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निजी क्षेत्र में आरक्षण की ज़रूरत: एक समग्र अवलोकन

  • 15 Nov 2017
  • 12 min read

हाल ही में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की गई है, जबकि उद्योग जगत की अग्रणी संस्था एसोचैम का कहना है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण की किसी भी पहल से देश में निवेश का माहौल खराब हो सकता है। एसोचैम ने राजनीतिक दलों को ऐसा कोई भी कदम उठाने से बचने की सलाह दी है जिससे कि निवेशकों में गलत संदेश जाए।

भूमिका

  • देश में आरक्षण के मुद्दे पर दशकों से चर्चा होती आ रही है। जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को संविधान लागू होने के साथ ही आरक्षण मिल गया था, वहीं अन्य पिछड़ा वर्गों के लिये यह व्यवस्था आज़ादी के लगभग 4 दशक बाद की गई।
  • दरअसल, आज़ादी के बाद से ही किसी न किसी रूप में निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की जाती रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वयं डॉ. अम्बेडकर ने खुद यह मांग की थी। हालाँकि, उपेक्षित समूहों के लिये निजी क्षेत्र में आरक्षण एक दूर का सपना ही रहा है।
  • निजी क्षेत्र में आरक्षण से जहाँ एक ओर सामाजिक न्याय के सिद्धांत को और बल मिलेगा, वहीं दूसरी ओर यह भी संभावना व्यक्त की जाती है कि इससे नक्सलवाद जैसी समस्या भी काफी हद तक सुलझ सकती है।

इस लेख में हम निजी क्षेत्र में आरक्षण के पक्ष, विपक्ष में तर्क देने के अलावा आगे की राह के बारे में भी चर्चा करेंगे, लेकिन पहले देख लेते हैं कि किन तर्कों के आधार पर एसोचैम निजी क्षेत्र में आरक्षण का विरोध कर रहा है।

एसोचैम की चेतावनी के तर्क

  • पिछले कुछ दिनों में चिंताजनक परिस्थितियों से दो-चार हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था अब सुधार की ओर बढ़ रही है। ऐसे में निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर दिया गया कोई भी राजनीतिक बयान अर्थव्यवस्था की बेहतरी पर ग्रहण लगा सकता है।
  • एसोचैम उद्योग मंडल का मानना है कि ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में भारत ने जो छलांग लगाई है उसके संभावित लाभ को गंवाना नहीं चाहिये।
  • विदित हो कि नोटबंदी और जीएसटी के अल्पकालिक नकारात्मक प्रभावों के कारण अभी तक देश में निवेश का माहौल उतना उत्साहजनक नहीं दिख रहा था, हालाँकि अब परिस्थितियों में सुधार के आसार नज़र आ रहे हैं।

निजी क्षेत्र में आरक्षण एक उत्तम विचार क्यों?

  • आरक्षण चैरिटी नहीं है:

♦ दरअसल, संवैधानिक रूपरेखा में स्वीकार किया गया आरक्षण कोई चैरिटी (दान) नहीं है।
♦ अतः प्रतिभा हनन या निजी गतिविधियों का हवाला देकर वंचित एवं उपेक्षित समुदायों को इससे दूर नहीं किया जा सकता।

  • संविधान का मौलिक सिद्धांत:

♦ संविधान सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता सुनिश्चित करने पर बल देता है और साथ ही यह भी स्पष्ट शब्दों में दोहराता है कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ों वर्गों को वरीयता देनी चाहिये।
♦ अतः संविधान के मौलिक सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए निजी क्षेत्र में आरक्षण एक उत्तम पहल नज़र आता है।

  • सरकारी नौकरियों की घटती संख्या:

♦ दरअसल, आरक्षण के ये प्रावधान सरकारी नौकरियों तक ही सीमित हैं, लेकिन 1991 में हमारी अर्थव्यवस्था में खुलापन आने के बाद सरकारी नौकरियों की संख्या लगातार घटती जा रही है, जबकि निजी क्षेत्र की नौकरियों में वृद्धि हुई है।
♦ आरक्षण का मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है, लेकिन सरकारी नौकरियों के मार्फत इसे हासिल करने के अवसर सिमटते जा रहे हैं। अतः निजी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाना चाहिये।

  • सामाजिक दायित्वों का निर्वहन:

♦ मिश्रित अर्थव्यवस्था में उचित प्रतिस्पर्धा का अर्थ सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के लिये एक ‘लेवल प्लेयिंग फील्ड’ का होना है।
♦ लेकिन जहाँ तक सामाजिक दायित्यों के निर्वहन का प्रश्न है तो प्रायः यह ज़िम्मेदारी सार्वजानिक क्षेत्र पर ही आरोपित कर दी जाती है, जबकि इसमें निजी क्षेत्र की भी समान भागीदारी होनी चाहिये।
♦दरअसल, औद्योगिक विकास बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को कई रियायतें दी गई हैं और इस दृष्टि से तो उन्हें सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिये।

निजी क्षेत्र में आरक्षण एक उत्तम विचार क्यों नहीं?

