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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पारितंत्र में निवेश

  • 06 Sep 2017
  • 11 min read

भूमिका

अप्रैल 2016 में टाइगर कंज़र्वेशन (Tiger conservation) के संबंध में आयोजित की गई तीसरी एशिया मंत्रीस्तरीय कॉन्फ्रेंस (Asia ministerial conference) में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा मानव जीवन में प्रकृति की महत्ता एवं उपयोगिता के संबंध में चर्चा की गई। देश के प्राकृतिक पारितंत्र को “प्राकृतिक पूंजी” (Natural Capital) की महत्ता प्रदान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक पारितंत्र देश के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को सशक्त करने का काम करता है जो कि किसी भी देश के वास्तविक आर्थिक विकास एवं उन्नति का मुख्य आधार होते हैं।

वृहद् आर्थिक योगदान 

  • इसमें कोई दोराय नहीं है कि प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी के बहुमूल्य संसाधन होते हैं तथापि ये भारत के राष्ट्रीय आधारभूत ढाँचे का सबसे उपेक्षित भाग है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम प्रकृति की सबसे कीमती देन का उस रूप में उपयोग नहीं कर पा रहे हैं जिस तरह किया जाना चाहिये। 
  • उल्लेखनीय है कि भारत विश्व के 17 सर्वाधिक प्राकृतिक विविधता वाले देशों में से एक है। 
  • प्राकृतिक पारितंत्र का भारत की अर्थव्यवस्था में कई बिलियन डॉलर (वार्षिक स्तर पर) का योगदान है; उदाहरण के तौर पर, भारतीय वनों का वित्तीय मूल्य तकरीबन $1.7 ट्रिलियन है। ये वन न केवल इमारती लकड़ी एवं जलावन के रूप में देश को ईंधन उपलब्ध कराते है बल्कि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं।
  • हालाँकि पिछले कुछ समय से देश के प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण इनमें ह्रास की स्थिति देखी गई है। इससे न केवल मानव जीवन प्रभावित हुआ है बल्कि कच्चे माल के प्रमुख स्रोत होने के कारण इससे भविष्य में अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचने की संभावना है। 

‘पृथ्वी ओवरशूट दिवस’ 

  • उल्लेखनीय है कि पर्यावरण की इसी अवधारणा को आधार बनाते हुए प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में ‘पृथ्वी ओवरशूट दिवस’ (Earth Overshoot Day) मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि इसके लिये अगस्त माह में कोइ निश्चित तिथि निर्धारित नहीं है।
  • यह एक औपचारिक कैलेंडर की तारीख मात्र है जिसमें एक वर्ष के अंतर्गत (एक वर्ष के लिये मानव की कुल वार्षिक संसाधनों की खपत) पृथ्वी की प्राकृतिक संसाधनों को पुन:धारण करने की क्षमता के खत्म होने के समय को सूचीबद्ध किया जाता है।
  • दूसरे शब्दों में एक वर्ष की समयावधि में संपूर्ण मानवता को जितनी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, उतनी मात्रा में संसाधनों के उपयोग की समय-सीमा खत्म होने तथा नई तारीख शुरू होने के दिन को ‘पृथ्वी ओवरशूट दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  • यह दर्शाता है कि इस तारीख के बाद जितनी भी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जाएगा, वह संसाधनों के आवश्यक आवंटन से अधिक होगा।
  • प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से पृथ्वी की संसाधनों को पुन:धारण करने की क्षमता में कमी आती है। 

इसके क्या प्रभाव होते हैं?

