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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन को उसी की चाल से घेरने की तैयारी कर रहा भारत

  • 26 Jul 2017
  • 15 min read

संदर्भ 
चीन के साथ चल रहा भारत का हालिया तनाव वास्तव में कुछ अधिक लंबा खिंच गया है अन्यथा 1962 के बाद से बहुत कम ही ऐसे मौके आए, जब दोनों देशों के बीच सीमा के किसी भी हिस्से पर सैनिकों का जमावड़ा रहा हो। इस घटना से इतर भी देखें तो इधर कुछ वर्षों से चीन के भारत विरोध में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है और वह भारत को चारों ओर से घेरने का प्रयास करता प्रतीत होता है। ऐसे में भारत के लिये यह ज़रूरी हो जाता है कि वह चीन को उसी की भाषा में जवाब दे। 

अपने पड़ोसी देशों में भारत को छोड़कर किसी अन्य देश के साथ चीन का इतना बड़ा सीमा विवाद नहीं है कि वह उसकी चिंता करे, जबकि पाकिस्तान भारत के साथ लंबे समय से आतंकवाद के माध्यम से छद्म युद्ध जैसा छेड़े हुए है। कहने का तात्पर्य यह कि भारत को दो मोर्चों पर पूरी-पूरी चौकसी बरतनी पड़ती है। ऐसे में भारत को अपने सुरक्षा उपायों के अलावा भी बहुत कुछ करने की ज़रुरत है और वह कर भी रहा है। चीन के पड़ोसी देशों तथा उन अन्य देशों से भारत के कूटनीतिक संबंध मज़बूत हो रहे हैं, जिनका किसी-न-किसी कारण को लेकर चीन से विवाद चल रहा है।  

आइये, प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह जानने-समझने का प्रयास करते हैं कि जिस प्रकार पाकिस्तान के मार्फत चीन भारत को घेर रहा है, ठीक उसी प्रकार भारत किस प्रकार चीन के पड़ोस (मंगोलिया) में अपने पैर जमाकर चीन को उसी की भाषा में जवाब दे सकता है और इसके लिये भारत को क्या-क्या जतन करने होंगे?

भारत के साथ अपनी भू-सीमा विवाद के अलावा दक्षिण चीन सागर में अपने कई पड़ोसी देशों के साथ चीन का समुद्री सीमा विवाद चल रहा है और इन सभी से भारत के अच्छे संबंध हैं। इसके अलावा चीन के अपने पड़ोसी भू-आबद्ध देश मंगोलिया से भी कुछ मुद्दों को लेकर विवाद चलता रहता है, जिसका लाभ उठाने का प्रयास भारत कर रहा है। हाल ही में मंगोलिया में चीन के घोर आलोचक खलत्मा बत्तुल्गा राष्ट्रपति चुने गए हैं और भारत ने उनको भारत आने का निमंत्रण भी दे दिया है। चीन और मंगोलिया के संबंधों में इधर काफी बदलाव आया है, जिसका सामरिक लाभ भारत उठा सकता है और इसका पर्याप्त प्रभाव इस क्षेत्र की लगातार बदलती सुरक्षा संरचना पर भी पड़ेगा। 

1. हाल ही संपन्न हुए भारत-मंगोलिया संयुक्त सैन्याभ्यास का क्या उद्देश्य था और उससे क्या लाभ प्राप्त हुए? भारत उस क्षेत्र में कैसी आर्थिक गतिविधियाँ चला रहा है? 

भारत और मंगोलिया के द्विपक्षीय संबंध इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और भारत द्वारा उसे संतुलित करने के प्रयासों की बीच बढ़ने और मज़बूत होना शुरू हुए हैं। मंगोलिया में राष्ट्रपति पद पर खलत्मा बत्तुल्गा के चुने जाने से भारत के पास इन संबंधों को और मज़बूत करने का सुनहराअवसर है, जो अब छोटे और मध्यम शक्तियों के समर्थन के लिये चीन-भारत भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के व्यापक परिदृश्य का हिस्सा है। भारत और मंगोलिया के संबंधों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2015 में वहाँ की यात्रा के बाद तेज़ी से सुधार हुआ। इस दौरे में भारत ने मंगोलिया को एक बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन दी। इसके अलावा दोनों के बीच सुरक्षा के क्षेत्र में भी अच्छा सहयोग है, वर्ष 2009 में हुआ असैन्य परमाणु समझौता इसका एक प्रमाण है। रक्षा सहयोग के लिये बने भारत-मंगोलिया संयुक्त कार्य दल की प्रति वर्ष बैठक होती है और मंगोलियाई सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण देने में भारत सहयोग करता है। दोनों देशों के बीच नोमैडिक एलीफैंट (Nomadic Elephant) नामक वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास भी होता है। मंगोलिया में होने वाले बहुपक्षीय अभ्यास खान क्वेस्ट (Khan Quest) में भारत नियमित भागीदार है। 

