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क्या इस्लामिक स्टेट ने अपनी खोई हुई ज़मीन हासिल कर ली है ?

  • 23 Feb 2017
  • 13 min read

सन्दर्भ

  • प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘नाइन लिव्स’ में कहा है कि ‘धर्म को मैंने जब देखा लोगों को जोड़ते देखा, जहाँ नफ़रत थी वहाँ धर्म नहीं था। लेकिन हाल ही में पाकिस्तान के लाल-शाहबाज़ कलंदर सूफी दरगाह में हुए आत्मघाती बम विस्फोट ने सिद्ध कर दिया है कि अब धार्मिक स्थल भी आतंकियों की नफरत के शिकार होने लगे हैं। विदित हो कि इस वीभत्स हमले की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है जिसके बारे में अब तक कहा जा रहा था कि इसका किस्सा खत्म हो चुका है। इस घटना ने विश्व शांति एवं सद्भावना को गहरी चोट तो पहुँचाया ही है साथ में भारत की आतंरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ भी बढ़ गई हैं।
  • इस्लामिक स्टेट के कहर का अंदाज़ा हम इन आँकड़ों से लगा सकते हैं। हाल ही में इस्रायली इंस्टिट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज़ ने आत्मघाती हमलों में मारे जाने वाले लोगों से संबंधित आँकड़े इकठ्ठा किये हैं। इन आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में 28 देशों में लगभग 800 लोगों ने 469 आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया था। गौरतलब है कि इन आत्मघाती हमलवरों में 44 महिलाएँ थीं। 2016 में 70 फीसदी आत्मघाती हमले ऐसे थे जिनके साथ आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा था। पिछले साल के दौरान होने वाले हमलों में से ज़्यादातर मध्य पूर्व में हुए, अकेले इराक ने 146 आत्मघाती हमले झेले।

क्या है इस्लामिक स्टेट?

  • इस्लामिक स्टेट को आईएसआईएल, आईएसआईएस और दाएश के नामों से भी जाना जाता है। चरमपंथी विचारधारा को मानने वाला यह गुट कभी अल कायदा का ही एक हिस्सा हुआ करता था, लेकिन इराक पर 2003 के अमेरिकी हमले के बाद उपजे हालात में इसकी नींव पड़ी। इसका नेतृत्व अबु बकर अल बगदादी करता है। आईएस का मकसद इराक, सीरिया और उससे बाहर भी एक इस्लामिक राज्य यानी खिलाफत का निर्माण करना है।
  • माना जाता है कि आईएस दुनिया के 18 देशों में सक्रिय है। इसने सीरिया और इराक के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर रखा है और सीरिया का शहर रक्का इसकी अघोषित राजधानी है। हालाँकि जनवरी 2015 से आईएस ने अपने नियंत्रण वाली एक चौथाई जमीन गँवा दी है।
  • आईएस की आमदनी का मुख्य ज़रिया तेल और गैस की बिक्री है। इसकी आमदनी के अन्य स्रोतों में टैक्स से मिलने वाली रकम, फिरौती और लूटी हुई बहुमूल्य वस्तुएँ शामिल हैं।

