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अलग रेल बजट की समाप्ति के मायने

  • 30 Jan 2017
  • 8 min read

सन्दर्भ

  • भारतीय रेलवे ने लगभग 13 लाख लोगों को रोज़गार दे रखा है| यह प्रतिवर्ष लगभग 1 अरब टन माल भार उठाती है| भारतीय रेलवे के 12,000 रेलगाड़ियों में प्रत्येक दिन लगभग 24 मिलियन यात्री यात्रा करते हैं| इन आँकड़ों की बराबरी विश्व के केवल कुछ ही रेलवे कर सकते हैं| लेकिन भारतीय रेलवे के लिये अलग बजट का पेश किया जाना एक ऐसी व्यवस्था थी जो अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलती थी|
  • गौरतलब है कि पिछले साल केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ ही रेल बजट को आम बजट से अलग पेश करने का 92 साल पुराना चलन अब समाप्त करने पर मुहर लगा दी गई थी| वित्त वर्ष 2017-18 से रेल बजट आम बजट के अंतर्गत ही पेश किया जाएगा| इससे पहले कि हम इस कदम के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर गौर करें, यह देखते हैं कि कभी आम बजट से भी भारी-भरकम माना जाने वाला रेलवे बजट कैसे सिकुड़ता चला गया?

क्यों लाया गया था अलग रेलवे बजट?

  • एक ही सरकार के विभाग होने बावजूद रेल बजट अलग क्यों पेश किया जाता है! यह समझने के लिये भारत में बजट प्रणाली की शुरुआत को समझना होगा| वर्ष 1859 से पहले ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में बजट नाम की कोई चीज़ नहीं थी|
  • वर्ष 1859 में ही वायसरॉय लार्ड केनिंग ने अपनी कार्यकारिणी में जेम्स विल्सन को बतौर वित्त सदस्य नियुक्त किया| विल्सन की पहल पर ही 1860 में पहली बार बजट पेश किया गया, विदित हो कि इस बजट में रेलवे का लेखा-जोखा भी शामिल था| गौरतलब है कि जेम्स विल्सन को ही भारत में बजट प्रणाली का जन्मदाता कहा जाता है|
  • वर्ष 1920 में विलियम एक्कर्थ के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था| एक्कर्थ समिति ने अपनी सिफारिशों में रेल बजट को आम बजट से अलग करने का सुझाव दिया| क्योंकि तत्कालीन समय में रेलवे अकेले भारत की सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि का संचालन करता था|
  • विदित हो कि 1924 के आते-आते पूरे देश के बजट में रेलवे की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत की हो चुकी थी और इस बात को ध्यान में रखते हुए एक्कर्थ समिति की सिफारिशें मान ली गईं| तब से लेकर पिछले वर्ष तक रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाता रहा है|

क्यों समाप्त की गई अलग रेल बजट की परम्परा?

  • वर्ष 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब भी रेलवे से होने वाली राजस्व की प्राप्ति आम राजस्व प्राप्तियों से 6 प्रतिशत अधिक थी| तब सर गोपालस्वामी आयंगर समिति ने यह सिफारिश दी थी कि अलग रेलवे बजट की यह परम्परा ज़ारी रहनी चाहिये| इस आशय के संबंध में 21 दिसंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा एक प्रस्ताव अनुमोदित किया गया था|
  • गौरतलब है कि इस अनुमोदन के अनुसार 1950-51 से लेकर अगले पाँच साल तक की अवधि के लिये ही रेलवे बजट को अलग पेश किया जाना था| लेकिन यह परम्परा पिछले वित्त वर्ष तक ज़ारी रही है|
  • धीरे-धीरे रेलवे के राजस्व में कमी आने लगी और 70 के दशक में रेलवे बजट सम्पूर्ण राजस्व प्राप्तियों का 30 प्रतिशत ही रह गया और 2015-16 में रेलवे का राजस्व कुल राजस्व का 11.5 प्रतिशत तक आ पहुँचा| तब बहुत से विशषज्ञों ने अलग रेलवे बजट को समाप्त करने का विचार दिया था|