एशिया में चीन के खिलाफ रणनीतिक संतुलन बनाना भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक हिस्सा है। चीन के बढ़ते दबाव की वज़ह से मंगोलिया ने उसकी काट के लिये भारत की ओर देखना शुरू किया है। भारत के साथ मज़बूत संबंधों से मंगोलिया को चीन का सामना करने के कई विकल्प मिल जाते हैं, जो अकेले रहते हुए उसके लिये संभव नहीं होते।  2016 में मंगोलिया की नाकेबंदी के बाद चीन ने भारत द्वारा मंगोलिया को दी गई एक बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन का संज्ञान लिया। 

चीन का भारत विरोधी रुख: चीन ने इसे भारत द्वारा मंगोलिया को दी गई ‘रिश्वत’ कहा, जबकि चीनी मीडिया ने भारत से मदद के लिये मंगोलिया के अनुरोध को राजनीतिक जल्दबाज़ी बताया था। वहाँ के मीडिया में यह कहा गया कि मंगोलिया के साथ भारत के सहयोग के प्रति चीन इतना संवेदनशील नहीं है। यदि यह सहयोग चीन का विरोध करने के लिये किया जा रहा है तो चीन इसे सहन नहीं करेगा। मंगोलिया की अर्थव्यवस्था 90% चीन पर निर्भर है, ऐसे में वहाँ की अर्थव्यवस्था पर चीन का प्रभाव हाल-फिलहाल में भारत द्वारा समाप्त किया जाना असंभव है। इसलिये एक बिलियन डॉलर की घूस देकर भी भारत के प्रयास बेकार जाएंगे। तब चीन ने मंगोलिया को धमकाते हुए कहा था, 'भारत से मदद मांगकर चीन-मंगोलिया के संबंध और जटिल हो सकते हैं और हमारा मानना है कि आर्थिक परेशानियों से जूझता देश इससे सबक सीखेगा।’

हालाँकि एक-दूसरे को उत्तेजित करने की मंशा किसी की भी नहीं है, लेकिन भारत-मंगोलिया सहयोग ने चीन को यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि जिस प्रकार वह भारत के अँगने (पाकिस्तान) में बैठकर कठपुतलियों का खेल रच रहा है, उसी प्रकार भारत भी उसके अँगने (मंगोलिया) में बैठकर वैसा ही खेल दिखा सकता है। 

2. नेपाल द्वारा भारत से दूरी बना लेने और चीन के निकट जाने से क्या चीन को भूटान और मंगोलिया जैसे अन्य छोटे देशों पर दबाव बनाने के लिये प्रोत्साहन मिला है?

ऐईइतिहासिक कारणों में देखा जाए तो मंगोलों को रूस से कहीं अधिक खतरा और भय चीनियों से लगता है। इसलिये, उसे इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि नेपाल या भूटान क्या कर रहे हैं क्या नहीं| मंगोलों के लिये अपने आत्मसम्मान और सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि है। यदि मंगोलिया के नए राष्ट्रपति अपनी चीन-विरोधी नीति और बयानबाज़ी पर कायम रहे तो चीन हर संभव उस विकल्प का इस्तेमाल करेगा, जो उसके पिटारे में मौजूद है ताकि मंगोलिया उस रास्ते पर आगे न बढ़ सके जो उसे चीन से बहुत दूर ले जा सकता है। 

3. क्या चीन की नज़र मंगोलियाई क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की है, जैसा उसने अपने अन्य छोटे से पड़ोसी देश भूटान के साथ किया है (वर्तमान में जारी चीन-भूटान-भारत सीमा विवाद के संदर्भ में)?

