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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

2050 तक जल संकट से त्रस्त हो जाएगा भारत

  • 26 Jul 2017
  • 9 min read

संदर्भ
बदलते समय एवं परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि जिस गति से हम जल का व्यय कर रहे है उस गति से भविष्य में जल जुए का विषय बन जाएगा| यदि हम इस प्रकार से बेतहाशा जल का इस्तेमाल करते रहे तो वह दिन दूर नहीं  जब हम अपने एवं अपनी भावी पीढ़ी के साथ-साथ इस संपूर्ण ग्रह के लिये जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल देंगे| स्पष्ट रूप से जल की कमी की इस गंभीर समस्या से निपटने के लिये आवश्यक है कि हम अभी से इसके प्रति सचेत हो जाए और जल संरक्षण हेतु एक टिकाऊ एवं एक स्मार्ट प्रबंधन तकनीक के सटीक क्रियान्वयन की दिशा में कार्य करना आरंभ कर दें| 

परिदृश्य 1:

  • गौरतलब है कि वर्ष 2050 तक भारत की कुल जल मांग में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की संभावना है| 
  • औद्योगिक एवं घरेलू क्षेत्रों में अतिरिक्त मांग का हिस्सा तक़रीबन 85 प्रतिशत तक होगा| 
  • इसके अतिरिक्त भूजल का अधिक से अधिक शोषण होने, पर्याप्त मात्रा में जल शुद्धि न हो पाने और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण भूमि की जलग्रहण क्षमता में कमी आने के कारण भविष्य में जल संतुलन में अनिश्चित परिवर्तन होने की संभावनाएँ हैं| 

परिदृश्य 2:

  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक तक़रीबन 1.7 बिलियन लोगों के द्वारा अपने दैनिक जीवन में जल प्रबंधन तकनीकों को एकीकृत करने की संभावना है|
  • इस आशावादिता के पीछे सबसे अहम् कारण यह है कि यदि वैश्विक उद्योगों और सरकारों द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी जल स्थिरता लक्ष्यों को एक प्रकार के वसीयतनामे के रूप में स्वीकृत किया जाता है तो यह कहा जा सकता है कि अंततः दुनिया ने अन्य पदार्थों की भाँति जल को भी एक संसाधन के रूप में पहचानना शुरू कर दिया है| 
  • ऐसे कईं उदाहरण हैं जिनमें कंपनियों के द्वारा मात्र जल संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दूसरे उपायों पर गौर किया गया है| ऐसा ही एक उदाहरण है, कोका कोला और पेप्सीको कंपनी का| इन दोनों कंपनियों के द्वारा जल के पुन:भरण और संरक्षण संबंधी परियोजनाओं के माध्यम से कंपनी के प्रयोग के लिये आवश्यक जल की आपूर्ति का काम लिया जाता हैं|
  • ऐसा ही एक अन्य उदाहरण है आईकिया (IKEA) कंपनी का है| इस कंपनी ने वर्ष 2015 में 100 प्रतिशत टिकाऊ कपास के उपयोग के अपने लक्ष्य को साधने में सफलता हासिल कर ली है| उल्लेखनीय है कि इस कपास को उगाने में कम से कम पानी और रसायनों का उपयोग किया गया है| 

कुशल पानी का उपयोग (कृषि क्षेत्र में)

  • जैसा की अनुमानित है कि वर्ष 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि क्षेत्र ही बना रहेगा| हालाँकि, इस समस्त परिदृश में व्यवसाय को बदलना हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिये| बल्कि जो स्पष्ट रूप से बदला जाना चाहिये वह है इस क्षेत्र विशेष में किये जाने वाले जल के अत्यधिक उपयोग को|
  • विदित हो कि इस संबंध में पहले से ही भारत सरकार ने कुछ सार्थक एवं उपयोगी कदम उठाये है| जिनका प्रभाव अब स्पष्ट भी होने लगा है| उदाहरण के लिये- 'प्रति बूंद-अधिक फसल' परियोजना इत्यादि|

