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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकों पर बढ़ता बोझ और चरमराती व्यवस्था

  • 28 Feb 2018
  • 22 min read

संदर्भ

हाल ही में हीरा व्यापारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के फायरस्टार इंटरनेशनल पब्लिक लि. तथा गीतांजलि जेम्स जैसे प्रतिष्ठित समूहों पर मुंबई में पंजाब नेशनल बैंक की ब्रैडी हाउस शाखा में लगभग 11,500 करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा है। अभी तक देश इस खबर से उबरा भी नहीं था कि इसके बाद कानपुर के रोटोमैक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के विक्रम कोठारी द्वारा बैंकों के कंसोर्टियम से लिये गए ऋण और ब्याज के 3695 करोड़ रुपए का एक और घोटाला सामने आ गया। इस कंसोर्टियम में शामिल बैंक ऑफ़ बडौदा द्वारा अपने 616.19 करोड़ रुपए की वसूली के लिये ग्रुप को डिफाल्टर घोषित कर दिया गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब ऐसी कोई घटना चर्चा का विषय बनी हो, इससे पहले भी किंगफिशर एयरलाइंस के प्रवर्तक विजय माल्या एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंक समूह से 6000 करोड़ रुपए से अधिक का क़र्ज़ लेकर लंदन में डेरा जमाए हुए है।

मामला क्या है?

  • पीएनबी के अलावा इन बैंकों में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक शामिल हैं। इन बैकों ने पीएनबी द्वारा जारी किये गए एलओयू के आधार पर क्रेडिट की पेशकश की थी।
  • नीरव मोदी से जुड़ी तीन फर्मों--डायमंड्स आर अस, सोलर एक्सपोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स ने बैंक से संपर्क कर बायर्स क्रेडिट की मांग की, ताकि वे अपने विदेश के कारोबारियों को भुगतान कर सकें। 
  • इन फर्मों को बैंक की मिलीभगत से बायर्स क्रेडिट सुविधा प्रदान की गई, जबकि उनका कोई पुराना बेहतर क्रेडिट रिकॉर्ड नहीं था। इसके बाद हॉन्गकॉन्ग की बैंक शाखाओं में धन का स्थानांतरण किया गया।
  • इन एलओयू के आधार पर कुछ भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने नीरव मोदी को फॉरेक्स क्रेडिट दिया था, लेकिन इन एलओयू की एंट्री पीएनबी के कोर बैंकिंग सिस्टम में नहीं की गई थी। 
  • ये एलओयू पीएनबी ने मॉरीशस, बहरीन, हॉन्गकॉन्ग, एंटवर्प और फ्रैंकफर्ट में भारतीय बैंकों को जारी किये थे। इनके आधार पर उपरोक्त बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं से हज़ारों करोड़ रुपए के कर्ज़ उठा लिये गए।

नोस्ट्रो एकाउंट

  • यह रकम एक विदेशी बैंक के साथ पंजाब नेशनल बैंक के खाते में दी गई थी जिसे नोस्ट्रो एकाउंट कहते हैं।
  • नोस्ट्रो एकाउंट सामान्य तौर पर किसी घरेलू बैंक द्वारा विदेशी बैंक में खोले गए खातों को कहते हैं।  
  • इन खातों का इस्तेमाल विदेशी पार्टियों को आयात के बदले भुगतान करने में किया जाता है।
  • पूर्व में भी नोस्ट्रो खातों और उनके दुरुपयोग को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने बैंकों को इन खातों पर कड़ी निगरानी रखने और इनका निपटारा करने की सलाह दी थी। 
  • लेकिन वह यह सुनिश्चित नहीं करा पाया कि बैंक उसकी सलाह मानकर इस संबंध में मज़बूत प्रणाली विकसित करें।

एलओयू क्या है?

