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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय स्मारकों पर मंडराता संकट

  • 08 Jul 2017
  • 8 min read

संदर्भ
हमारी विरासतें ही हमारी पहचान है। हम अपनी ऐतिहासिक इमारतों अपने पूर्वजों की विरासत की झलक देखते हैं। हमें तब के देशकाल एवं परिस्थितियों के बारे में जानकारी हमारे विरासतों से ही प्राप्त होती है, लेकिन भारत की स्मारकीय विरासत से संबंधित प्रावधानों में कुछ बदलाव देखे जा रहे हैं। दरअसल, केंद्र सरकार प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 में संशोधन करने पर विचार कर रही है, जिसके माध्यम से हमारे राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के चारों और मौजूदा सुरक्षा घेरे को हटा दिया जाएगा।

यह सुरक्षा जाल क्यों महत्त्वपूर्ण है तथा इसे हटाए जाने के प्रस्ताव को शर्मनाक क्यों माना जा रहा है? 

  • यह ताजमहल से लेकर ममल्लापुरम तक देश के संरक्षित स्मारकों के संरक्षण हेतु उनके चारों ओर बनाया गया 100 मीटर त्रिज्या का एक प्रतिबंधित क्षेत्र है, जहाँ किसी भी प्रकार की नई निर्माण गतिविधियों की अनुमति प्रदान नहीं की गई है।
  • यह टाइगर रिज़र्व के चारों ओर बनाए गए क्षेत्र के समान ही है, जहाँ बाघों के रहने वाले स्थान को सामान्य क्षेत्र से पृथक कर दिया जाता है, ताकि वहाँ किसी भी प्रकार का मानवीय हस्तक्षेप न हो।
  • देश में 3,650 ऐसे स्मारक हैं, जिनका राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण किया गया है, परन्तु सरकारी आँकड़ों के मुताबिक लगभग 5,00 000 ऐसे स्मारक हैं, जिन्हें संरक्षित नहीं किया गया है और वर्तमान में ये नष्ट होने के खतरे से जूझ रहे हैं। 

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • कैग की वर्ष 2013 की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जाँच किये गए 1,655 स्मारकों में से 546 का अतिक्रमण किया गया था।
  • वर्ष 2010 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस बात का खुलासा किया कि इसके सदस्यों को 2,500 से अधिक स्मारकों जाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि वे जर्जर स्थिति में हैं।
  • भारत की रक्षाहीन विरासतों का संरक्षण केवल तभी हो सकता है, जब उनके लिये उपयुक्त नियम बनाए जाएं।
  • यद्यपि ऐसे कई क़ानूनी प्रावधान हैं जो स्मारकों के आस-पास प्रतिबंधित क्षेत्रों में होने वाले अतिक्रमण पर रोक लगाते हैं।
  • यह विचार कि विरासत भवनों के चारों ओर एक सुरक्षा जाल का निर्माण किया जाना चहिये जवाहरलाल नेहरु द्वारा दिया गया था। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने वर्ष 1955 में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री से यह शिकायत की थी कि भारत के प्राचीन और ऐतिहासिक भवनों के चारों और नए भवनों का निर्माण होने से इन भवनों को क्षति पहुँच रही है।
  • नेहरु ने सुझाव दिया था कि ऐसे नियम बनाए जाएं, जिनके तहत एक निश्चित क्षेत्र में बिना अनुमति के निर्माण कार्यों की अनुमति प्रदान नहीं की जाएगी। इस प्रकार के उनके दृष्टिकोण का एक उदाहरण निज़ामुद्दीन में अब्दुर रहीम खानखाना के मकबरे के चारों और बनाया गया सुरक्षा जाल है।
  • उनके इस विचार को वर्ष 1959 के प्राचीन ‘स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष’ नियमों में स्थान दिया गया तथा इस प्रकार पहली बार संरक्षित स्थलों और स्मारकों के चारों और प्रतिबंधित और नियामक क्षेत्र निर्माण को महत्त्व दिया गया।
  • इन नियमों के आलोक में निर्णय देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में ऐसी सभी अनुमतियों को रद्द कर दिया था, जिन्हें भारत के पुरातत्व विभाग ने एक विशेषज्ञ सलाहकारी समिति के माध्यम से अवैध तरीके से प्रदान की थी।
  • तत्पश्चात वर्ष 2010 में भारत सरकार ने एक समिति का गठन किया, जिसने संसद में एक नए विधेयक की सिफारिश की। “प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष (संशोधन और वैधता) अधिनियम” नामक इस विधेयक को मार्च 2010 में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था।
  • विदित हो कि इस विधेयक कानून बनते ही स्मारकों के चारों ओर के प्रतिबंधित और नियामकीय क्षेत्र को अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
  • अब सरकार राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के चारों ओर के 100 मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र को हटाने पर विचार कर रही है, जो कि अत्यंत ही चिंतनीय है।

संशोधन की निंदा करने के कारण 

  • यह चिंतनीय है कि सरकार के लिये विकास का जो मतलब है, उसमें पर्यावरण और धरोहरों के संरक्षण की कोई खास जगह नज़र नहीं आ रही है। वैसे भी पर्यावरण सुरक्षा के मोर्चे पर भारत बहुत मज़बूत नहीं रहा है।
  • उद्योगों को राष्ट्रीय पार्कों के कहीं नजदीक लगाने की इज़ाज़त देने जैसे कामों से मौजूदा केंद्रीय सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा से जुड़े मानकों को और भी कमज़ोर कर दिया है।
  • ‘इनवायरनमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट रिसोर्स एंड रिस्पॉन्स सेंटर’ ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की एक समिति पर आरोप लगाया है कि उसने ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जिनका मौके पर मुआयना यानी साइट इंस्पेक्शन नहीं हुआ था और ऐसी परियोजनाओं को भी, जिन्हें पिछली समितियों ने खारिज़ कर दिया था। 
  • इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ मामलों में निहित तत्वों ने धरोहरों के संरक्षण की आड़ में अपना स्वार्थ साधा है। ऐसा ही पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के साथ हुआ है।
  • दरअसल, कुछ कुछ ऐसे लोग अवश्य हैं जो पर्यावरण के नाम पर शोर मचाकर इसका फायदा उठाते हैं, लेकिन ऐसे मामलों की पहचान की जा सकती है।
  • प्रस्तावित संशोधन राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण को भी कमज़ोर करेगा, जो स्मारकों के इर्दगिर्द 200 मीटर के दायरे में निर्माण के लिये सरकार के अनुरोध की समीक्षा करता है। देश में संरक्षण के क्षेत्र के लिये यह शुभ संकेत नहीं हैं। 

निष्कर्ष
भारत के स्मारक हमारी सभ्यतागत विरासत का अपरिवर्तनीय संग्रह हैं। अपनी विरासत में हमारा गर्व बढ़ता ही जा रहा है, जबकि विरासत की देखभाल में कमी आ रही है। निश्चित ही आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी भारत की पुरातात्त्विक विरासत हमारी प्राकृतिक धरोहर के समान ही विविध और अनमोल है, जिसे सुरक्षित रखे जाने की ज़रूरत है।

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