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भारतीय अर्थव्यवस्था

यूनिवर्सल बेसिक इनकम: समय की मांग

  • 01 Jun 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में यूनिवर्सल बेसिक इनकम व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने हेतु जारी लॉकडाउन के कारण देश के भीतर सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हैं। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। देश में व्यापक पैमाने पर रोज़गार समाप्त हो गए हैं, इस संकट की घड़ी में स्वास्थ्य के साथ ही लोगों की आजीविका भी खतरे में है। इस समय छोटे व्यवसाय या कंपनियों ने ही नहीं बल्कि कई बड़ी बहु-राष्ट्रीय कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर दी है या फिर बड़े पैमाने पर छंटनी कर रह हैं।

इस प्रकार की विषम परिस्थिति में सरकार के समक्ष स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखने की चुनौती है। ऐसे में कई अर्थशास्त्रियों ने लोगों के आर्थिक संव्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की योजना पर विचार करने का सुझाव दिया है। वर्तमान में वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण विश्व के कई देशों में इमरजेंसी बेसिक इनकम (Emergency Basic Income) तथा यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income) को शुरू किया गया है जापान ने प्रत्येक व्यक्ति को एक लाख येन देने का निर्णय किया है तो वहीं कनाडा ने प्रत्येक व्यक्ति को 2500 डॉलर प्रति माह देने का निर्णय किया है

इस आलेख में यूनिवर्सल बेसिक इनकम, उसके लाभ, विशेषताएँ, उससे जुड़ी चिंताओं पर चर्चा करने के साथ ही यूनिवर्सल बेसिक इनकम और आपातकालीन बेसिक इनकम के बीच अंतर को समझने का भी प्रयास किया जाएगा

पृष्ठभूमि 

  • प्रत्येक व्यक्ति को जीवन यापन के लिये न्यूनतम आय की गारंटी मिलनी चाहिये, यह कोई नया विचार नहीं है। ‘थॉमस मूर’ नाम के एक अमेरिकी क्रांतिकारी दार्शनिक ने हर किसी के लिये एक समान आय की मांग की थी। वह चाहते थे कि एक ऐसा ‘राष्ट्रीय कोष' हो जिसके माध्यम से हर वयस्क को एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाए। ‘बर्ट्रेंड रसेल’ ने 'सोशल क्रेडिट' आंदोलन चलाया जिसमें सबके लिये एक निश्चित आय की बात की गई थी।
  • भारत में यह अवधारणा चर्चा में इसलिये रही क्योंकि वर्ष 2016-17 के भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में UBI को एक अध्याय के रूप में शामिल कर इसके विविध पक्षों पर चर्चा की गई है।
  • गौरतलब है कि आर्थिक सर्वेक्षण में UBI योजना को गरीबी कम करने के लिये एक संभावित विकल्प बताया गया था।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम 

  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम देश के प्रत्येक नागरिक को दिया जाने वाला एक आवधिक (Periodic), बिना शर्त नकद हस्तांतरण है। इसके लिये व्यक्ति के सामाजिक या आर्थिक स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है।
  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम अवधारणा की दो मुख्य विशेषताएँ हैं-
    • UBI अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक (Universal) है, अर्थात् यह लक्षित (Targeted) नहीं है।
    • यह बिना शर्त नकद ट्रांसफर है। अर्थात् किसी भी व्यक्ति को UBI हेतु पात्र होने के लिये बेरोज़गारी की स्थिति या सामाजिक-आर्थिक पहचान को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • UBI एक न्यूनतम आधारभूत आय की गारंटी है जो प्रत्येक नागरिक को बिना किसी न्यूनतम अर्हता के आजीविका के लिये हर माह सरकार द्वारा दी जाएगी।
  • इसके लिये व्यक्ति को केवल भारत का नागरिक होना ज़रूरी होगा।

क्या है इमरजेंसी बेसिक इनकम?

  • इमरजेंसी बेसिक इनकम एक निर्धारित समय तक देश के प्रत्येक नागरिक को दिया जाने वाला बिना शर्त नकद हस्तांतरण है। इसके लिये व्यक्ति के सामाजिक या आर्थिक स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है। 
  • जब सरकार को इस बात का आभास हो जाता है कि देश में वस्तुओं एवं सेवाओं की पर्याप्त माँग की जा रही है और लोगों को रोज़गार भी प्राप्त हो चुका है, तब सरकार हालात सामान्य होने के बाद इमरजेंसी बेसिक इनकम देना बंद कर देती है
  • वर्तमान में वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण विश्व के कई देशों में इमरजेंसी बेसिक इनकम की अवधारणा को अपनाया गया है। 

भारत में बेसिक इनकम की अवधारणा आवश्यक क्यों?