  • लेटर ऑफ अंडरटेकिंग दरअसल बैंक की गारंटी होते है। इसे विदेशी बैंकों से पैसा लेने के लिये जारी किया जाता है।
  • बैंक ग्राहक को एलओयू (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) जारी करने के दौरान इस बात पर सहमति व्यक्त करता है कि वह ग्राहक को दिये गए ऋण पर मूल राशि एवं ब्याज का भुगतान बिना किसी शर्त के करेगा।
  • एलओयू एक तरह की गारंटी होती है, जिसके आधार पर अन्य बैंक खातेदार को पैसा उपलब्ध करा देते हैं।
  • एलओयू किसी अंतर्राष्ट्रीय बैंक या किसी भारतीय बैंक की अंतर्राष्ट्रीय शाखा की ओर से जारी किया जाता है।
  • इसके आधार पर बैंक, कंपनियों को 90 से 180 दिनों तक के शॉर्ट टर्म लोन उपलब्ध कराते हैं। इसी के आधार पर कोई भी कंपनी दुनिया के किसी भी हिस्से में राशि को निकाल सकती है।  
  • इसका इस्तेमाल ज़्यादातर आयात करने वाली कंपनियाँ विदेशों में भुगतान के लिये करती हैं।
  • एलओयू किसी भी कंपनी को लेटर ऑफ कम्फर्ट के आधार पर दिया जाता है, जो कंपनी के स्थानीय बैंक की ओर से जारी किया जाता है।
  • यदि खातेदार को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है तो एलओयू उपलब्ध कराने वाले बैंक की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह संबंधित बैंक को बकाए का भुगतान करे।
  • पीएनबी की उपरोक्त मुंबई शाखा के कुछ उच्चाधिकारियों ने स्विफ्ट कोड मैसेजिंग सिस्टम का दुरुपयोग किया। बैंक इसी सिस्टम से विदेशी लेन-देन के लिये एलओयू के ज़रिये दी गई गारंटी को अधिप्रमाणित (Authenticate) करते हैं।

एलओसी क्या है?

  • एलओसी एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जो किसी एक व्यक्ति की ओर से दिया जाता है।
  • सामान्यत: यह उधार लेने यानी एलओसी देने वाले से संबंधित होता है जो कि उधार चुकाने के लिये उधार लेने वाले की मज़बूत वित्तीय स्थिति का आश्वासन देता है।
  • लेटर ऑफ क्रेडिट यानी एलओसी एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जो कि थर्ड पार्टी की ओर से जारी किया जाता है, जो उस समय वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान की गारंटी देता है जब विक्रेता स्वीकार्य दस्तावेज़ प्रदान करता है।
  • यह दस्तावेज़ आमतौर पर बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानों की ओर से जारी किया जाता है, हालाँकि विशेष परिस्थितियों में कुछ भरोसेमंद वित्तीय सेवा कंपनियाँ जैसे बीमा कंपनियाँ अथवा म्युचुअल फंड कंपनियाँ भी इसे जारी कर सकती हैं।

सीबीएस और स्विफ्ट क्या है?

  • पंजाब नेशनल बैंक में हुए इस घोटाले के पीछे सबसे बड़ी वजह भारत के सीबीएस सिस्टम का स्विफ्ट सिस्टम के साथ इंटरलिंक न होना है। अब सवाल यह बनता है कि यह सीबीएस और स्विफ्ट (SWIFT) क्या है? यह किस प्रकार काम करती है?
  • साथ ही किस प्रकार से यह इस घोटाले के लिये ज़िम्मेदार है? इन सभी प्रश्नों के संदर्भ में हमने इस लेख में संक्षिप्त में चर्चा की है।
  • जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नीरव मोदी द्वारा पीएनबी से किया गया पैसों का सारा लेन-देन एलओयू के माध्यम से हुआ। एलओयू क्या है और किस प्रकार कार्य करता है? इस विषय में ऊपर पढ़ चुके है। 

सीबीएस क्या होता है?

