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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के लिये नया हथियार

  • 19 Jun 2017
  • 7 min read

संदर्भ
छिपी हुई आतंकी घटनाओं को अभी तक दुनिया के कुछ कम विकसित क्षेत्रों तक ही सीमित माना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो सालों के दौरान पेरिस में चार्ली हेब्डो के कार्यालयों पर हमले के साथ-साथ ब्रुसेल्स, पेरिस, बर्लिन और इस्तांबुल जैसे शहरों में अनेक आतंकवादी घटनाएँ घटित हुई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि तथाकथित विकसित देश भी अब आतंकवादी हमलों से सुरक्षित नहीं हैं। आज इंटरनेट-आधारित आतंकी घटनाओं ने विश्व के समक्ष पहले से कहीं अधिक जटिल समस्या को पैदा कर दिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • आज विश्व के लगभग सभी देश सुरक्षा और विकास के सामने आतंकवाद को सबसे गंभीर खतरा मान रहे हैं।
  • आतंकवादी एजेंसियाँ और खुफिया संगठन अपने आप को नई तकनीकों के अनुकूल बनाते जा रहे हैं। इन संगठनों के नेटवर्क का विकेंद्रीकृत रूप इसका एक उदाहरण है।
  • आतंकवादी अपनी क्रियाविधि के परिचालन के सभी पहलुओं को परिष्कृत बनाते हुए  अपनी क्षमताओं में सुधार कर रहे हैं। अपनी क्षमता में वृद्धि के लिये सूचना तकनीक,  संचार और खुफिया तंत्र जैसी आधुनिक तकनीकों का आक्रामक तरीके से उपयोग कर रहे हैं।
  • आज कट्टरपंथी आतंकवादियों की नई नस्ल बाह्य प्रायोजित या राज्य प्रायोजित पर ज़्यादा निर्भर नहीं है। हालाँकि इनकी उत्पत्ति अल-कायदा और उसके सहयोगी संगठनों से ही मानी जाती है। यह नई नस्ल अत्याधुनिक तकनीक को अपनाने में भी सक्षम है, जिससे पहले से ज़्यादा आतंकी घटनाओं को अंज़ाम दिया जा सकता है।
  • इंग्लैंड, जिसके पास आतंकवादी घटनाओं से निपटने की अत्याधुनिक प्रणाली रखता है, वहाँ पर भी हाल ही में तीन महत्त्वपूर्ण आतंकवादी घटनाएँ घटी हैं।
  • यह दिखाता है कि आज आतंकवाद का किस प्रकार मार्ग परिवर्तित हो रहा है और ‘नए युग’ के आतंकवादियों द्वारा न केवल ‘सॉफ्ट राज्यों' पर हमले किये जा रहे हैं, बल्कि सुरक्षात्मक दृष्टि से सुरक्षित माने जाने वाले राज्यों पर भी। उदाहरणस्वरूप मई में इंग्लैंड के मैनचेस्टर में हुई गंभीर आतंकवादी घटना।
  • नकली विधियों (Copycat methods) को अक्सर आई.एस. के हमलों में देखा जाता है। लंदन के दोनों हमलों में वैन का प्रयोग किया गया था। आई.एस. प्रायोजित हमलों में वाहनों / ट्रकों का भी उपयोग किया जा रहा है। उदाहरणस्वरुप पिछले दो सालों में स्टॉकहोम, एंटवर्प, बर्लिन और नाइस के आंतकी हमलों में देखा जा सकता है।
  • हालाँकि वर्तमान में कई आतंकवादियों का स्रोत आई.एस. और अल-कायदा को माना जाता है, लेकिन विश्व के विभिन्न आतंकवादी संगठनों के बीच आपसी संबंध ज़्यादा सुद्रढ़ होते जा रहें हैं।
  • आज आतंकवाद अधिक विषम होता जा रहा है। क्योंकि नए-नए आतंकवादी समूह उभरते जा रहे हैं। आतंकवादी संगठनों के बीच बढ़ता सहयोग आतंकवाद को बनाए रखने के तरीकों को अधिक परिष्कृत कर सकता है।

उभरती नई चौनोतियाँ 

  • इंटरनेट के माध्यम से कट्टरता (Radicalism) ने एक नया आयाम हासिल कर लिया है। आतंकी संघठनों द्वारा इंटरनेट के माध्यम से प्रचार करना आजकल भर्ती प्रक्रियाओं से कहीं आगे निकल चुका है और सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी विचारधारा का प्रसार करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी कारण कुछ मुस्लिम युवाओं का इन संगठनों में शामिल होना, बेहद आकर्षण का कारण बना हुआ है। 
  • 'इंटरनेट-सक्षम' आतंकवाद के रूप में एक और खतरनाक पहलू विश्व के सामने उभरा है। इसने विद्यमान परिदृश्य को और अधिक जटिलता प्रदान की है। नतीजा यह है कि अब 'अकेला आंकवादी'  (lone wolf) अकेला नहीं रहा। इंटरनेट के माध्यम से हज़ारों मील दूर बैठे ‘नियंत्रक' द्वारा उसे निर्देशित किया जाता है और हमले के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया जाता।
  • ‘नियंत्रक' ही यह तय करता है कि लक्ष्य कौन-सा होगा, हमले की 'प्रकृति' कैसी होगी?  और यहाँ तक की कौनसे हथियार का उपयोग किया जाएगा? उदाहरणस्वरूप आई.एस. द्वारा इंटरनेट का उपयोग किया जाना।
  • 'साइबर-योजनाकार' एक "आभासी कोच" के रूप में कार्य करते हैं, जो आतंकवादी हमलों की योजना बनाते हैं, लोगों की पहचान करते हैं, संभावित अवसरों का आकलन करते हैं और सभी प्रक्रियाओं में मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
  • यही कारण है कि विश्व में ‘साइबर आतंकवाद’ की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं, जिसमें आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये इंटरनेट या कंप्यूटर का उपयोग किया जा रहा है।

निष्कर्ष
अत: इंटरनेट नए युग के आतंकवादी संगठनों के हाथों में एक खतरनाक हथियार बन गया है। इसलिये वैश्विक स्तर पर इससे निपटने के लिये सभी देशों को मिलकर प्रयास करना चाहिये  ताकि भविष्य में हम आने वाली पीढ़ियों को इस खतरे से बचा सकें।

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