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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र

  • 26 Dec 2020
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के संदर्भ में विकास की संभावनाओं, उनकी चुनौतियों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) ने हमेशा से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में देश में सक्रिय लगभग 6.3 करोड़ MSMEs न सिर्फ देश की जीडीपी में एक बड़ा योगदान देते हैं बल्कि ये एक बड़ी आबादी के लिये रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराते हैं। गौरतलब है कि यह क्षेत्र लगभग 110 मिलियन रोज़गार उपलब्ध कराने के साथ श्रमिक बाज़ार की स्थिरता में भी  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में सरकार द्वारा वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत अभियान पर विशेष ज़ोर दिये जाने के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक रणनीति की दृष्टि से MSMEs की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। 

MSME क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा अनुमान लगाया गया कि अगले पाँच वर्षों में यह क्षेत्र भारत की आधी जीडीपी और लगभग 50 मिलियन नए रोजगारों के सृजन के लिये उत्तरदायी होगा।  

हालाँकि COVID-19 महामारी के कारण मांग पक्ष की तरफ और ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) जैसे संरचनात्मक सुधारों के कारण आपूर्ति पक्ष में मंदी के संकेत देखने को मिले थे, इसके साथ ही विमुद्रीकरण के कारण भी MSME क्षेत्र पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

MSME क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ:      

गौरतलब है कि जर्मनी और चीन की जीडीपी में MSMEs की भागीदारी क्रमशः 55% और 60% है जो इस बात का संकेत है कि भारत को इस क्षेत्र में अभी एक लंबी यात्रा तय करनी है, MSME की प्रगति के मार्ग की प्रमुख बाधाओं में से कुछ निम्नलिखित हैं:

  •  वित्तीय चुनौतियाँ: भारत में MSME क्षेत्र में ऋण आपूर्ति की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। 
    • इस क्षेत्र में उपलब्ध औपचारिक ऋण 16 ट्रिलियन रुपए ही है, जिसके कारण इस क्षेत्र में कुल व्यावहारिक ऋण की ज़रूरत (36 ट्रिलियन रुपए) के सापेक्ष अभी भी लगभग 20 ट्रिलियन रुपए का अंतर बना हुआ है।   
    • इसके साथ ही बैंकिंग पहुँच की कमी के कारण भारत में MSMEs को अधिकांशतः ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFCs) या  सूक्ष्‍म वित्‍तीय संस्‍थानों (MFIs) पर निर्भर रहना पड़ता है। 
    • सितंबर 2018 से NBFC क्षेत्र में तरलता की कमी ने MSMEs की वित्तीय चुनौती को और अधिक बढ़ा दिया है। 
  • MSMEs के औपचारीकरण की कमी: इस क्षेत्र में क्रेडिट गैप का एक प्रमुख कारण MSMEs के बीच औपचारिकता की कमी रही है।
    • देश में सक्रिय कुल MSMEs में से लगभग 86% का पंजीकरण नहीं किया गया है।       
    • वर्तमान में भी देश के कुल 6.3 करोड़ MSMEs में से केवल 1.1 करोड़ ही ‘वस्तु और सेवा कर’ (GST) व्यवस्था के साथ पंजीकृत हैं।      
    • इसके साथ ही इन 1.1 करोड़ MSMEs में से आयकर दाखिल करने वालों की संख्या और भी कम है।
    • ऐसे में सीमित उपलब्धता और डेटा पारदर्शिता के अभाव में भारतीय MSME क्षेत्र की ऋण ज़रूरत को पूरा नहीं किया जा सका है।
  • तकनीकी बाधाएँ:
    • भारत का MSME क्षेत्र बड़े पैमाने पर पुरानी और अप्रचलित प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जो इसकी उत्पादन क्षमता को बाधित करता है।    
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स और अन्य संबंधित प्रौद्योगिकियों (जिसे सामूहिक रूप से औद्योगिक क्रांति 4.0 के रूप में जाना जाता है) का उद्भव संगठित क्षेत्र के उद्यमों की तुलना में MSME के लिये ज़्यादा बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है।  
  • नियामकीय बाधाएँ: MSMEs के संचालन के लिये बहुत सी सरकारी अनुमतियों  और सेवाओं की आवश्यकता होती है, जिसके लिये उद्यमियों को विभिन्न सरकारी विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। 
    • नियामकीय जटिलताओं के कारण वर्तमान में भी निर्माण परमिट प्राप्त करना, अनुबंधों को लागू करना, करों का भुगतान, व्यापार शुरू करना और सीमाओं के पार व्यापार करना आदि MSMEs की प्रगति में एक बड़ी बाधा बनी हुई है। 
    • विनियामक जोखिम और नीतिगत अनिश्चितता ने पूर्व में भी निवेशकों के आत्मविश्वास को प्रभावित किया है।
  • उत्पादन की चुनौतियाँ: वर्तमान में देश में सक्रिय MSMEs में अधिकांश फर्म सूक्ष्म उद्यम (Micro Enterprises) श्रेणी की हैं।
    • देश का MSME क्षेत्र मुख्य रूप से छोटी और स्थानीय दुकानों की भरमार से बना एक सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र है, ऐसे में उनके व्यापार या उत्पादन को बढ़ाना (विशेषकर वर्तमान वित्तीय चुनौती के बीच) एक बड़ी चुनौती है।