  • सीबीएस उस कोर बैंकिंग सिस्टम से संबंधित होता है, जहाँ सभी बैंकिंग शाखाएँ आपस में एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। यह ग्राहक को अपनी स्थानीय शाखा के अलावा दुनिया में कहीं भी किसी भी शाखा से अपना खाता संचालित करने और लेन-देन करने में सक्षम बनाता हैं।
  • इस प्रणाली के अंतर्गत बैंक का कोई भी ग्राहक सिर्फ उस स्थानीय शाखा विशेष का ग्राहक नहीं रह जाता है बल्कि वह उस बैंक का ग्राहक बन जाता है।
  • इसके अंतर्गत खाते से संबंधित सभी जानकारियों को रियल टाइम में अपडेट किया जाता है।
  • स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति में सबसे पहला विचार यह आता है कि यदि बैंक के पास पहले से ऐसी सशक्त व्यवस्था मौजूद थी तो यह कैसे संभव हुआ कि नीरव मोदी द्वारा किया गया घोटाला बैंक अधिकारियों की नज़र में नहीं आ सका?
  • ऐसा न होने का कारण यह है कि पीएनबी के कुछ अधिकारियों द्वारा इस लेन-देन को सीबीएस के तहत दर्ज़ ही नहीं किया गया। अब प्रश्न उठता है कि यह स्विफ्ट (SWIFT) क्या बला है?

स्विफ्ट क्या है?

  • स्विफ्ट (SWIFT) कोड मैसेजिंग सिस्टम स्विफ्ट (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication-SWIFT) अर्थात् सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन एक इंटर-बैंकिंग मैसेजिंग सिस्टम है, जिसे विदेशी बैंक पैसा जारी करने से पहले लोन का ब्योरा पता लगाने के लिये इस्तेमाल करते हैं। 
  • स्विफ्ट के ज़रिये एलओयू एक बैंक से दूसरे बैंक भेजे जाते हैं। पीएनबी घोटाले में स्विफ्ट का बिना निगरानी हुआ इस्तेमाल अनुपालन संबंधी निर्देशों की अनदेखी कर किया गया, जिसने 11,000 करोड़ रुपए के इस घोटाले में मदद की।
  • स्विफ्ट सुविधा का उपयोग बैंक अपने बिज़नेस की ज़रूरतों के लिये करते हैं तथा स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल विदेश में लेन-देन के लिये किया जाता है। 
  • स्विफ्ट एक मैसेजिंग नेटवर्क है जो वित्तीय संस्थानों को कोड की एक मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से जानकारी देने और निर्देशों को सुरक्षित रूप से संचारित करने के लिये उपयोग में लाया जाता है।
  • इससे पूरी दुनिया में सुरक्षित फाइनेंशियल मैसेजिंग की जाती है, जो एन्क्रिप्टेड होती है और इसकी सुरक्षा काफी मज़बूत होती है।

SWIFT का कोड क्या होता है?

  • स्विफ्ट कोड बैंक पहचानकर्त्ता कोड्स (बीआईसी) का एक मानक प्रारूप है। यह दरअसल एक विशिष्ट बैंक का यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड होता है।
  • बैंकों के बीच पैसों का ट्रांसफर करते समय (विशेषकर विदेशी बैंकों को पैसा ट्रांसफर करते समय) इन कोड्स का इस्तेमाल किया जाता है।
  • बैंकों के बीच अन्य संदेशों का प्रसारण करने के लिये भी इन कोड्स का इस्तेमाल किया जाता है।
  • यह दरअसल 8 से 11 करेक्टर का एक कोड होता है।

त्रिस्तरीय जाँच प्रक्रिया

  • स्विफ्ट प्रक्रिया की जाँच तीन स्तरों पर की जाती है। स्विफ्ट इंस्ट्रक्शन का मतलब होता है कि बैंक की सहमति से यह कार्य किया जा रहा है यानी बैंक इसे बनाता है, फिर इसकी जाँच होती है।
  • इसके बाद एक बार और सारी जानकारियों की पुष्टि करके ही अगले बैंक तक इसे भेजा जाता है। तीन स्तरों पर की गई इस जाँच प्रक्रिया के कारण इसे बेहद सुरक्षित माना जाता है।

