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मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक

  • 11 Mar 2017
  • 8 min read

गौरतलब है कि केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री द्वारा लोक सभा में मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक, 2016 प्रस्तुत किया गया जिसे सदन ने बहुमत से पारित कर दिया| विदित हो कि राज्य सभा इसे 11 अगस्त, 2016 को पारित कर चुकी है | 1961 के मूल कानून की जगह संशोधित विधेयक में संगठित क्षेत्र की महिला कामगारों के लिये मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ाने के साथ-साथ कई नए प्रावधान शामिल किये गए हैं| इसके तहत बच्चे को कानूनन गोद लेने वाली महिलाओं के साथ-साथ सरोगेसी यानी उधार की कोख के जरिये संतान सुख पाने वाली महिलाओं को भी कानून के दायरे में लाया गया है| इस विधेयक का उद्देश्य माँ और बच्चों को बेहतर देखभाल की सुविधा मुहैया कराना है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला नेतृत्व के विकास की दिशा में इस विधेयक को मील का पत्थर बताया है| 

संशोधन का कारण 

  • पर्याप्त मातृत्व अवकाश और आय की सुरक्षा न होने की वज़ह से महिलाओं के करियर पर बुरा असर पड़ता है|   विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कई संगठनों का मानना है कि माँ और बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये कामकाजी महिलाओं को 24 हफ्ते का मातृत्व अवकाश देना ज़रूरी है|  डब्ल्यूएचओ के अनुसार बच्चों की उत्तरजीविता (सरवाइवल) दर में सुधार के लिए 24 हफ्ते तक उन्हें सिर्फ स्तनपान कराना जरुरी होता है| साथ ही, बदलते समय के साथ सरोगेसी के जरिये बच्चे पैदा करने और बच्चे गोद लेने के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, इसलिये ऐसी महिलाओं को भी इस कानून के दायरे में लाने के लिये यह संशोधन किया गया है।

मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक, 2016 के प्रमुख प्रावधान 

  • संशोधित विधेयक में नौ से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में कामगार महिलाओं के लिये मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दी गई है। अगर महिला के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे केवल 12 हफ्ते का ही अवकाश मिलेगा| विधेयक में अवकाश का लाभ प्रसव की संभावित तारीख से आठ हफ्ते पहले लिया जा सकता है। 1961 के मूल कानून में यह अवधि छह हफ्ते की थी| 
  • इनमें ऐसी महिलाओं को जिन्होंने तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को कानूनन गोद लिया है उन्हें 12 हफ्ते का अवकाश दिया जाएगा| सरोगेसी के जरिये संतान पाने वाली महिला को भी इतने ही हफ्ते का लाभ दिया जाएगा। यह अवधि उस तारीख से मानी जाएगी जब बच्चे को गोद लिया गया हो या सरोगेसी के जरिये संतान पाने वाली महिला को बच्चा सौंपा गया हो।

विधेयक की सीमाएँ 

  • नए विधेयक में कामकाजी महिलाओं की सुविधाओं के लिये कई प्रावधान शामिल करने और सुविधाओं के दायरे को बढ़ाने के बावजूद कई सवाल उठ रहे हैं| इसमें सबसे बड़ी आपत्ति 1961 के मूल कानून की तरह ही असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को इस कानून के दायरे में शामिल नहीं करने को लेकर है| ऐसी कामगारों की संख्या कुल महिला कर्मचारियों के करीब 90 फीसदी तक है| हालाँकि, ऐसी महिलाएँ इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना के तहत वित्तीय लाभ का दावा कर सकती हैं| 
  • इस योजना के तहत किसी गर्भवती महिला को दो बच्चों के लिये 6,000-6,000 रुपये दिये जाते हैं, लेकिन यह योजना मातृत्व लाभ कानून का विकल्प नहीं हो सकती क्योंकि यह वेतन के नुकसान या रोज़गार सुरक्षा जैसी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाती| ऐसी महिलाओं को अपने और बच्चे के स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते अवकाश लेने में मुश्किलें हो सकती हैं|
  • संशोधित विधेयक में इस कानून का लाभ लेने के लिये बच्चों की संख्या तय कर दी गई है|  मूल कानून में यह प्रावधान नहीं था| अर्थात दो बच्चों के बाद पैदा होने वाले बच्चों के समय पुराने कानून के तहत केवल 12 हफ्ते की छुट्टी ही मिल पाएगी|  इस पर सवाल उठ रहे हैं कि ऐसी स्थिति में डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों का क्या होगा जो बच्चों के लिये 24 हफ्ते तक स्तनपान को बेहद ज़रुरी मानता है | इसके बाद के बच्चे के लिए महिलाओं को इस बुनियादी मातृत्व सुविधा से वंचित करना सही नहीं होगा |
  • 2002 में दूसरे श्रम आयोग ने सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मातृत्व लाभ सहित विभिन्न श्रम कानूनों में एकरूपता लाने का सुझाव दिया था| इन कानूनों में कर्मचारी राज्य बीमा कानून (1948), अखिल भारतीय सेवा अवकाश नियम (1955), केंद्रीय सिविल सेवा अवकाश नियम (1972), फैक्ट्री कानून (1948), श्रमजीवी पत्रकार और विविध प्रावधान नियम, 1957, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कानून (1966) और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा एक्ट (2008) शामिल हैं. संशोधित विधेयक में भी सरकार ने श्रम आयोग की सिफारिशों की अनदेखी की है|

विश्व के अलग- अलग देशों में मातृत्व लाभ की स्थिति 

  • दुनिया के कई देशों में मातृत्व लाभ के लिये अलग-अलग फंडिंग मॉडल लागू किये गए हैं | 2014 में आईएलओ ने 185 देशों में लागू प्रावधानों का अध्ययन किया था| 25 फीसदी देशों में नियोक्ताओं द्वारा मातृत्व लाभ दिया  जाता है | इनमें पाकिस्तान, नाइजीरिया और केन्या जैसे देश शामिल हैं|  58 फीसदी देश जिनमें ऑस्ट्रेलिया और नार्वे शामिल हैं, गर्भवती महिलाओं को नकद लाभ मुहैया कराते हैं| 16 फीसदी देशों में नियोक्ता और सरकार दोनों मिलकर मातृत्व लाभ देते हैं|  अमेरिका में महिला कामगारों को 12 हफ्ते की छुट्टी देने के अलावा वित्तीय लाभ का कोई प्रावधान नहीं है| ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक 52 हफ्ते का मातृत्व अवकाश दिया जाता है|
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