इस्लामिक स्टेट का प्रभाव

  • विदित हो कि आईएस ने दुनिया भर में होने वाले कई आंतकवादी हमलों की जिम्मेदारी ली है। पिछले साल सबसे घातक हमला इराक की राजधानी बगदाद में हुआ जिसमें 200 से ज़्यादा लोग मारे गए और बहुत से घायल हो गए। आईएस का नेतृत्वकर्ता समूह, बिना किसी बाहरी सहायता के अपने स्तर पर धमाके करने वाले लोगों को बढ़ावा देते हैं, जिसमें वे आईएस के समर्थक गुट की मदद के बिना ही हमलों को अंजाम देते हैं और बड़ी आसानी से आईएस का नाम बढ़ता जाता है।
  • आईएस अपनी ताकत को बढ़ाने के लिये कई हथकंडे इस्तेमाल करता है, उसके लड़ाकों ने सीरिया और इराक में बहुत सी ऐतिहासिक कलाकृतियों को लूटा और बर्बाद किया है। इसके अलावा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की हजारों महिलाओं को गुलाम बनाया गया है। गौरतलब है कि आईएस सोशल मीडिया को अपना दुष्प्रचार फैलाने और लड़ाकों की भर्ती के लिये इस्तेमाल करता है।
  • सीरिया में जारी संघर्ष के कारण वहाँ से लगभग साठ लाख लोग अन्य देशों में भागने को मजबूर हुए हैं। इनमें से बहुत से लोग पड़ोसी देश लेबनान, जॉर्डन और तुर्की चले गए हैं, वहीं लाखों लोग यूरोप तक जा पहुँचे हैं। इराक में तीस लाख से ज़्यादा लोग देश के अंदर ही विस्थापित हो गए हैं। जिस शरणार्थी संकट का सामना लगभग पूरी दुनिया कर रही है बहुत हद तक उसका जन्मदाता इस्लामिक स्टेट ही है।

इस्लामिक स्टेट की मज़बूती का आधार

  • एक दशक पूर्व वैश्विक पटल पर अपने उदय के साथ ही इस्लामिक स्टेट कट्टरता, नृशंसता और युवाओं को आकर्षित करने की अपनी क्षमता के दम आतंक का सबसे वीभत्स चेहरा बनकर सामने आया। आईएस जब अपने चरम पर था तो इस कट्टरपंथी समूह में 80 देशों के 30,000 लड़ाके शामिल थे। इस्लामिक स्टेट की सबसे बड़ी ताकत है इसकी युवाओं को आकर्षित करने की क्षमता। विदित हो कि आईएस ने लड़ाकों की नियुक्ति के लिये बाकायदा नियोक्ताओं की सेवाएँ ले रखी हैं।
  • आईएस इन नियोक्ताओं को धन देता है और बदले में ये नियोक्ता सोशल मीडिया, गुप्त गोष्ठियों आदि के माध्यम से युवाओं को धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित करते हैं और एक ऐसी लड़ाई लड़ने के लिये इन्हें प्रेरित करते हैं जिसका उद्देश्य खिलाफत की स्थापना करना है। आईएस युवाओं को वेतन देने के साथ-साथ उनकी लिये यौन-दासियों की भी व्यवस्था करता है, विदित हो कि इन यौन-दासियों पर होने वाले ज़ुल्म की कहानी अत्यंत ही भयावह है।

भारत के संबंध में चिंताएँ

  • विदित हो कि वैश्विक प्रयासों के माध्यम से पिछले कुछ समय से आईएस पर अंकुश लगाने की लगातार कोशिश हो रही है और इसमें सफलता भी मिली है। इस्लामिक स्टेट को रूस, तुर्की, इराक़, सीरिया और कुर्द सेनाओं ने भयंकर क्षति पहुँचाई है, रही सही कसर अमरीकी लड़ाकू विमानों के  हमलावर रुख ने पूरी कर दी है। आईएस अपने नियोक्ताओं को पैसे नहीं दे पा रहा है और अधिकांश लड़ाके अपने देश लौट रहे हैं।
  • भारत के संबंध में सबसे बड़ी चिंता है कि आईएस के लड़ाके अपने घर तो लौट आए हैं लेकिन उनके विचार अब भी वहीं जो आईएस ने उनके अन्दर भरा है, कई लोगों का तो यह मानना है कि ज़मीन पर अपनी लड़ाई कमज़ोर होते देख आईएस ने एक नई रणनीति अपनाई है और अब वह अपने लड़ाकों को उनके देश में पहुँचाकर एक नए तरह से युद्ध आरम्भ करना चाहता है। आईएस ने उनको निर्देश दिया है कि जो जहाँ का रहने वाला है अब वहीं जाकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दें। भारत के कितने लड़ाके आईएस में थे या हैं इस संबंध में अब तक कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल पाई है, अतः भारत के सामने आतंरिक सुरक्षा को लेकर कुछ अहम् सवाल उठ खड़े हुए हैं।
  • अभी भी सोशल मीडिया आईएस के विचारों का मुख्य संदेश-वाहक बना हुआ है, देश के युवा इस आतंकी संगठन की गतिविधियों पर बेहद करीब से नज़र रख रहे हैं और इस आतंकी संगठन की सोशल मीडिया गतिविधियों में हिस्सा भी ले रहे हैं। आईएस से जुड़े सामग्री (कंटेंट) के लिये राज्यों में सबसे ज्यादा ट्रैफिक जम्मू-कश्मीर से और शहरों में श्रीनगर से आ रहा है। वहीं मुंबई में भी बड़ी मात्रा में आईएस के कंटेंट सर्च किये जा रहें हैं। आईएस से जुड़ा कंटेंट न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को, बल्कि सभी तरह के शैक्षिक एवं सामाजिक परिवेश के लोगों को भी लुभा रहा है। घाटी के हालात के संवेदनशील हैं और वहाँ के युवा आसानी से इस आतंकी संगठन के प्रति खिंचे जा रहे हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ समय के दरम्यान जम्‍मू कश्‍मीर में इस्लामिक स्टेट के झंडे कई बार लहराए जा चुके हैं।