एनपीए के संबंध में प्राप्त डेटा

  • एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2017 में सूचीबद्ध बैंकों का कुल एनपीए 8.36 लाख करोड़ रुपए आँका गया था। इसमें सरकारी बैंकों का एनपीए 7,33,874 करोड़ और निजी बैंकों का 1,02,808 करोड़ रुपए था।
  • रिज़र्व बैंक ने ऐसे 12 खातों की पहचान की है, जिनके पास कुल एनपीए का लगभग 25 प्रतिशत फंसा है।
  • एनपीए का मुद्दा कोई नया नहीं है, लेकिन जब भी कोई व्यक्ति देश में बैंकों के साथ भारी - भरकम राशि का घपला कर विदेश में जा बैठता है, तो यह मुद्दा फिर से सतह पर आ जाता है।

अब सवाल यह बनता है कि यह एनपीए क्या है?

  • गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets-NPA) वित्तीय संस्थानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक ऐसा वर्गीकरण है जिसका सीधा संबंध कर्ज़/ऋण/लोन न चुकाने से होता है।
  • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज़ अथवा मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण एनपीए माना जाता है।
  • एनपीए को ऐसी परिसंपत्ति कहा जा सकता है, जो मूल रूप से वसूली की अनुमानित अवधि तक नकद मौद्रिक प्रवाह का हिस्सा नहीं बनती।
  • बैंक को अपने पास जमा प्रत्येक 100 रुपए में से 4 रुपए आरबीआई को जमा कराने होते है, जबकि 19.5 रुपए बॉण्ड या सोने के रूप में निवेश करने होते है।
  • शेष 76.5 रुपए को बैंक ऋण के रूप में बाज़ार में निकालता है। जब बैंक इस राशि की वसूली नहीं कर पाते है तो इस राशि को एनपीए के रूप में सूचीबद्ध कर दिया जाता है।

सरकारी तथा निजी बैंकों का एनपीए

  • अगस्त 2017 में लोकसभा में वित्त मन्त्री द्वारा एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी प्रदान की गई कि 2013 में सरकारी बैंकों का एनपीए 1,55,890 करोड़ रुपए था जो 2017 में बढ़कर 6,41,057 करोड़ रुपए हो गया यानी इन चार वर्षों में इसमें 311.22 प्रतिशत वृद्धि हुई।
  • इसी अवधि में निजी बैंकों का एनपीए 19,986 करोड़ रुपए से 269.47 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2017 में 73,842 करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
  • रिज़र्व बैंक की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट, 2017 के अनुसार एक लाख से ऊपर के घोटाले का कुल मूल्य पिछले पाँच वर्षों में 9750 करोड़ से बढ़कर 16,770 करोड़ तक पहुँच गया।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2016-17 में घोटाले की कुल राशि का 86 प्रतिशत हिस्सा लोन से जुड़ा था। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश का एनपीए कुल जीडीपी का 9.6 प्रतिशत है।

इस घोटाले के संबंध में ऑडिट करने वालों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकार के ऑडिट के विषय में वर्णन किया है।

  • कॉन्करंट ऑडिटर : मुंबई जैसी व्यापार केन्द्रित बैंक शाखाओं में एक वरिष्ठ अधिकारी को  कॉन्करंट ऑडिटर नियुक्त किया जाता है जो शाखा के सभी लेन-देन पर नज़र रखता है और दिन के अंत में एक ऑडिट रिपोर्ट तैयार करता है। इस रिपोर्ट को एक ख़ास कमरे में सिर्फ शाखा प्रबंधक देख सकता है।
  • इंटरनल ऑडिटर : अगर कोई लेन-देन कॉन्करंट ऑडिटर से छूट गया हो तो इंटरनल ऑडिटर से नहीं छूटना चाहिये।
  • स्टेचुटरी ऑडिट : यह बाहरी ऑडिटर द्वारा किया जाता है जो बेहद प्रशिक्षित और अपने काम में कुशल होते हैं। हालाँकि ये भी इंटरनल ऑडिटरों की रिपोर्ट के आधार पर ही डाटा का अध्ययन करते है।
  • रिज़र्व बैंक के ऑडिटर्स : ये बैंक के हेड ऑफिस में ऑडिट करते है। ये बैंक के लेन-देन में जोखिम का आकलन करते हैं। ये बैंक के रोजाना के कामकाज का अध्ययन नहीं करते हैं।

इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है?