  • विदित है कि मध्य प्रदेश में ऐसी एक योजना को शुरू किया गया था जिसमें पायलट प्रोजेक्ट के तहत मध्य प्रदेश के आठ गाँवों में छह हजार से ज़्यादा लोगों को मासिक भुगतान किया गया। इसका परिणाम सकारात्मक रहा।
  • अधिकांश ग्रामीणों ने उस पैसे का उपयोग घरेलू सुविधा बढ़ाने (शौचालय, दीवार, छत) में किया, ताकि मलेरिया के खिलाफ सावधानी बरती जा सके। अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों में यह देखा गया कि बेहतर वित्तीय स्थिति में वे राशन की दुकानों की बजाए बाज़ार जाने लगे, उन्होंने अपने पोषण में सुधार किया और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों की स्थिति बेहतर हुई। अतः हम कह सकते हैं कि बेसिक इनकम का यह विचार एक उत्तम पहल है।
  • वैश्विक महामारी के दौरान बेसिक इनकम को पायलट प्रोजेक्ट के ज़रिये बढ़ाना और धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक इसे अमल में लाना भारत में आदर्श प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसके माध्यम से गाँवों में लोगों के रहन-सहन के स्तर को सुधारा जा सकता है, उन्हें पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है और बच्चों के पोषण में सुधार भी लाया जा सकता है। एक नियमित बेसिक इनकम से भूख और बीमारी से विवेकपूर्ण ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है।
  • बेसिक इनकम, बाल श्रम को कम करने में भी मददगार साबित हो सकती है। इसके ज़रिये उत्पादक कार्यों में वृद्धि करके गाँवों की तस्वीर बदली जा सकती है और यह सतत् विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास होगा। विदित है कि बेसिक इनकम की मदद से सामाजिक विषमता को भी कम किया जा सकता है। यदि एक वाक्य में कहें तो बेसिक इनकम का यह विचार आय असमानता और इसके दुष्प्रभावों से भारत को मुक्त कर सकता।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम से लाभ 

  • वर्तमान में सरकार विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है लेकिन अब सरकार उन्हें नकद पैसा देकर इस प्रवृत्ति को बदलना चाहती है ताकि लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार सेवाओं को प्राप्त कर सकें
  • वर्तमान में चल रहे आर्थिक संकट के दौर में यह स्कीम देश के लोगों के हाथों में अतिरिक्त क्रय शक्ति देगी जिससे देश में उत्पादनकारी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा
  • इस योजना को लागू करना आसान है क्योंकि इसमें लाभार्थियों को चिन्हित नहीं करना पड़ेगा
  • यह योजना सरकारी धन के अपव्यय और भ्रष्टाचार को कम करेगी क्योंकि इसका कार्यान्वयन बहुत सरल है और पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में भेजा जायेगा 

चुनौतियाँ 

  • दुनिया में उच्च असमानता की स्थिति, ऑटोमेशन और वैश्विक महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण रोज़गार के नुकसान की संभावना ने कई उन्नतशील अर्थव्यवस्थाओं को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा पर विचार करने को प्रेरित किया है, ताकि उनके नागरिकों को न्यूनतम स्तर की आय समर्थन की गारंटी दी जा सके। 
  • कई विशेषज्ञों का मानना है कि सबके लिये बेसिक इनकम का बोझ कोई बहुत विकसित अर्थव्यवस्था ही उठा सकती है जहाँ सरकार का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 40 फीसदी से भी ज़्यादा हो और टैक्स से होने वाली कमाई का आँकड़ा भी इसके आसपास ही हो। 
  • यदि हम भारत की बात करें तो टैक्स और GDP का यह अनुपात 17 फीसदी से भी कम बैठता है। हम तो बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत ढाँचे के अलावा सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, मुद्रा और बाहरी संबंधों से जुड़ी संप्रभु प्रक्रियाओं का बोझ ही बहुत मुश्किल से उठा पा रहे हैं।
  • बेसिक इनकम की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ‘बेसिक आय’ का स्तर क्या हो, यानी वह कौन-सी राशि होगी जो व्यक्ति की अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सके?
  • इस बात की प्रबल संभावना है कि लोगों को दी गई निःशुल्क रकम उन्हें आलसी बना सकती है और वे काम ना करने के लिये प्रेरित हो सकते हैं
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि लोगों को दी गई निःशुल्क रकम उत्पादक गतिविधियों, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि पर खर्च की जाएगी यह तंबाकू, शराब, ड्रग्स और अन्य लक्जरी वस्तुओं आदि पर भी खर्च की जा सकती है अगर ऐसा हुआ तो इस योजना का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा
  • लोगों को निःशुल्क रकम देने से अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होगी क्योंकि देश में उपभोक्तावादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा

यूनिवर्सल बेसिक इनकम के पक्ष में तर्क 

  • अगर भारत की बात करें तो यहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता है और गरीबों को सब्सिडी एवं सहायता प्रदान करने वाली कई सरकारी योजनाएँ विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हैं। वर्तमान में केंद्र सरकार की कुल 950 योजनाएँ चल रही हैं। इन योजनाओं को चलाने के लिये GDP का करीब 5 प्रतिशत खर्च होता है। ये योजनाएँ गरीबों को लाभ पहुँचा रही हैं या नहीं, यह चर्चा का विषय है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि इन सभी योजनाओं को यदि बंद कर दिया जाए तथा इनमें खर्च होने वाले पैसे को UBI की ओर ले जाया जाए तो गरीबों तक प्रत्यक्ष रूप से पैसा पहुँचेगा और उनकी स्थिति में सुधार होगा।
  • सिस्टम में अनेक खामियों के चलते जिन लोगों को वास्तव में सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है, उन्हें छोड़ दिया जाता है। इसलिये यह तर्क दिया जाता है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम सभी नागरिकों को बेसिक आय प्रदान कर इन समस्याओं को दूर कर सकती है।

निष्कर्ष

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बेसिक इनकम का विचार भारत की जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा लेकिन सबके लिये एक बेसिक इनकम तब तक संभव नहीं है जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडी को खत्म न कर दिया जाए। अतः सभी भारतवासियों के लिये एक बेसिक इनकम की व्यवस्था करने की बजाय सामाजिक-आर्थिक जनगणना की मदद से समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के लिये एक निश्चित आय की व्यवस्था करना कहीं ज़्यादा प्रभावी और व्यावहारिक होगा। 

प्रश्न- यूनिवर्सल बेसिक इनकम से आप क्या समझते हैं? वर्तमान परिदृश्य के आलोक में इसकी व्यवहार्यता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये

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