क्या हो आगे का रास्ता?

  • जिस इस्लामिक स्टेट को पूरी दुनिया चुका हुआ मानने लगी थी, अब आतंक के एक नये कलेवर में सबके सामने है। आईएस के लड़ाके स्वयं को सुधरा हुआ बताते हुए छोटे-छोटे समूहों में पुरे विश्व में फैल रहे हैं। वैसे भी इस्लामिक स्टेट पिछले कुछ समय से लगातार भारत को निशाना बनाने के अपने इरादों को ज़ाहिर करता आ रहा है। भारत को इसे रोकने के लिये एक्शन प्लान बनाना चाहिये।
  • दरअसल, युवावस्था में व्यक्ति अभूतपूर्व ऊर्जा महसूस करता है और जिस भी दिशा में इस ऊर्जा का उपयोग किया जाए वहाँ उल्लेखनीय परिणाम दिखने को मिलते हैं, सरकार को आईएस की इसी नस पर चोट करनी होगी, युवाओं को आईएस के विचारों से दूर रखना होगा। सरकार यदि अपने एक्शन प्लान के तहत आईएस के खिलाफ़ एक जागरूकता अभियान चलाए तो यह काफी कारगर होगा, जगह-जगह सेमीनार हों और विशेषग्य, युवाओं को सूफी परम्परा और वहाबी परम्परा का मर्म बताएँ। ख़ुफ़िया एजेंसीयों को भी सतर्क रहना होगा।

निष्कर्ष

  • विदित हो कि इस्लामिक स्टेट समूह ने जून 2014 में इराक और सीरिया के कई हिस्सों में कब्ज़ा कर वहाँ "खिलाफत" की स्थापना की थी। यह खुद को सुन्नी इस्लाम के सबसे शुद्ध ब्रांड बताता है और अपने धर्म को पैगंबर मोहम्मद के काल में प्रचलित नियमों के हिसाब से चलाने का दावा करता है।
  • लेकिन आईएस लड़ाके अपने नियंत्रण वाले इलाकों में यज़ीदी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार तो करते ही हैं साथ में सुन्नी महिलाओं को भी नहीं छोड़ते, उन्हें भी लड़ाकों की यौन दासी बनाया जाता रहा है। अतः यह तो प्रमाणित है कि आईएस किसी भी तथाकथित धार्मिक सिद्धांत को नहीं मानता। यह एक आतंकी गुट है जो धर्म के नाम पर आज मानवता का शत्रु बना हुआ है।
  • अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद और आईएस के इस बदले स्वरूप से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई करने की भी जरूरत है। आईएस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर भारत को और चौकसी बरतते हुए गंभीरता के साथ तुरंत सख्‍त कदम उठाने की ज़रूरत है। यदि इस दिशा में सरकारी स्‍तर पर थोड़ी सी भी चूक हुई तो भविष्‍य में इसके भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं। वैसे भी भारत कई दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है।
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