  • वस्तुतः जब हम प्राकृतिक पूंजी के साधनों की सीमा को पार कर लेते हैं तो हमें अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के साथ-साथ समाज पर पड़ने वाले इसके नकारात्मक प्रभावों के विषय में भी विचार करना चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी तंत्र की नौ प्रक्रियाओं (nine earth system processes ) की पहचान की गई है, जिनके अंतर्गत ‘अपरिवर्तनीय और अचानक होने वाले पर्यावरण परिवर्तनों' के खतरे से परे  सुरक्षित क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। 
  • इनमें से निम्नलिखित चार सीमाओं को अब पार कर लिया गया हैं- जलवायु परिवर्तन, जैवमंडलीय अखंडता का क्षरण (loss of biosphere integrity), भूमि प्रणाली में परिवर्तन (land system change) तथा फास्फोरस और नाइट्रोजन चक्र जैसे बदलते जैवरासायनिक चक्र (biogeochemical cycles)।
  • इसका मतलब यह है कि मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के कुछ बेहद नाज़ुक संतुलनों में बदलाव हुआ है। इन परिणामों को मौसम के प्रारूप में होने वाले परिवर्तनों, वनस्पति और जीव दोनों के त्वरित विलुप्तीकरण और ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करने वाले कारकों के रूप में देखा जा सकता है।
  • स्पष्ट है कि इस संबंध में एक व्यापक मूल्यांकन प्रणाली की आवश्यकता है जो आर्थिक गतिविधियों के इन अवांछनीय दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए आगे की कार्यनीति तैयार कर सके।
  • अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े योगदानकर्ता के रूप में व्यापार को इसके प्रभावों और निर्भरताओं के सटीक मूल्यांकन पर विचार करना होगा क्योंकि इसका पूंजीगत संपत्ति और निवेश पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। 
  • यदि प्राकृतिक पूंजी का उचित तरीके से मूल्यांकन किया जाए तो इसका बहुत लाभ होगा क्योंकि इसके अंतर्गत संसाधनों को बेहतर तरीके से अनुकूलित करने की क्षमता विद्यमान होती है जिसके बलबूते आर्थिक विकास और उन्नति के शुद्ध लाभों को दोगुना किया जा सकता है।
  • अक्सर आर्थिक लाभों के सामने प्राकृतिक पूंजी की अनदेखी की जाती है। प्राय: इसके कारण उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावों के विषय में कोई अवलोकन नहीं किया जाता है।
  • प्राकृतिक पूंजी का मूल्यांकन करने के लिये जहाँ एक ओर आंतरिक पक्षों को आकार देना होगा, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक पारिस्थितिक (natural ecosystems) तंत्र को संभव बनाने के लिये असंख्य आर्थिक एवं पारिस्थितिक उत्पादों और सेवाओं को भी ध्यान में रखना होगा। 

पर्यावरण जोखिमों का शमन

  • वस्तुतः प्राकृतिक पूंजीगत जोखिम उन जोखिमों में से एक है, जिनका सामना किसी संगठन को करना पड़ता है।
  • प्राकृतिक पूंजी मूल्यांकन (Natural Capital Assessment)  इस जोखिम को एकीकृत कर जोखिम प्रबंधन समिति के विचार-विमर्शों, कानूनी और प्रतिष्ठात्मक जोखिम ढाँचे के निर्माण के रूप में एकीकृत करने में मदद कर सकता है।
  • इतना ही नहीं, मूल्य श्रृंखला के साथ जुड़े इसके प्रभावों और निर्भरता के संबंध में इनकी भेद्यता के आधार पर सभी परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन भी किया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त, कंपनियों द्वारा प्राकृतिक आपदाओं, वायु प्रदूषण, संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के परीक्षण के संबंध में भी विचार किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक पूंजी के संबंध में विचार-विमर्श किये जाने से अवश्य ही इस विषय में अधिक से अधिक नए-नए विचारों और कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के अवसरों को सृजित करने में सहायता मिलेगी।
  • उदाहरण के लिये, कैलिफोर्निया की एक फैशन कंपनी ने चार साल के सूखे के दौरान पानी की कमी संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये एक अनूठा तरीका खोज निकाला।
  • इस कंपनी ने एक जल रहित ओज़ोन तकनीक (Waterless Ozone Technology) विकसित की। इस तकनीक के बलबूते यह कंपनी न केवल अपने पानी के उपयोग को कम करने में सफल हो सकी बल्कि इसके पानी का बिल भी 50% तक कम हो गया।

निष्कर्ष

ध्यातव्य है कि माल और सेवाओं के आर्थिक मूल्य के विपरीत, प्राकृतिक संपत्ति की प्रकृति अमूर्त एवं अदृश्य होती है। यही कारण है कि इसका आर्थिक रूप से मूल्यांकन कर पाना आसान नहीं होता है। यदि इस संदर्भ में गंभीरता से विचार किया जाए तो प्राकृतिक पूंजी का निर्माण करने के लिये एक मज़बूत नीति के अनुपालन की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, नेचुरल कैपिटल कोलीशन के नेचुरल कैपिटल प्रोटोकॉल (Natural Capital Coalition’s Natural Capital Protocol) जैसी मूल्यांकन संबंधी रूपरेखाओं को भी अपनाया जा सकता है। वस्तुतः भारत में एक सतत् भविष्य के निर्माण के लिये प्राकृतिक पूंजी मूल्यांकन (Natural Capital Assessment) के एकीकरण तथा देश की आर्थिक प्रणाली में इसका सही रूप में मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।

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