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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ईरान संबंध: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

  • 22 Jun 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 17/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Iran foreign minister’s visit reaffirms resolve of two countries to strengthen ties” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि किस प्रकार भारत-ईरान संबंध की चुनौतियों को दूर कर इसकी अपार संभावनाओं का उपयोग किया जा सकता है।

संदर्भ

हाल ही में ईरान की नई सरकार की ‘एशिया-उन्मुख’ विदेश नीति का पालन करते हुए ईरानी विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया। वर्ष 2021 में नई सरकार के आने के बाद से भारत के साथ संबंधों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में यह ईरान की ओर से पहला मंत्री-स्तरीय दौरा था।

दोनों पक्षों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ और इनके समाधान पर विचार

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • भारत एवं ईरान फारसी साम्राज्य और भारतीय साम्राज्यों के युग से ही घनिष्ठ सभ्यतागत संबंध रखते हैं।
  • भारत के पड़ोस में ईरान एक महत्त्वपूर्ण देश है। वस्तुतः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता तथा विभाजन से पहले तक दोनों देश सीमा भी साझा करते थे।
  • प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित तेहरान घोषणापत्र ने ‘‘समान, बहुलवादी और सहकारी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’’ के लिये दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण की पुष्टि की थी।
  • इसने तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खतामी के ‘‘सभ्यताओं के बीच संवाद’’ के दृष्टिकोण को सहिष्णुता, बहुलवाद और विविधता के सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रतिमान के रूप में चिह्नित किया था।

रणनीतिक महत्त्व क्या है?

  • भारत के लिये:
    • अवस्थिति: ईरान फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के बीच एक रणनीतिक और महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है।
    • संपर्क: ईरान भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत को (पाकिस्तान के माध्यम से स्थल मार्ग का उपयोग करने की अनुमति के अभाव में) अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों तक संपर्क हेतु एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
    • प्राकृतिक संसाधन: इसके पास विश्व में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े भंडारों में से एक मौजूद है।
  • ईरान के लिये:
    • भारत की रणनीतिक स्थिति:
      • भारत विश्व में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है जो एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश रखता है।
      • यह ईरान को अपना तेल एक बड़े बाज़ार (अर्थात् भारत) में बेच सकने में मदद करता है, जो कि इसकी भौगोलिक अवस्थिति के निकट है और अंततः इसकी लागत को कम करता है।
    • व्यापार संबंधों में सुधार: यह ईरान को विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में निवेश करने और व्यापार संबंधों के संवर्द्धन का अवसर देता है। यह ईरान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सहारा देता है।

भारत-ईरान संबंधों में विद्यमान समस्याएँ

  • ईरान परमाणु समझौते के निरसन और फिर उस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के परिदृश्य में मई, 2019 के बाद से ईरानी तेल का आयात बंद हो गया, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
  • भारत इजरायल के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है जबकि ईरान के चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं (जहाँ दोनों देशों के 25-वर्षीय रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे हैं)।
  • ईरान समर्थित यमन के हूती (Houthi) विद्रोही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (दोनों भारत के निकट सहयोगी देश) पर ड्रोन हमलों में संलग्न हैं।
  • भारत सरकार द्वारा कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने पर ईरान की ओर से कड़े बयान दिये गए।

संबंधों की पुनर्बहाली के लिये आशावादी स्थितियाँ कौन-सी हैं?

