वन्यजीव पारिस्थितिकी में और अधिक गिरावट होने की आशंका व्यक्त की गई है। इससे पूर्व वाणिज्यिक लाभ तथा ट्रॉफी हंटिंग (मनोरंजन के लिये शिकार) के कारण पहले ही बड़ी संख्या में वन्यजीवों का शिकार किया जाता रहा है।
    • पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये केंद्र तथा राज्यों में अलग-अलग नियामक इकाइयों का गठन किया जाता है। परंतु कुछ मामलों में इन नियामकों द्वारा प्रायोजकों की कार्यप्रणाली की जाँच व उन पर नियंत्रण के लिये आवश्यक कदम नहीं उठाए जाते।
  • जलवायु परिवर्तन 
    • इसके अलावा जलवायु परिवर्तन ने भी वन्य जीवों को प्रभावित किया है या यूँ कहा जाए कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर वन्य जीवों पर पड़ता है तो गलत नहीं होगा। वन्य जीवों के प्रभावित होने से उनके प्राकृतिक पर्यावास नष्ट हो जाते हैं, जिससे वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर पलायन करते हैं और इससे मनुष्यों व वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ता है। 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

  • भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्यजीव तथा उसके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम [wildlife (protection) act], 1972 लागू किया।
  • इस अधिनियम को जनवरी 2003 में संशोधित किया गया था और कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं जुर्माने और अधिक कठोर बना दिया गया।
  • मंत्रालय ने अधिनियम को मज़बूत बनाने के लिये कानून में संशोधन करके और अधिक कठोर उपायों को शुरू करने का प्रस्ताव किया है।  
  • इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है। 

भारत में वन्यजीवों के संरक्षण हेतु वैधानिक प्रावधान 

  • वन्यजीवों के संरक्षण हेतु भारत के संविधान में 42वें संशोधन (1976) अधिनियम द्वारा दो नए अनुच्छेद 48 (A) व 51 (A) को जोड़कर वन्यजीवों से संबंधित विषय को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
  • वर्ष 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। यह एक व्यापक केंद्रीय कानून है, जिसमें विलुप्त हो रहे वन्यजीवों तथा अन्य लुप्तप्राय प्राणियों के संरक्षण का प्रावधान है। वन्यजीवों की चिंतनीय स्थिति में सुधार एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव योजना वर्ष 1983 में प्रारंभ की गई। 

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वन्यजीव संरक्षण का कार्य सिर्फ संरक्षित क्षेत्रों यथा- राष्ट्रीय वन्यजीव पार्कों, टाइगर रिज़र्व आदि तक सीमित रहता है तो कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर खड़ी होंगी। उदाहरण के लिये, ग्रेट इंडिया बस्टर्ड वन्यजीव संरक्षण आधिनियम की सूची-1 (इस सूची में शामिल वन्यजीवों को हानि पहुँचाना समग्र भारत में प्रतिबंधित है) में शामिल है और इस पक्षी के लिये विशेष अभयारण्य भी स्थापित किया गया है फिर भी यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है।
  • वन्यजीवों के लिये सुरक्षित क्षेत्र के साथ-साथ इस प्रकार के संरक्षित क्षेत्र जो जन भागीदारी पर आधारित हैं, के निर्माण पर भी बल देना चाहिये।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने हेतु एकीकृत पूर्व चेतावनी तंत्र (Integrating Early Warning System) की सहायता से नुकसान को कम करने के लिये प्रयास किया जा सकता है। इसके लिये खेतों में बाड लगाना तथा पालतू एवं कृषि से संबंधित पशुओं की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन करना, आदि उपाय किये जा सकते हैं।
  • ऐसे वन्यजीव (हिरन, सुअर आदि) जो बाघ एवं अन्य बड़े पशुओं का भोजन है, के शिकार पर रोक लगानी चाहिये जिससे ऐसे पशुओं के लिये भोजन की कमी न हो।
  • पशुओं के व्यवहार का अध्ययन कर उचित वन्यजीव प्रबंधन के प्रयास किये जाने चाहिये ताकि आपात स्थिति के समय उचित निर्णय लिया जा सके और मानव-वन्यजीव संघर्ष से होने वाली हानि को रोका जा सके।
  • वन्यजीवों से होने वाले फसलों के नुकसान के लिये फसल बीमा का प्रावधान होना चाहिये इससे स्थानीय कृषकों में वन्यजीवों के प्रति बदले की भावना में कमी आएगी, जिससे वन्यजीवों की हानि को रोका जा सकता है।
  • भारत में एलीफैंट कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, इसी तर्ज पर टाइगर कॉरिडोर एवं अन्य बड़े वन्यजीवों के लिये भी गलियारों का निर्माण किया जाना चाहिये, इसके साथ ही ईको-ब्रिज आदि के निर्माण पर भी ज़ोर देना चाहिये। इन कार्यों के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से कोष की प्राप्ति की जा सकती है।

निष्कर्ष

बाघ व अन्य वन्यजीव पारिस्थितिक तंत्र की विविधता एवं विकास में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, साथ ही बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। इस संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की। वर्ष 1973 से अब तक बाघों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। भारत में बाघों की बढ़ती संख्या मानव-वन्यजीव संघर्ष के रूप में सामने आई है। यदि मानव-वन्यजीव संघर्ष तथा वन्यजीव पारिस्थितिकी में गिरावट के मूल में जाएँ तो यह पाते हैं कि विकास की अंधाधुंध दौड़ में वन्यजीवों के आवासीय क्षेत्र में कमी इसका प्रमुख कारण था। अतः अब हमारा प्रयास पारिस्थितिक तंत्र तथा विकास के मध्य संतुलन बनाने पर केंद्रित होना चाहिये। 

प्रश्न- ‘भारत में लगातार वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट देखी जा रही है।’ वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट के मूल कारणों का उल्लेख करते हुए समाधान के उपाय सुझाएँ

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