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एनपीए के मामले को सुलझाने के लिये सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। वस्तुतः व्यवस्था के अंतर्गत दो तरह के कर्ज़दार होते हैं- पहले वे जो घरेलू और वैश्विक मंदी या अन्‍य कारणों से बकाए का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं और दूसरे वे जो बैंकों के बिना सोचे-समझे दिये गए कर्ज़ का जानबूझकर भुगतान नहीं कर रहे हैं।
  • सरकार ने इन दोनों श्रेणियों के बकायेदारों से निपटने के लिये कई उपाय किये हैं।  आर्थिक मंदी के कारण जिन कर्ज़ों का भुगतान नहीं हो पा रहा है उनके लिये सरकार ने कई योजनाएँ बनाई है। 
  • केंद्र सरकार सरकारी बैंकों को तीन वर्षों में 70 हज़ार करोड़ रुपए की पूंजी उपलब्ध करा रही है तथा आवश्यकता पड़ने पर और पूंजी दी जाएगी। 
  • सार्वजनिक बैंकों के अध्‍यक्ष और प्रबंध निदेशकों सहित शीर्ष प्रबंधन की नियुक्ति में पारदर्शिता और पेशेवरपन लाया गया है। बिना किसी तरह के हस्‍तक्षेप के व्‍यावसायिक निर्णय लेने के लिये सरकार ने बैंक प्रबंधन पेशेवरों को पूरी स्‍वायत्‍तता देने के कई उपाय किये गए हैं। 
  • वसूली कार्यवाही को और अधिक कारगर तथा तीव्र बनाने के लिये सरफेसी तथा ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया है। 
  • बकाए ऋण की वसूली के लिये बैंकों द्वारा ज़मानत देने वालों के खिलाफ सरकार ने सुझाव दिया है कि विभिन्न कानूनों के तहत कार्रवाई करें।
  • पारदर्शिता लाने के लिये बैंकों से उन कर्ज़दारों की सूची जारी करने के लिये कहा गया है, जिनके कर्ज़ माफ किये गए हैं। 
  • जानबूझकर कर्ज़ वापसी न करने वाले कर्ज़दारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्‍य में इस तरह घटनाएँ न हों। 
  • किसानों की मदद के लिये उनके कर्ज़ों को पुनर्गठित किया गया है और कुछ राज्यों में किसानों के कर्ज़ माफ़ भी किये गए हैं।
  • सरकार ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि कुछ उद्योगपतियों द्वारा जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने का खामियाजा अन्य उद्योगपतियों को न भुगतना पड़े।
  • इसके अतिरिक्त दिवालियापन संहिता, 2016 लाई गई है। इसके लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा।
  • ऋण न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को अवसर दिया जाएगा कि वह एक निश्चित समय में अपने ऋण चुका दे, अन्यथा स्वयं को दिवालिया घोषित करे। 
  • यदि कोई ऋणी दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल की सज़ा का भी प्रावधान है। 

निष्कर्ष

बैंक किसी भी अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार होते हैं। ये न केवल बाज़ार में पूंजी के स्थायी एवं संतुलित प्रवाह के लिये उत्तरदायी होते है बल्कि इनके कन्धों पर व्यवस्था के सटीक संचालन एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी भी होती है। यदि यही बैंकिंग व्यवस्था अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह पूर्ण पारदर्शिता एवं निष्ठा से नहीं करते है तो इसका प्रत्यक्ष प्रभाव संबंधित बैंक की साख के साथ-साथ उस देश की अर्थव्यवस्था पर भी परिलक्षित होता है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि यदि समय रहते इन समस्याओं के संदर्भ में कोई कठोर निर्णय नहीं लिया गया तो इसके प्रभावों से उबरना आसान नहीं होगा।

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