अपने दक्षिणी पड़ोसी यानी चीन को लेकर मंगोलिया कभी भी आश्वस्त नहीं रहा और उसे यह संदेह बराबर बना रहता है कि चीन एक दिन फिर से मंगोलियाई क्षेत्र पर अधिकार कर लेगा। चीन यह भूला नहीं है कि 1911 तक मंगोलिया पर क्विंग राजवंश ने शासन किया था। जब भी कोई अवसर मिला है चीन ने मंगोलिया पर अपनी शक्ति, दबदबे और प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है। विगत दो दशकों में चीन ने आर्थिक महाशक्ति होने के कारण यह दबदबा बनाए रखा और मंगोलिया खनन क्षेत्र और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वहाँ भारी निवेश किया।  

लेकिन, अब चीन के लिये चिंता का एक बड़ा कारण है मंगोलिया के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति खलत्मा बत्तुल्गा, जो स्व-घोषित रूप से चीन समर्थक (Russophile) माने जाते हैं और उनका रूस के प्रति झुकाव किसी से छिपा नहीं है।  उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर मंगोलिया की व्यापारिक निर्भरता पर चिंता जताई थी, यह भी चीन के लिये परेशानी का कारण हो सकता है। संभावना है कि मंगोलिया के नए राष्ट्रपति चीनी निवेश पर प्रतिबंध लगाकर खनन क्षेत्र को अधिक से अधिक सरकारी नियंत्रण में रखने का प्रयास करेंगे। तीन वर्ष पूर्व दिये गए एक साक्षात्कार में खलत्मा बत्तुल्गा ने कहा भी था कि जब भी उनके देश में संसाधनों की कमी या समाप्ति होगी, तब निश्चित रूप से मंगोलियाई और चीनियों के बीच संघर्ष होगा। वैसे भी शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से ही चीन की चिंता बढ़ाते हुए मंगोलिया ने ‘तीसरे पड़ोसी की नीति’ पर अमल करना शुरू कर दिया है। इसके तहत व्यापारिक भागीदारों में विविधता लाने के लिये भारत के अलावा अमेरिका, जापान, जर्मनी से सहयोग बढ़ाया गया है।

4. क्या मंगोलिया पर चीन अनावश्यक दबाव डाल रहा है?

इसे आप मज़बूरी कहें या आवश्यकता, चीन-मंगोल व्यापार संबंधों में चीनी वर्चस्व बराबर बना रहा है। जब-जब ऐसा प्रतीत होता है कि चीन के हितों के खिलाफ जाकर मंगोलिया कुछ करने का प्रयास कर रहा है, तब-तब मंगोलिया को सज़ा देने के लिये चीन अपने आर्थिक दबाव और भौगोलिक निकटता का प्रयोग करता है। चीन का दलाई लामा विरोध जगज़ाहिर है, जब दलाई लामा मंगोलिया यात्रा पर गए थे तो उसके बाद चीन ने मंगोलिया की नाकेबंदी कर दी थी, जिससे वहाँ आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति ठप पड़ गई थी। चीन का उद्देश्य मंगोलिया को अपनी ताकत का एहसास कराना था और मंगोलिया को घुटनों के बल झुकाकर उसने ऐसा कर भी दिखाया। उस समय आर्थिक आवश्यकताओं पर धार्मिक स्वतंत्रता को वरीयता देने की मंगोलों ने भारी आर्थिक कीमत चुकाई थी।

लेकिन अब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति चाहते हैं कि मंगोलिया विविधता लाते हुए चीन पर अपनी निर्भरता उत्तरोत्तर कम करे।  भरपूर प्राकृतिक संसाधन होने के बावजूद हालिया वर्षों में अर्थव्यवस्था की बदइंतज़ामी की वज़ह से इस छोटे से भू-आबद्ध पहाड़ी देश में अपस्फीति (Deflation)  की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिससे उबरने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 5.5 बिलियन डॉलर का बेल आउट पैकेज दिया।

5. भारत और मंगोलिया सहयोग के  सरोकार क्या हैं?

भारत व मंगोलिया सामूहिक प्रयासों के आधार पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व संतुलित तथा समावेशी सुरक्षा ढाँचा चाहते हैं, जिसमें सभी देशों के वैध हितों तथा नियमों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धान्तों का सम्मान किया जाएगा। द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करने के लिये दोनों देशो में वृहद भागीदारी को रणनीतिक साझेदारी में बदलने और दोस्ताना रिश्तों व सहयोग की संधि के नवीकरण पर सहमति बनी है। मंगोलिया चाहता है कि रूस और चीन से परे, वह अपनी साझीदारियों का दायरा बढ़ाए।

मंगोलिया और भारत के बीच राजनयिक संबंध 24 दिसंबर 1955 को कायम हुए थे। सोवियत संघ के बाहर भारत ऐसा पहला देश था, जिसने मंगोलिया की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। मंगोलिया ने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत का समर्थन किया था। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी सदस्यता के दावे का भी समर्थन करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस देश की यात्रा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हुए। भारत सरकार हर साल 40 मंगोलियाई नागरिकों को भारत में उच्च शिक्षा के लिये स्कॉलरशिप देती है।

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