इन समस्याओं के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र में बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटी कंपनियों का उत्पादन बहुत ही कम रहा है।

आगे की राह: 

  • बॉण्ड मार्केट का विकास करना: हाल के वर्षों में भारतीय बॉण्ड बाज़ार में हुई प्रगति के बीच एसएमई बॉण्ड (SME Bond) को बढ़ावा देने से एमएसएमई की ऋण पूंजी बाज़ारों की भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है।
    • एक तरफ जहाँ SME बॉण्ड को प्रोत्साहित करने से MSMEs को अन्य वित्तीय बिचौलियों की तुलना में कम ब्याज दर का लाभ मिल सकेगा वहीं ये बॉण्ड बाज़ार में काम करने वाले जागरूक और शिक्षित निवेशकों के लिये एक व्यवहार्य उच्च रिटर्न के साधन के रूप में कार्य करेंगे।   
  • स्वतंत्र नियामकीय व्यवस्था: डेटा अर्थव्यवस्था के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि सरकार द्वारा एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना की जाए जो MSMEs को परामर्श देने के साथ उन्हें इस नई डिजिटल व्यवस्था में आगे बढ़ने में सक्षम बना सके। 
  • श्रम कानूनों में  सुधार: वर्तमान में देश में लागू श्रम कानून MSMEs के विकास के लिये बहुत अनुकूल नहीं हैं। 
    • श्रमिक कानूनों में बदलाव किया जाना बहुत ही आवश्यक है, परंतु इसकी संवेदनशीलता की देखते हुए इन कानूनों को MSMEs के लिये विकास-उन्मुख ढाँचा प्रदान करने और श्रमिकों के अधिकारों के संदर्भ में पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के बीच सही संतुलन स्थापित करना होगा।  
  • विनियमन में सुधार: हाल के वर्षों में सरकार द्वारा व्यापार सुगमता पर विशेष ज़ोर दिया गया है परंतु इसी दौरान छोटे व्यवसायों के लिये रिपोर्टिंग, अनुमोदन और अनुपालन आवश्यकता आदि जटिलताएँ बनी हुई हैं।  
    • यदि  हम सही मायने में चाहते हैं कि MSMEs का देश के आर्थिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप हो, तो इसके लिये MSMEs को वर्तमान जटिलताओं से मुक्त एक ऐसा नियामकीय  ढाँचा प्रदान किया जाना बहुत ही आवश्यक है कि जो उनके खिलाफ काम करने के बजाय उनके लिये काम करता हो।    

निष्कर्ष: 

MSMEs एक लचीली राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये रीढ़ का कार्य करते हैं। देश के मज़बूत आर्थिक भविष्य के लिये MSMEs के विकास को प्राथमिकता देना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।  भारत को ऐसे ही और उपायों ( विशेषकर वर्तमान परिस्थिति में) को अपनाने की आवश्यकता है। अगला दशक भारत को एक उभरती हुई शक्ति से आगे बढ़ते हुए एक स्थापित आर्थिक महाशक्ति के रूप में बदलने का दशक  होगा और इस यात्रा में MSMEs की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होगी।    

MSME

अभ्यास प्रश्न:   भारत के मज़बूत आर्थिक भविष्य के लिये ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र’ के विकास को प्राथमिकता देना बहुत ही आवश्यक है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

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