रेलवे के राजस्व में गिरावट के कारण

  • भारतीय रेलवे ने अपने राजस्व की कमी में उल्लेखनीय कमी को मुख्यतः दो कारणों से आत्मसात किया है| पहला कारण है यात्री किराए में दी जाने वाली सब्सिडी की माल-भाड़े को दर में लगातार वृद्धि के माध्यम से भरपाई किया जाना| गौरतलब है कि गैर-वातानुकूलित आरक्षण के यात्री किराए में लगातार 12 वर्षों से कोई वृद्धि नहीं की गई है| माल-भाड़े में इत्तनी वृद्धि हुई है कि रोड ट्रांसपोर्ट रेलवे से कही ज़्यादा सस्ता हो गया है|
  • दूसरा कारण है रेलवे का स्वयं अपने संचालन के प्रमुख क्षेत्रों को छोड़कर कम महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना| विदित हो कि 90 के दशक में ही रेलवे ने नगरीय क्षेत्रों में माल ढुलाई से स्वयं को अलग कर लिया था और यह खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा फैसला था| 90 के दशक में ही भारत में नगरीय अवसरंचना का निर्माण आरम्भ हुआ था और रेलवे इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता था|
  • रेलवे के राजस्व में कमी के कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे- रेलवे का आधुनिकीकरण न किया जाना, पाइपलाइन के निर्माण से रेलवे द्वारा किये जाने वाले पेट्रोलियम पदार्थों की ढुलाई में उल्लेखनीय गिरावट आना इत्यादि|

निष्कर्ष

  • ऐसी सम्भावना है कि रेल बजट को आम बजट के साथ ही पेश करने के फैसले से रेलवे को आर्थिक मोर्चे पर बड़ा फायदा होगा| क्योंकि रेलवे को आर्थिक मदद के एवज में केंद्र सरकार को 10 हजार करोड़ रुपये की रकम बतौर लाभांश चुकाना पड़ता, लेकिन अब रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाये जाने की वज़ह से उसे यह रकम उसे चुकाने की ज़रूरत नहीं है| आर्थिक तंगी की शिकार रेलवे के लिये निश्चित ही यह बड़ी बचत है|
  • अलग रेल बजट की परम्परा की समाप्ति के साथ ही सबसे बड़ा डर यह था कि क्या इस कदम से रेलवे की स्वायतत्ता प्रभावित होगी? हालाँकि शुरुआती जानकारी के हिसाब से देखें, तो नहीं लगता कि एक स्वायत्त उपक्रम के रूप में कामकाज करने में रेलवे को कोई रुकावट आएगी या फिर उसके वित्तीय अधिकारों को कोई हानि पहुँचेगी| 
  • हालाँकि, यह बात तयशुदा तौर पर अभी से कही जा सकती है कि आगे से रेलभाड़ा या किराये में बढ़ोतरी का जिम्मा वित्त मंत्रालय का होगा| यानी रेलयात्री के रूप में जनता की जेब पर असर डालने वाले किसी फैसले से उपजे रोष का निशाना वित्त मंत्री होंगे न कि रेल मंत्री? इसी तरह रेलयात्रियों को मिलनेवाली सुविधा या सुरक्षा में इजाफा होता है, तो इसकी वाहवाही क्या वित्त मंत्री के खाते में जायेगी?
  • जाहिर है, रेल बजट को आम बजट से मिलाने के फैसले को राजनीतिक महत्त्व के नज़रिये से नहीं बल्कि वित्तीय महत्त्व से देखा जाना चाहिये| ऐसा नहीं है कि अलग रेल बजट ने भारतीय रेल को पटरी से उतारा है बल्कि भारतीय रेलवे ने नई ऊँचाइयों को स्पर्श किया है तो उसमें अलग रेल बजट की भूमिका महत्त्पूर्ण रही है| ऐसी परिस्थितियों में सरकार को चाहिये कि इस आम बजट में  रेलवे का ख्याल भी भलीभाँति रखे|
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