कुशल पानी का उपयोग (औद्योगिक क्षेत्र में)

  • कृषि की ही भाँति औद्योगिक क्षेत्र में प्रयोग होने वाले जल के विषय में निर्णय उनके शेयरधारकों और ग्राहकों द्वारा प्रयोग की जाने वाली पर्यावरण स्थिरता संबंधी क्रियाओं के आधार पर किया जाएगा, जो कि कोर बिजनेस परिचालनों में एकीकृत होंगी|
  • इसके परिणामस्वरूप, औद्योगिक जगत ताजे पानी पर अपनी निर्भरता को पूरी तरह से कम कर देंगे|
  • साथ ही उद्योगों में अपशिष्ट जल का उपचार और विनिर्माण उत्पादों में पुनर्नवीनीकरण के माध्यम से जल के उपयोग का प्रचलन भी बढ़ जाएगा|
  • जिसके चलते भविष्य में औद्योगिक निवेश को उपरोक्त सुविधाओं के क्षेत्र में भी संलग्न किया जा सकता है ताकि अपशिष्ट जल का उपचार कर उसे पुन” इस्तेमाल में लाया जा सकें| 

साझा लक्ष्य

  • उपरोक्त चर्चा से यह बात तो स्पष्ट होती है कि प्रौद्योगिकी का घरेलू जल उपभोग पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है|
  • भविष्य में ‘स्मार्ट प्रौद्योगिकी’ के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप लीक होने वाली टोंटियों अर्थात वैसी टोंटियाँ या वाल्व जिन्हें बंद कर देने के बाद भी उनसे पानी रिसता रहता है (Leaky taps) को सीधे स्मार्ट मीटर के माध्यम से बंद कर के पानी की सप्लाई को जब चाहे बंद किया एवं खोला जा सकता है|
  • इसी प्रकार की अन्य कार्यविधियों को भी प्रौद्योगिकी से संबद्ध करके हम अपनी दैनिक कार्यविधियों में परिवर्तन कर सकते है| उदाहरण के तौर पर, बिना फ्लश वाले शौचालयों के इस्तेमाल द्वारा, सौर ऊर्जा संचालित फ्लशिंग सिस्टम, गंदगी-संवेदक वार्निंग सिस्टम जैसी व्यवस्थाओं को संचालित करके हम अपने घरों, सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यालयों आदि को गंदगी मुक्त रख सकते है| 

भविष्यगामी प्रभाव

  • गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया में जल को एक व्यापारिक वस्तु के रूप में घोषित किया जा चुका है| यह और बात है कि देश, स्थान, स्थिति, कीमत इत्यादि के आधार पर जल की कीमत में भले ही फर्क क्यों न हो, परंतु इन सभी में एक बात समान है वह है कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र में इसके इस्तेमाल की| अत: ऐसी स्थिति में यह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि संपूर्ण विश्व इस दिशा में कोई उपयोगी एवं सतत कदम उठाए|  
  • वर्तमान के हालातों से ज्ञात होता है कि भविष्य में यदि विश्व के सभी देशों के द्वारा जल को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा घोषित कर दिया जाता है तो कोई इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिये| जैसा कि इज़रायल के मामले में हुआ है|
  • इज़राइल ने देश में जल को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के रूप में अंकित किया है| अर्थात् भविष्य में यदि कोई राष्ट्र उसकी जल संपदा को किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाता है तो वह उस राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर सकता है| स्पष्ट रूप से इज़राइल का उदाहरण जल की महत्ता की ओर ही प्रकाश डालता है|

निष्कर्ष
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य में पानी की कमी का मुद्दा संघर्ष का मुद्दा भी बन सकता है| अत: इस परिस्थिति से बचने के लिये आवश्यक है कि इस विषय में अभी से उपाय किये जाए| एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक विश्व की लगभग 50 फीसदी आबादी अत्यधिक जल की कमी का सामना कर रही होंगी| अत: जल के उपभोग के संबंध में पर्याप्त सावधानी बरतते हुए इसके संरक्षण की दिशा में प्रयास किये जाने चाहिये|

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