  • नवाचार और बेहतर प्रदर्शन के लिये अवरोध:

♦ दरअसल, निजी क्षेत्र अपने नवाचार और बेहतर कार्य निष्पादन क्षमता के लिये जाना जाता है और इस क्षेत्र में कोटा सिस्टम लागू करने से राष्ट्र की प्रगति में बाधा आ सकती है।
♦ साथ ही इससे नए विचारों के सृजन एवं प्रतिस्पर्धात्मक माहौल के निर्माण में अवरोध की भी संभावना है।

  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों से समझौता: 

♦ इस प्रकार के आरक्षण से एक ऐसे कार्यबल का निर्माण होगा जिससे अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में असमर्थ रहने की पूरी संभावना है।
♦ इसका प्रभाव यह होगा कि आर्थिक विकास को प्रमुख एजेंडा मानकर आगे बढ़ रही इस दुनिया में हम पिछड़ सकते हैं।

  • मौज़ूदा अंतराल को कम करने की ज़रूरत: 

♦ गौरतलब है कि वर्ष 1992 से सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ी जातियों के लिये 27% आरक्षण होने के बावजूद लगभग 12% को ही नौकरी मिल पाई है।
♦ अतः निजी क्षेत्र में आरक्षण देने से पहले मौज़ूदा अन्तराल को पाटने की ज़रूरत है।

आगे की राह

  • आरक्षण को अक्षुण्ण रखने की ज़रूरत:

♦ भारत में आरक्षण की व्यवस्था समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के उद्देश्य की गई है। भारत में जाति प्रथा के कारण कुछ वर्गों का इतना शोषण हुआ है कि आज़ादी के 70 साल बाद भी वे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से भय खाते हैं।
♦ आरक्षण सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का एक यंत्र है, इसे तब तक जारी रखना उचित है जब तक कि हासिये पर ठेल दिये गए लोग समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो जाते।

  • ज़रूरी है समुचित क्रियांवयन:

♦ देश में आरक्षण प्रणाली की रूपरेखा ऐसी है कि समाज के एक वर्ग का उत्थान दूसरे की कीमत पर हो रहा है।
♦ हम तो पहले से मौज़ूद आरक्षण के प्रावधानों का ही समुचित लाभ नहीं ले पाए हैं। ऐसे में बिना समुचित क्रियांवयन के प्रावधान पर प्रावधान बनाते जाने का कोई औचित्य नहीं है। हमें कौशल और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर जोर देना होगा।

  • शिक्षा व्यवस्था में सुधार:

♦ भारत में शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है, ताकि समाज के सभी वर्गों के लिये एक ऐसा मंच तैयार किया जा सके जहाँ हम बिना किसी किन्तु-परन्तु के अवसर की समानता की बात कर सकें।
♦ हालाँकि सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों से शिक्षा व्यवस्था में अहम् सुधार आया है, लेकिन फिर भी यह प्रगति संतोषजनक नहीं कही जा सकती।
♦ ऐसा इसलिये क्योंकि देश में बड़ी संख्या में प्राथमिक विद्यालय अभी तक बिना पानी के शौचालय, फर्नीचर का अभाव, किताबों की कमी, कंप्यूटर की कमी और बिना खेल के मैदान के ही चल रहे हैं।

  • ज़रूरी है ‘लेवल प्लेयिंग फील्ड’

♦ एक राष्ट्र के रूप में वंचित समूहों के साथ केवल सहानुभूति दिखाने और लोकलुभावन वादे करने के बजाय हमें उन्हें सशक्त बनाने के लिये कार्य करना चाहिये।
♦ ‘एक समान शिक्षा’ ‘लेवल प्लेयिंग फील्ड’ के निर्माण में अहम् है लेकिन हम इस दिशा में बात करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाए हैं और अमीरों के बच्चे विश्व स्तरीय शिक्षा सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं, जबकि एक गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ने को मजबूर है, जहाँ आधारभूत सुविधाएँ तक मौज़ूद नहीं हैं।

  • निजी क्षेत्र में आरक्षण और नक्सलवाद

♦ जहाँ तक निजी क्षेत्र में आरक्षण के ज़रिये नक्सलवाद पर अंकुश लगाने का प्रश्न है तो विशेषज्ञों का मानना है कि रोज़गार में कमी नक्सलवाद बढ़ने का कारण तो है, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है।
♦ आदिवासी इलाकों में हो रहे खनन कार्यों तथा स्थापित होने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण उचित है। लेकिन समस्या के समुचित समाधान हेतु भूमि की अनुपलब्धता, गरीबी, सामान्य नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व और सरकार की उदासीनता जैसे मुद्दों पर कार्य करने की ज़रूरत है।

निष्कर्ष
दरअसल, आरक्षण के माध्यम से वंचित वर्गों को रोज़गार मिलता है जिससे उनका उत्थान होता है और उनकी सामाजिक सहभागिता बढ़ती है, लेकिन आरक्षण के प्रावधानों का समुचित उपयोग हो इसके लिये सरकार को उन वर्गों की पहचान करनी होगी जिन्हें वास्तव में आरक्षण की ज़रूरत है। साथ ही मुफ़्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
‘कमज़ोर वर्गों का उत्थान केवल नौकरियों में आरक्षण के ज़रिये ही हो सकता है’; यह इस समस्या का एक बहुत ही छोटा दृष्टिकोण है। हमें समझना होगा कि आरक्षण सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की जादू की छड़ी नहीं है। कमज़ोर वर्गों के स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार तीनों ही पक्षों का ध्यान रखना होगा, अन्यथा वंचित वर्ग वंचित ही बना रहेगा, भले ही अगले 200 वर्षों तक आरक्षण की व्यवस्था क्यों न कायम रहे।

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