  • अभिसरण के क्षेत्र:
    • अफगानिस्तान:
      • अगस्त 2021 में काबुल पर नियंत्रण करने के बाद से तालिबान सरकार काफी हद तक अलग-थलग पड़ी हुई है। ईरान उन कुछ देशों में से एक था जिन्होंने तालिबान के सत्तारूढ़ होने के बाद भी काबुल में अपने दूतावास बंद नहीं किये और तालिबान के साथ संचार के अपने चैनलों को खुला बनाए रखा।
      • अब भारत भी पुनः काबुल में अपना दूतावास खोलने का इच्छुक है और उसने हाल ही में तालिबान के साथ बातचीत भी शुरू की है।
      • भारत और ईरान भविष्‍य में अफगानिस्‍तान के साथ भागीदारी की साझी एवं प्रभावी नीति के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
    • पश्चिम एशिया:
      • पश्चिम एशियाई भूभाग में एक पुनर्संतुलन आकार ले रहा है जो भारत-ईरान संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु व्यापक संभावनाएँ प्रदान कर रहा हैं।
      • लंबे समय से, खाड़ी देशों (विशेष रूप से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को ईरान के साथ उन देशों की प्रतिद्वंद्विता के परिदृश्य में ‘जीरो-सम गेम’ के रूप में देखा जाता रहा है।
      • यूएई और कतर ने हाल ही में ईरान के साथ एक सार्थक संवाद की शुरुआत की है। इस वर्ष ईरान के राष्ट्रपति ने कतर और ओमान की यात्रा भी की है जो संबंध सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
      • सीरिया और इराक भी धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुदृढ़ कर रहे हैं और ईरान के प्रति सकारात्मक रुख का संकेत दे रहे हैं।
      • इजरायल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर क्षेत्रीय देशों द्वारा अनिवार्य रूप से शत्रु के बजाय एक संभावित भागीदार के रूप में इज़राइल की स्वीकृति के प्रति आशा का संचार करते हैं।
      • ये सभी घटनाक्रम भारत के अनुकूल हैं क्योंकि उसके खाड़ी देशों, ईरान और इज़राइल सभी के साथ घनिष्ठ और अच्छे संबंध हैं।
      • इससे भारत को इस क्षेत्र में अन्य मित्रों/भागीदारों को खोने के भय के बिना ईरान के साथ अपने सहयोग को व्यापक रूप से आगे बढ़ाने का शानदार अवसर प्राप्त हो रहा है।
      • वस्तुतः भविष्य में भारत इस भूभाग में एक आदर्श वार्ताकार के रूप में उभर सकने की संभावना रखता है, क्योंकि इसे सभी हितधारकों का भरोसा हासिल है।

भारत-ईरान संबंधों के पुनर्गठन के लाभ

  • द्विपक्षीय संभावनाओं के द्वार खोलना: सुदृढ़ द्विपक्षीय संबंध भारत और ईरान के बीच सहयोग की क्षमता का पूरी तरह से दोहन कर सकने के द्वार खोल सकते हैं, जो अंततः क्षेत्रीय और वैश्विक कल्याण की ओर ले जाएगा।
  • कच्चे तेल की सस्ती आपूर्ति: भारत ईरान से तेल आयात को फिर से शुरू करने पर विचार कर सकता है। भारत द्वारा नीति परिवर्तन और ईरानी तेल आयात की पुनर्बहाली संभावित रूप से अन्य देशों को भी इस राह पर आगे बढ़ने और बाज़ार में अतिरिक्त तेल की उपलब्धता के लिये (जो अंततः कच्चे तेल मूल्यों को नीचे ला सकता है) प्रोत्साहित कर सकती है।
  • यूरेशिया के साथ संपर्क निर्माण: इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) इस सदी की शुरुआत में लॉन्च की गई एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट के माध्यम से जोड़ना है ताकि मालों के पारगमन समय में पर्याप्त कमी लाई जा सके।
    • यद्यपि इसका कुछ भाग कार्यान्वित किया गया है, लेकिन ईरान पर प्रतिबंधों के कारण इसकी पूरी क्षमता साकार नहीं हो सकी है। भारत और ईरान परिणामी व्यापार के लाभों को प्राप्त करने हेतु INSTC को आवश्यक प्रोत्साहन देने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: ईरान-ओमान-भारत गैस पाइपलाइन (IOI) भी एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो लंबे समय से अटकी हुई है। आशाजनक है कि नये ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी की हालिया यात्रा के दौरान ईरान और ओमान ने अपनी समुद्री सीमाओं के साथ दो गैस पाइपलाइन और एक तेल क्षेत्र विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यदि यह परियोजना आगे बढ़ती है तो भविष्य में पाइपलाइन को भारत तक भी विस्तारित किया जा सकता है। यह विफल रहे ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन का एक विकल्प प्रदान करते हुए भारत को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की सुविधा प्रदान करेगी।

आगे की राह

  • दोनों देशों को अभिसरण के उन क्षेत्रों की ओर देखने की आवश्यकता है जहाँ दोनों देश एक-दूसरे के साझा हितों की परस्पर समझ रखते हैं और इसकी प्राप्ति के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • भारत और ईरान परस्पर सहयोग से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। भारत द्वारा अपनाई जा रही मुखर कूटनीति एक ताज़ा और स्वागतयोग्य बदलाव है जहाँ अपने पड़ोसी एवं मित्र देशों के साथ खड़े रहने पर बल दिया गया है और अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति को सर्वोपरि माना गया है।
    • यदि भारत ईरान के साथ अपने संबंधों की दिशा में इसी दृष्टिकोण का विस्तार कर सके तो यह इन दो महान राष्ट्रों और सभ्यताओं के बीच सहयोग के लिये एक व्यापक संभावना का द्वार खोल सकता है। संबंध पुनर्बहाली के लिये यही उपयुक्त समय भी है।

अभ्यास प्रश्न: भारत-ईरान संबंधों में कौन-सी चुनौतियाँ निहित हैं और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है? उदाहरण से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।

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